राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान : हिन्दू संगठन

शब्दवाणी समाचार 26 नवंबर 2019 नई दिल्ली। धर्मरक्षक श्री दारा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुकेश जैन और हिन्दू सन्त स्वामी ओम जी के नेतृत्व में राजधानी दिल्ली के दर्जन भर हिन्दू संगठनों व संविधान विशेषज्ञ विद्धानों की की महाराष्ट्र मसले पर सर्वोच्च न्यायालय के मीडिया पार्क में पत्रकार वार्ता हुई और महामहिम राष्ट्रपति जी को ज्ञापन देकर सर्वोच्च न्यायालय की राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में संविधान विरोधी दखल अंदाजी को तत्काल रोकने की मांग की। हिन्दू संगठनों व संविधान विशेषज्ञ विद्धानों ने महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा भाजपा को 30 तारीख तक बहुमत साबित करने का फैसला संविधान सम्मत पाया और इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में होने जा रही सुनवायी को न केवल गलत पाया बल्कि संविधान का उल्लंघन भी पाया। 



पत्रकार वार्ता में स्वामी ओम जी ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 163.2 में उल्लेखित है ''यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिस के संबंध में इस संविधान द्वारा इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधि मान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं ।
स्वामी ओम जी ने कहा कि संविधान साफ कह रहा है कि राज्यपाल का स्वविवेक से लिया फैसला अन्तिम होगा और उसकी विधिमान्यता को किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता। जिसे कर्नाटक मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया। उसके बावजूद भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश संविधान के दायरे से बाहर जाकर राज्यपाल द्वारा भाजपा को 30 तारीख तक बहुमत साबित करने के फैसले को प्रश्नगत करने जा रहे हैं। महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल के उस आदेश को बदलने की साजिश रची जा रही  है जो अन्तिम है और इसे बदलने का अधिकार इन न्यायाधीशों को संविधान ने नहीं दिया है। इससे साफ होता है कि न्यायाधीश संविधान के प्रति ली सत्य निष्ठा की शपथ को तोड़कर महापाप करने जा रहे हैं।
पत्रकार वार्ता में दारा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुकेश जैन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महामहिम के अधिकार क्षेत्र में लगातार दखल कर रहे हैं। इससे पूर्व भी इन्हीं न्यायधीशों ने आजीवन कारावास का मतलब आजीवन बताकर राज्यपाल के अपराधियों को क्षमा करने के संवैधानिक अधिकार पर रोक लगाने की सजिश रचकर भारत सरकार की जेलों में आजीवन सजा प्राप्त कैदियों को सड़ने के लिये छोड़ दिया। जिसके कारण भारत सरकार जेलो पर हो रहा खर्च कई गुना बढ़ने से सरकार के राजस्व को 54 हजारों करोड़ रुपयों की हानि हो रही है। श्री जैन ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान विरोधियों का अड्डा बताते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री शरद अरविन्द बाबड़े की नियुक्ति में भी संविधान के अनुच्छेद 124क, 124-2 और 124-3 का उल्लंघन किया गया है और इस मामले में महामहिम राष्ट्रपति जी को भी अंधेरे में रखा गया हैं।
हिन्दू संगठनों ने महामहिम राष्ट्रपति जी को ज्ञापन देकर अपील की कि सर्वोच्च न्यायालय में कानून राज के स्थान पर चल रहे जंगल राज को तत्काल रोककर महाराष्ट्र के राज्यपाल के स्वविवेक से लिये गये भाजपा को 30 तारीख तक बहुमत साबित करने के संवैधानिक फैसले की रक्षा करने की कृपा करें। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जिला अदालतों की तरह कार्य करने पर रोक लगाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के जजों की संख्या संविधान के अनुच्छेद 124 का पालन करते हुए सात की जाये।  



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