नफरत,नाइंसाफी और शोषण पर रोक लग सकती है, जब आवाज उठाएं नौजवान : कैलाश सत्यार्थी

शब्दवाणी समाचार सोमवार 23 दिसम्बर 2019 नई दिल्ली। यूथ की आवाज समिट 2019 के पहले दिन कैलाश सत्यार्थी का तालियों की जबर्दस्त गड़गड़ाहट से स्वागत किया गया। उन्होंने अपने भाषण से श्रोताओं को निशब्द और निस्तब्ध कर दिया। अपने विचारों से उन्होंने ऑडिटोरियम में बैठे हरेक व्यक्ति की संवेदना को पूरी तरह झकझोर दिया। स्टेज पर आते ही वह बोले, “हर एक पल अहमियत रखता है। हरेक बच्चा महत्व रखता है। हरेक के बचपन का अपना महत्व है।
युवाओं पर देश का भरोसा फिर जताते हुए उन्होंने कहा, “मेरा विश्वास है कि नौजवान की आवाज बदलाव की आवाज है। नौजवानों की आवाज संघर्ष और निर्माण की आवाज है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि युवाओं की आवाज से हम सहमति जताते है या नहीं, लेकिन मेरा मानना है कि युवाओं की आवाज सबसे ज्यादा अहमियत रखती है, जिसे दबाया नहीं जा सकता। युवाओं की आवाज के बिना दुनिया में कोई बदलाव संभव नहीं है।“ उन्हें यह कहते हुए काफी गर्व महसूस हो रहा था कि बदलाव की एकमात्र आधारशिला नौजवान ही है। उन्होंने कहा, “युवाओं के तेज और चमक से मुझे विश्वास है कि भारत सुरक्षित हाथों में हैं।



