मनुष्य का आचरण श्रीराम की तरह रहना चाहिए : स्वामी नारायणानंद
शब्दवाणी समाचार रविवार 24 नवंबर 2019 (दुर्गेश कश्यप) मौदहा,हमीरपुर। कस्बे के स्थानीय बड़ी देवी मंदिर परिसर में चल रहे नौ दिवसीय आध्यात्मिक सत्संग के दौरान शनिवार को सातवें दिन अनंतश्री विभूषित काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराजश्री ने कहा, हमारे धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि मनुष्य का आचरण श्रीराम की तरह रहना चाहिए रावण की तरह नहीं बनना चाहिए। यह सारी रामायण का सार है और यही बात लोगों को समझाने के लिए मधुर से मधुर भाषा में काव्य की रचना होती है। काव्य रचना इसलिए होती है कि परिवार के सभी लोग समझ जाएं परिवार के सभी लोग सुखमय बने रहें, राष्ट्र में समरसता बनी रहे। शिक्षा देने के लिए काव्य की रचना सबसे प्रभावशाली होता है। दुनिया के किसी भी नर नारियों का चरित्र इतना पवित्र नहीं है कि बार-बार वर्णन किया जा सके। क्योंकि दुनिया के लोगों के चरित्र में अविद्या, अभियान, अभिनिवेश छिपा रहता है। भगवान में अज्ञान की कल्पना भी नहीं है।
पूज्य शंकराचार्य जी ने बताया, भगवान की जितनी भी लीलाएँ गाई जाती हैं, उनका उद्देश्य उनसे संबंध जोड़ने का होता है। परमात्मा अपने भक्तों को आनंद प्रदान करने के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। भक्तों में अनंत शक्ति होती है। ताड़का, खरदूषण, मारीच इत्यादि राक्षसों के दमन की कथाएँ अपनी प्रतीकात्मकता एवं आध्यात्मिकता के लिए सदैव स्मरणीय हैं। व्यापक दृष्टि ही व्यापक तत्त्व है। मैं मेरे पन का त्याग करने वाला महान होता है। रामायण में जितने भी असुर हैं सभी भगवान के मार्ग में अवरोधक हैं। अतः भगवत तत्व को चाहने वालों को बुराइयों से लड़ना ही पड़ेगा। रामायण में न सिर्फ सभी का परमार्थ है बल्कि उसमें व्यावहारिक तत्व भी है। यह तत्त्व हमें बताता है कि जीवन में हमेशा समता और सरसता विद्यमान रहनी चाहिए। इस अवसर पर श्री युवराज सिंह जी विधायक सदर, श्री लोकेन्द्र पाण्डेय, राजनारायण गुप्ता, आकाश त्रिपाठी, विनय तिवारी, मनीष शुक्ला, आनन्द द्विवेदी, राहुल देव एवं अन्यान्य भक्तों ने पादुका पूजन कर सत्संग लाभ प्राप्त किया।
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