फर्स्ट पोस्ट के नेशनल ट्रस्ट सर्वे से नरेंद्र मोदी आगे

शब्दवाणी समाचार सोमवार 28 जनवरी 2019 नई दिल्ली। 2019, भारतीय राजनीति के हाल-फिलहाल के इतिहास में सबसे प्रतीक्षित वर्ष अब आ चुका है। क्या देश एक बार फिर प्रधानमंत्री में भरोसा जताएगा या फिर किसी भी स्तर की तैयारी के साथ कोई अन्य विकल्प चुनेगा? फर्स्ट पोस्ट-आईपीएस ओएस "नेशनल ट्रस्ट सर्वे में 291 शहरी वार्डऔर 690 गांवों के 34,470 लोगों ने हिस्सा लिया, इससे मिली जानकारियां फर्स्ट पोस्ट अखबार के पहले संस्करण में प्रकाशित की जाएंगी जो 26 जनवरी, शनिवार को स्टैंड पर पहुंचेगा। सर्वे में शामिल लोग विभिन्न वर्गों, जाति और लिंग के हैं और वे 23 राज्यों की 320 संसदीय क्षेत्रों के 57 सामाजिक–सांस्कृतिक क्षेत्रों से संबंधित हैं।


सर्वे से मिली जानकारियों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 53 फीसदी स्वीकार्यता रेटिंग के साथ देश के सबसे विश्वसनीय राजनीतिक नेता हैं। करीबी प्रतिद्वंद्वी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 26.9 फीसदी रेटिंग से बड़े अंतर के साथ दूसरे पायदान पर हैं। जबकि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 4 फीसदी और मायावती को 2 फीसदी मत मिले। दिलचस्प बात यह है कि नेहरू-गांधी परिवार से चुनावी राजनीति में हाल ही में कदम रखने वाली प्रियंका गांधी को 1 फीसदी से भी कम मत मिले। लेकिन सर्वे राजनीति में औपचारिक तौर पर उनके कदम रखने के काफी पहले कराया गया था। आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में राहुल गांधी लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे हैं।


मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए अगर बीजेपी इस चुनाव को मोदी और राहुल गांधी के बीच मुकाबला बनाने में सफल होती है तो उनके लिए उम्मीद बेहतर होगी क्योंकि स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष इस राजनीतिक मैदान में कमजोर प्रतिद्वंद्वी हैं। सर्वे से मिली जानकारियों के मुताबिक, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में राज्यों के स्थानीय दलों के प्रति अधिक भरोसा देखने को मिला।


सार्वजनिक संस्थानों के बीच भारतीय लोगदेश के प्रधानमंत्री कार्यालय पर सबसे अधिक विश्वास (75 फीसदी) करते हैं और वह उच्चतम न्यायालय (73 फीसदी) और संसद (72 फीसदी) से भी आगे है। प्रमुख विपक्षी दल की संस्था को सिर्फ 53 फीसदी स्वीकृति मिली।


आगामी चुनावों में विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता हैकरीब 85 फीसदी मतदाता मानते हैं कि 2019 के लिए चुनावी अभियान विकास के एजेंडे पर केंद्रित होगा और ज्यादातर प्रतिभागियों ने महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दों का समाधान करने के लिए बीजेपी पर भरोसा जताया।


बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए की ओर मतदाओं का झुकाव बने रहने का प्रमुख कारण आर्थिक विकास का वादा था। 37 फीसदी मत के साथ दूसरा सबसे लोकप्रिय कारण नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौरपर देखने की चाहत है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन करने वालों ने पुरानी कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन को प्रमुख कारण माना। जहां 43 फीसदी लोगों ने राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री को आरोपी बताते हुए कांग्रेस द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से सहमति जताई, वहीं 74.3 फीसदी लोगों ने कहा कि अगर सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश ले आती है तो वे उसे समर्थन देंगे


जहां 51 फीसदी लोगों ने विपक्षी दलों के महागठबंधन के लिए "नहीं" या "कहा नहीं जा सकता कहा वहीं 49 फीसदी लोगों ने कहा कि अगर महागठबंधन वास्तव में बनातो यह बीजेपी गठबंधन को मुश्किल मुकाबला देगा और 34 फीसदी लोगों का मानना है कि यह चुनाव को द्विध्रुवीय मुकाबला बना सकता है।


2018 के विधान सभा चुनाव के परिणामों के बाद कराए गए सर्वे में विभिन्न दलों के बीच का अंतर कम हो गया। विधान सभा चुनाव के परिणामों के बाद मतदाताओं ने लोगों से जुड़ी चिंताओं का समाधान करने के लिए कांग्रेस की ओर ज्यादा भरोसा दिखाया है जो बीजेपी के लिए चिंता का कारण हो सकता है।लोगों द्वारा अपनी मत हिस्सेदारी को अधिक या कम दावा किए जाने के बावजूद रुझान दर्शाते हैं कि बीजेपी अपनी 37.6 फीसदी मत हिस्सेदारी बनाए रखने में कामयाब होगी जबकि कांग्रेस को सिर्फ 7.8 फीसदी मत मिले।



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