चूहे इंसानों की तरह एक दूसरे का दर्द समझते हैं

शब्दवाणी समाचारवार 08 दिसम्बर 2019 नई दिल्ली। चूहे को लेकर पहले ये माना जाता था कि वो अपने साथियों को खतरा मानते थे। हाल ही हुए एक शोध में पता चला है कि चूहे एक दूसरे प्रति अधिक सामाजिक हुए हैं और एक दूसरे की भावनाओं को भी समझते हैं। शोध में खुलासा हुआ है कि इंसानों का दिमाग चूहे के दिमाग से मिलता जुलता है। चूहे इंसानों की तरह एक दूसरे का दर्द भी समझते हैं। नीदरलैंड इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंस के शोधकर्ताओं ने हाल ही दो चूहों को एक दूसरे के सामने रखा। इसके बाद एक चूहे के पंजे में हल्का करंट लगाया तो दूसरा चूहा उसकी परेशानी देखकर डर गया। 



शोध पीएलओएस बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। शोध में बताया गया है कि करंट लगने से चूहा उछल रहा था तो दूसरा चूहा उसे घबराहट के साथ देख रहा था। शोध के को-ऑथर रूने ब्रुल्स कहते हैं कि सामने मौजूदा दूसरा चूहा जिस चूहे को करंट लगाया जा रहा था उसके डर, भय और बिजली के झटके को भी महसूस कर रहा था। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर सामने खड़ा चूहा कम डरता है तो जिस चूहे को करंट लगाया जा रहा है उसका भी डर कम होगा। डर की वजह से चूहे एक दूसरे पर कूदते हैं। इससे वे आने वाले खतरे के प्रति खुद को तैयार करते हैं।
प्रमुख शोधार्थी क्रिस्टिन कीजर्स बताते हैं कि हम चूहे के दिमाग के उस हिस्से को समझना चाहते थे जिसमें सहानुभूति होती है। मनुष्य किसी दूसरे के दर्द को देखता है तो उसके दिमाग के बीच एक क्षेत्र सक्रिय हो जाता है। ऐसा तब भी होता है जब हम खुद अपने शरीर में किसी तरह का दर्द महसूस करते हैं। इसी बात का पता लगाना था कि क्या चूहों के दिमाग में भी ऐसा कुछ होता है।
वैज्ञानिकों ने चूहे के दिमाग के उस क्षेत्र में इंजेक्शन लगाया जिससे सहानुभूति होती है। वैज्ञानिक परिणाम देख के हैरान रह गए। पता चला कि इंजेक्शन लगने के बाद बाद साथी चूहे के प्रति चूहे इतने संवेदनशील नहीं थे। इससे साफ हो गया कि इंसानों में संवेदनशीलता, सहानुभूति और एक दूसरे की तकलीफ को समझने की क्षमता चूहों के समान है। 
शोधकर्ताओं ने बताया कि अध्ययन से पहले चूहे एक दूसरे को नहीं जानते थे फिर भी उनमें एक दूसरे के प्रति सहानुभूति देखने को मिली। अध्ययन के वरिष्ठ लेखक वलेरिया गजोला कहते हैं कि क्या हमारा अध्ययन ये बताता है कि जो ये सब देख रहा था वो दूसरे को खतरे के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था जिससे वे खुद को तैयार कर सके। ये पीड़ित की मदद करने की नहीं बल्कि खुद को शिकार बनने से बचाना की कोशिश है।



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