ट्यूबरकुलोसिस में सभी ड्रग रज़िस्टैंस म्यूटेशंस की पहचान करने के लिए उल्लेखनीय डीएनए टेस्ट

शब्दवाणी समाचार बुधवार 21 अगस्त 2019 नई दिल्ली। क्लिनिकल डेटा संचालित जेनेटिक डायग्नोस्टिक्स एवं ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में लीडर, मेडजीनोम लैब्स ने 'स्पिट एसईक्यू' विकसित किया है, जो पहला संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण आधारित परीक्षण है और सीधे थूक से ट्यूबरकुलोसिस के बैक्टीरिया में मौजूद हर सिंगल म्यूटेशन का विस्तृत विश्लेशण प्रदान करता है, जो दवाईयों के लिए रज़िस्टैंस निर्मित करता है। इस प्रगति के द्वारा डॉक्टरों को वर्तमान में एक महीने तक चलने वाली परीक्षण त्रुटि प्रक्रिया का पालन नहीं करना पड़ेगा और वो ट्यूबरकुलोसिस के मरीज को सबसे प्रभावशाली दवाई बहुत तेजी से और सटीक तरीके से प्रदान कर सकेंगे।



भारत में मल्टी ड्रग रज़िस्टैंट (एमडीआर-टीबी) के मामले सर्वाधिक होते हैं। स्पिट एसईक्यू टीबी के मरीजों, क्लिनिशियनों और हैल्थकेयर एजेंसियों के लिए एक वरदान हो सकता है, जिसके द्वारा वो 2025 तक टीबी के उन्मूलन का भारत का सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) प्राप्त कर सकते हैं। यह टेस्ट टीबी करने वाले बैक्टीरिया, मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) की संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग है, जो बैक्टीरिया के जीनोम में म्यूटेशंस तक पहुंचकर क्लिनिशियन को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि मरीज के लिए कौन सी दवाई काम करेगी।
इस टेस्ट को 100 से ज्यादा नमूनों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है, जहां इसने लाईन प्रोब ऐसे (एलपीए) की तुलना में 100 प्रतिशत सेंसिटिविटी और 98.04 प्रतिशत स्पेसिफिसिटी दर्ज की है। इनमें से 50 नमूनों के टेस्ट पी. डी हिंदुजा नेशनल हॉस्पिटल एवं मुंबई के मेडिकल रिसर्च सेंटर के सहयोग  से से हुए। यह हस्तलिपि प्रकाशन के लिए समीक्षा के अधीन है। आम तौर पर ड्रग रज़िस्टैंस के विश्लेशण की प्रक्रिया लंबी होती है, जिसकी वजह से एमडीआर-टीबी के मरीज के लिए इलाज में विलंब हो जाता है। यहां पर वर्तमान विशेशज्ञता द्वारा केवल 4 दवाईयों पर रज़िस्टैंस की टेस्टिंग करने की अनुमति दी गई है, इसलिए मरीज को तब तक इंतजार करना पड़ता है, जब तक सभी संभावित दवाईयों पर टेस्टिंग पूरी नहीं हो जाती। ऐसी स्थिति में डायग्नोसिस के लंबे बदलाव का समय, बार बार की जाने वाली टेस्टिंग के कारण इलाज के दौरान बार बार परिवर्तन करने पड़ते हैं।
डॉ. कैमिला रोड्रीक्स, पी. डी. हिंदुजा  हॉस्पिटल ने कहा, ''डायरेक्ट होल जीनोम सीक्वेंसिंग से 10 दिनों के अंदर सभी एंटी टीबी ड्रग्स के लिए ड्रग रज़िस्टैंस म्यूटेशन की जानकारी मिल जाती है। जल्द ही यह टेक्नॉलॉजी एमडीआर-टीबी के मरीज के सही मैनेजमेंट को ऑप्टिमाईज़ करने में मदद करेगी।''
डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में टीबी के 2ण्7 मिलियन मामले (टीबी$रिलाप्स) दर्ज किए गए थे और भारत में वैश्विक टीबी की 27 प्रतिशत मौतें दर्ज हुईं। दूसरी चौंकानेवाली बात यह है कि दुनिया में टीबी के 3.5 प्रतिशत नए मामलों और 18 प्रतिशत पहले इलाज किए जा चुके मरीजों को ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया द्वारा इम्युनिटी विकसित कर लेने के कारण फिर से पुनरावर्तन हुआ। देश में उपलब्ध पारंपरिक टेस्ट हमें सीमित तरीके से रज़िस्टैंस को पहचानने में समर्थ बनाते हैं। एमटीबी (मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) धीमे धीमे बढ़ता है और कल्चर ग्रोथ में 6 से 8 हफ्ते का समय लेता है, जिससे न केवल टीबी की डायग्नोसिस में विलंब होता है, बल्कि ड्रग रज़िस्टैंस टेस्टिंग में भी विलंब होता है। स्पिट एसईक्यू एमटीबी की पहचान और ड्रग रज़िस्टैंस का अनुमान लगाने के लिए एक कल्चर-फ्री डब्लूजीएस (होल जीनोम सीक्वेंसिंग) विधि है, जिसका बदलाव का समय 10 दिनों का है। रैपिड मॉलिकुलर टेस्ट्स (एलपीए) के मुकाबले डब्लूजीएस की एक षक्ति यह है कि इसमें गैर व्याख्या करने योग्य परिणामों का समाधान मिलता है, जो तब होते हैं, जब हमारी रुचि का बिंदुपथ में न तो वाईल्ड टाईप होता है और न ही विशेश म्यूटेशन मौजूद होता है। हमारे स्पिट एसईक्यू डब्लूजीएस टेस्ट में ऐसे कुल 12 म्यूटेशन पहचाने गए हैं, जो एलपीए में चूक गए थे।