उन्होंने आज के नौजवानों को अन्याय को खिलाफ खड़ा होने की बधाई दी।  उन्होंने कहा, “युवा मौजूदा दौर में समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे हैं। आज के समय में आर्थिक भेदभाव, हिंसा और असमानता चारों ओर है। आज नफरत, समाज को बांटने, किसी दूसरे देश के लोगों से नफरत और डर, इस्लाम से डर, व्यक्तिवाद और बहुसंख्यकों की अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने की ताकत को दुनिया भर में नौजवान चुनौती दे रहे हैं।
नए भारत का कॉन्सेप्ट लागू करना केवल सरकार का ही फर्ज नहीं है, लेकिन भारतीय नागरिकों का सामूहिक प्रयास है। 50 साल पहले का अनुभव बताते हुए कैलाश ने समाज को पीछे की ओर धकेलने वाली समस्या जातिप्रथा को तोड़ने के अपने प्रयास का जिक्र किया।
उन्होंने एक घटना के बारे में बताते हुए कहा कि एक बार कुछ प्रभावशाली लोगों ने दावा किया कि वह महात्मा गांधी की विचारधारा को मानते हैं, लेकिन उन्होंने अछूत महिलाओं की ओर से बनाया गया भोजन करने से इनकार कर दिया। कैलाश सत्यार्थी को जातिप्रथा के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपने लोगों  की आलोचना का शिकार होना पड़ा।
उनके अपने लोगों ने निचली जाति से जाति प्रथा की गंदगी दूर करने और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए आवाज उठाने के लिए सत्यार्थी को पापी कहकर संबोधित किया। सत्यार्थी ने कहा, “गंदगी करने वाले शुद्ध है या गंदगी साफ करने वाले।“ इस घटना के बाद उनका सामाजिक रूप से बहिष्कार कर दिया गया।  उन्होंने कहा, “किसी व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार करना न्यायपालिका या अदालत की ओर से दी जाने वाली सजा से बढ़कर है।
इस घटना के बाद जब उनके शरीर के रोम-रोम में क्रोध भर गया। उन्होंने पहले पहल विद्रोह कर दिया, लेकिन उऩ्होंने श्रोताओं से कहा, “क्रोध एक ऐसी ऊर्जा है, जो कभी खत्म नहीं होता। अगर आप लगातार अपना गुस्सा दबाते रहेंगे तो यह हिंसा, नफरत और बदले में बदल जाएगा। इस गुस्से को आप अंदर रखें और इसकी शक्ति का प्रयोग रचनात्मक कार्यों में करें।“
कैलाश सत्यार्थी ने अपने सरनेम या उपनाम को हटाकर जाति प्रथा के बंधन को तोड़ा। उनकी जाति से यह पता चलता था कि वह ब्राह्मण हैं। उन्होंने अपने को नया नाम सत्यार्थी दिया, जिसका अर्थ है, “हमेशा सच बोलने वाला।
बाल अधिकारों के क्षेत्र में किए गए अपने कार्य के बारे में बताते हुए उन्होंने दर्शकों को याद दिलाया कि हरेक घंटे आठ बच्चों को बाल मजदूरों या गुलामों के तौर पर बेचा जाता है और बाल वेश्याएं बनाई जाती हैं। अवैध अंग प्रत्यारोपण मामले में कई बच्चे शातिर लोगों के शिकार बन जाते हैं।
उन्होंने बताया कि हरेक घंटे चार बच्चे बाल शोषण, दरिंदगी से भरे दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म का शिकार बनते है। सत्यार्थी ने श्रोताओं को इन निर्मम अपराधों की गंभीरता याद दिलाते हुए कहा कि रेप और गैंगरेप के कई मामले में कोई पारिवारिक सदस्य या पीड़ित की कोई जानकारी ही आरोपी होता है।
उन्होंने कहा, “रेप बहुत ही घृणित अपराध है।“ उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “राम के देश में, कृष्ण के देश में, महावीर और गुरुनानक के देश में, भगत सिंह के देश में, कंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अफसरगुल्ला खान के देश में रेप और गैंगरेप देवियों और महिलाओं के नाम पर धब्बा है। यह कैसा विरोधाभास है। यह कैसी हिप्पोक्रेसी है।
उन्होंने समाज के आखिरी व्यक्ति और हाशिए पर पहुंचे व्यक्ति, जिसके पास कोई संसाधन नहीं है, के बारे में सोचने के लिए श्रोताओं को प्रेरित किया। उन्होंने कहा, आजकल की राजनीति से ज्यादा से ज्यादा अनिश्चय की स्थिति है। ज्यादा से ज्यादा डर फैल रहा है और लोग ज्यादा से ज्यादा असुरक्षा महसूस कर रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी की लगातार दिल को छूने वाले बातों पर ऑडिटोरियम में बैठे श्रोताओं ने बारबार तालिया बजाईं। सत्यार्थी ने वहां बैठे हर व्यक्ति को पूरी तरह आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने लोगों से “भयमुक्त भारत” (एक ऐसा भारत, जहां किसी को कोई डर न हो) के निर्माण के लिए काम करने को कहा।
लोकतंत्र के बारे में उन्होंने कहा, “केवल वार्ता और वादविवाद से ही सच तक पहुंचा जा सकता है। अगर असंतोष और असहमति को दबाया जाएगा तो भारत में विविधता नहीं रह पाएगी। इससे भारत की आत्मा पूरी तरह नष्ट हो जाएगी और हमारा लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा!
उन्होंने नौजवानों को समाज, सरकार और ब्रहमांड के कान बनने के लिए प्रोत्साहित किया। अगर ऐसी स्थिति आएगी तो केवल उसी समय हम “आजादी” का वास्तविकता पर अहसास कर पाएंगे। केवल तभी हम असली “आजादी” हासिल कर पाएंगे।
अपने ताकतवर भाषण को समेटते हुए कैलाश सत्यार्थी ने श्रोताओं से पानी की इकलौती बूंद या किसी पक्षी के चोंच में पानी की बूंद की ताकत का ध्यान देने के लिए कहा। उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा, एकता में ही काफी शक्ति है। “मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभा रहा हूं।“ इस बात से दुनिया बदल सकती है। उन्होंने कहा, “सारी नफरत, सारी इनाइंसाफी और सारा शोषण उसी समय खत्म किया जा सकता है, जब नौजवान इसके लिए आवाज उठाए।“ जैसे ही श्रोताओं ने उनकी बात सुनकर तालियां बजाईं, सत्यार्थी ने इसे मौजूदा समय से जोड़ते हुए कहा, “आइए हम सब लोग एक साथ मिलकर भारत को प्रगति के सफर पर ले चलें। कोई भी पीछे नहीं छूटना चाहिए!



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