स्पाइन यानि रीढ़ की चोट के मामले में समय पर इलाज के द्वारा मरीज को बचाया जा सकता है : डॉ राजेन्द्र प्रसाद

शब्दवाणी समाचार शुक्रवार 12 अप्रैल 2019 नई दिल्ली। स्पाइनल यानि रीढ़ की चोट के मामले में मरीज़ को समय पर एवं सुरक्षित रूप से एम्बुलेन्स के द्वारा टर्शरी हॉस्पिटल तक पहुंचाने के फायदों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स ने एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया। प्रेस सम्मेलन के दौरा बताया गया कि समय पर और सही इलाज उपलबध कराने से कैसे मरीज़ के जीवन को बचाया जा सकता है और अपंगता की संभावना को कम किया जा सकता है।



डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सीनियर कन्सलटेन्ट, स्पाइन सर्जन, इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स ने युवा मरीज़ों में रीढ़ की चोट के तीन मामलों पर चर्चा की जिनमें समय पर इलाज के चलते मरीज का जीवन बचा लिया गयाइसके बाद न्यूरो-रीहेबिलिटेशन के द्वारा उनके खोए न्यूरोलोजिकल फंक्शन्स फिर से सामान्य हो गए। जिसके चलते उन्हें स्थायी अपंगता से बचाया जा सका और आज वे व्हीलचेयर के बजाए अपने पैरों पर चल सकते हैं।


डॉ प्रसाद ने बताया, "21 वर्षीय प्रियंका पहली मंजिल से गिर गईं, जिसके बाद उनकी पीठ में बहुत तेज़ दर्द था, उनकी टांगों में कमजोरी आ गई थी और उन्हें यूरीन रीटेन्शन की समस्या भी हो गई। एमआरआई से पता चला कि उनके एल 1 लम्बर फ्रेक्चर था और फ्रेक्चर के कारण स्पाइनल कोर्ड में कम्प्रेशन हो गया था। डीकम्प्रेशन और स्पाइन के स्थिरीकरण के लिए दो सर्जरियों की ज़रूरत थी। उन्हें ठीक होने में तीन महीने का समय लगा और अब वे अपने पैरों पर चल सकती हैं। इस मामले में सफल इलाज का श्रेय उनके परिवार को दिया जा सकता है जिन्होंने बिना देरी किए सुरक्षित रूप से उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया। जब वह अस्पताल पहुंची, उनकी टांगों में पैरालिसिस था और वह अपना ब्लेडर फक्शन खो चुकी थीं। प्रियंका ने कहा, "मैं डॉ तरूण साहनी और डॉ राजेन्द्र प्रसाद की मेडिकल टीम के प्रति आभारी हूँ जिनकी वजह से आज में ठीक हूँ और जल्द ही मेरी शादी होने वाली है।


23 वर्षीय अखिलेश कुमार अपने कार्यस्थल पर उचाई से गिर गए“उनका मामला बहुत गंभीर था, उन्हें कॉम्प्लेक्स मैनेजमेन्ट प्रक्रिया की ज़रूरत थी। जब उन्हें अस्पताल लाया गया तो उनके सिर और स्पाइन में चोट लगी थी, टांग और पैल्विक में कई फ्रक्चर थे, जिसके चलते टांगों में कमजोरी आ गई थी। वे अपना ब्लैडर और बोवल फंक्शन खो चुके थे। बाएं पटेला और कैल्सेनियस (हील बोन) के फ्रेक्चर के लिए उनकी सर्जरी की गई, इसके अलावा स्पाइनल कोर्ड नर्स पर बने दबाव को हटाने एवं स्पाइन के स्थिरीकरण के लिए स्पाइन सर्जरी भी करनी पड़ी। हालांकि सर्जरी के बाद अखिलेश में काफी सुधार हुआ है, लेकिन उनके पैर में अभी भी कुछ कमजोरी है। उन्हें अभी और रीहेबिलिटेशन की ज़रूरत हैयह मामला भी हमें बताता है कि पॉली-ट्रॉमा के गंभीर मामलों में मरीज़ को समय पर और सुरक्षित रूप से अस्पताल पहुंचाना कितना महत्वपूर्ण है। ऐसे मामलों में कई ट्रॉमा विशेषज्ञ एक टीम के रूप में काम करते हैं और आपसी तालमेल के साथ मरीज़ की देखभाल की जाती है।


सर्जरी के बाद अखिलेश ने कहा, "मैं हमेशा की तरह कन्स्ट्रक्शन साईट पर काम कर रहा था और अचानक उचाई से गिर कर बेहोश हो गया। सर्जरी के सात दिनों बाद में होश में आया और मुझे पता चला TOUCHING LIVES कि मेरे साथ इतनी गंभीर दुर्घटना घटी है। मैं अपने सहकर्मियों के प्रति आभारी हूँ जो मुझे तुरंत अस्पताल लेकर आए। डॉ राजेन्द्र प्रसाद और उनकी टीम के प्रयासों की वजह से आज मैं जिंदा हूँमैं अब ठीक हो रहा हूँ और वॉकर की मदद से चल सकता हूँ। डॉ प्रसाद ने मुझे बताया कि पूरी तरह से ठीक होने के लिए मुझे अभी और इलाज की ज़रूरत है।


कश्यप रावत के तीसरे मामले में, जिन्हें 2008 में कनॉट प्लेस में हुए आतंकवादी हमले में गंभीर चोटें आईं थी। उनके सरवाईकल स्पाइन, छाती और हाथ-पैर में गंभीर चोटें आई थीं। उनके चारों लिम्ब्स में पैरालिसिस (quadriplegic) हो गया था और उन्हें ट्रैकियोस्टोमी और कैथेटर की ज़रूरत थी। आज वे ठीक हैं, काम कर रहे हैं और सहारे से चल भी सकते हैं।


डॉ प्रसाद ने दुर्घटना की साईट पर स्पाइनल इंजरी के प्रबंधन के महत्व के बारे में बताते हुए सम्मेलन का समापन किया। यह बहुत ज़रूरी है कि ट्रॉमा के मरीज़ को तुरंत एबीसी (एयरवे, ब्रीदिंग, सर्कुलेशन) सपोर्ट मिले। यह सपोर्ट प्रशिक्षित लोगों या पुलिसकर्मियों द्वारा दिया जा सकता हैइसके बाद मरीज़ को प्रशिक्षित पैरामेडिक स्टाफ और एम्बुलेन्स की मदद से सुरक्षित रूप से अस्पताल पहुंचाना चाहिएमरीज को 'गोल्डन ऑवर के अंदर स्पाईन बोर्ड पर रख कर अस्पताल पहुंचाना चाहिए ताकि चोट और गंभीर न हो जाएपॉलीट्रॉमा के गंभीर मरीजों को सीधे टर्शरी अस्पताल में ही लेकर जाना चाहिए जहां ट्रॉमा टीम, सिर, स्पाइन, छाती, लिम्ब्स और एब्डॉमिनल चोटों का सही इलाज कर सके। इस तरह उचित देखभाल के द्वारा कई जिंदगियों को बचाया जा सकता है और स्थायी अपंगता की संभावना को कम किया जा सकता है। इसके अलावा एक्यूट केयर के बाद मरीज़ को न्यूरो रीहेबिलिटेशन की ज़रूरत होती है ताकि मरीज़ फिर से आत्मनिर्भर हो जाए और अपने सभी काम खुद कर सके। सामान्य जीवन जी सके और काम पर जा सके।


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