डॉ. वीएल रामप्रसाद, सीओओ, मेडजीनोम लैब्स ने कहा, ''स्पिट एसईक्यू एक विशाल प्रगति है, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हो सकते हैं। यह टेस्ट न केवल सटीक परिणाम देता है, बल्कि यह टीबी के इलाज में काफी समय की बचत भी करता है। टीबी के प्रभावशाली व तीव्र समाधान के लिए भारत के उद्देश्य के अनुरूप हमारा लक्ष्य आज टीबी से पीड़ित आखिरी व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना है।''
ट्यूबरकुलोसिस 'स्पिट एसईक्यू' के लिए फ्लैगशिप टेस्ट के साथ मेडजीनोम संक्रामक बीमारी की जेनेटिक्स में प्रवेश कर रही है और एक्साईटोन डायग्नोस्टिक्स, बैंगलोर के साथ सहयोग कर रही है। यह सहयोग मेडजीनोम लैब्स के सुस्थापित नेटवर्क द्वारा एक्साईटोन पर संक्रामक बीमारियों के तहत विभिन्न जेनेटिक टेस्ट्स का इंटीग्रेशन बढ़ाएगा। इन टेस्ट्स में आंखों का संक्रमण, दिमाग और खून के संक्रमण षामिल हैं। मेडजीनोम भारत में एक्साईटोन के सभी टेस्ट्स के लिए एक्सक्लुसिव सेल्स पार्टनर होगा। डॉ. बी वी रविकुमार, फाउंडर एवं मैनेजिंग डायरेक्टर, एक्साईटोन डायग्नोस्टिक्स लिमिटेड ने कहा, ''संक्रामक बीमारी एक बड़ी चुनौती हैं, जिनके कारण भारत में हैल्थकेयर पर बहुत बड़ा खर्च आता है। यह पार्टनरशिप संक्रामक बीमारियों के खिलाफ भारत के अभियान को बल प्रदान करेगी। भारत के पूरे क्षेत्र में मेडजीनोम की पहुंच हैल्थकेयर सर्विस सेगमेंट में जेनेटिक टेस्टिंग के समावेशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी जबकि एक्साईटोन पर हम वर्तमान एवं नए टेस्ट्स के लिए षोध एवं विकास पर केंद्रित रहेंगे।''
रामप्रसाद ने कहा, ''हमारा उद्देश्य हैल्थकेयर के भार को कम करना है, जो इस समय हमारे ऊपर है। यह संभव है कि हम पूरी तरह से जेनोमिक्स की षक्ति का उपयोग करें और हमारे हैल्थकेयर के परिवेश में उसे समाविश्ट करें। दुनिया में जेनोमिक्स एक सुस्थापित क्षेत्र है, जो न केवल डायग्नोसिस में बल्कि दवाईयों की खोज में भी इनोवेशन को गति देता है। भारत इस दिशा में स्थिर रूप से आगे बढ़ रहा है, इसलिए हमें इसकी सामर्थ्य को समझकर उसका उपयोग करने की आवश्यकता है।''
इस समारोह में डॉ. सचिन जाधव, डीएम, क्लिनिकल हीमेटोलॉजी और डॉ. वी रवि, सीनियर प्रोफेसर एवं हेड, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोवायरोलॉजी, एनआईएमएचएएनएस मौजूद थे, जिन्होंने संक्रमण की कमजोरियों के बारे में बताया और उनका सामना करने के लिए प्रतिदिन के अभ्यास में जेनेटिक टेस्ट के समावेशन पर बल दिया। डॉ. जाधव ने कहा, ''एंटीबायोटिक्स के लिए रज़िस्टैंस आम हो चुकी है और अब यह सार्वजनिक स्वास्थ्य की बढ़ती समस्या बनती जा रही है, जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। मल्टी-ड्रग रज़िस्टैंट फंगल संक्रमण के विविध मामले देखे जा चुके हैं, जो अंगों के प्रत्यारोपण में 40 प्रतिशत तक की मृत्युदर के उत्तरदायी होते हैं। जहां मरीज की स्थिति की जाँच करने के लिए टेस्ट मौजूद हैं, वहीं अज्ञानता एवं प्रभावशाली इलाज में किया जाने वाला विलंब जीवन के लिए घातक होता है। समय पर जाँच एवं तत्काल माईक्रोबायलॉजिकल टेस्ट जिंदगी बचाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मेडजीनोम इस उद्योग में मार्केट लीडर है, जिसने भारत में थेरेपी के विविध क्षेत्रों, जैसे कैंसर, रिप्रोडक्टिव हैल्थ, रेयर डिज़ीज़ आदि क्षेत्रों में जेनेटिक डिस्पोज़िशन का अध्ययन किया है।



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