फोर्टिस अस्पताल ने पार्किन्सन के लिए लुधियाना में अलग यूनिट स्थापित किया
शब्दवाणी समाचारवार शुक्रवार 06 दिसम्बर 2019 लुधियाना। फोर्टिस अस्पताल वसंत कुंज ने पार्किन्सन से प्रभावित रोगियों के इलाज के लिए लुधियाना में अलग यूनिट शुरू करने की घोषणा की है। यह क्लीनिक हर महीने के दूसरे और चौथे शुक्रवार को खुला रहेगा तथा यहां डीप ब्रेन स्टिमुलेशन काउंसलिंग एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी। इनमें पार्किन्सन मरीज़ों की फिजि़योथेरेपी के अलावा एपोमॉर्फिन (इंजेक्शन एवं पंप) लगाने एवं काउंसलिंग की सुविधा शामिल है।
डॉ माधुरी बिहारी, डायरेक्टर, न्यूरोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, वसंत कुंज ने कहा, “पिछले चालीस वर्षों में डॉक्टर के रूप में अपने सेवाकाल में मेरे सामने ऐसे कई मामले आए जब डीप ब्रेन स्टिमुलेशन ने मरीज़ों को उनके मोटर रिस्पॉन्स में मदद दी। इन मरीज़ों की मांसपेशियां काफी कठोर बन चुकी थी, शारीरिक मुद्राएं भी प्रभावित हुई थीं, बोलने और लिखने में विकार उत्पन्न हो गए थे और उन्हें शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में भी परेशानी पेश आती थी। डीप ब्रेन स्टिमुलेशन एक प्रकार की सर्जरी है जिसमें एक डिवाइस (जो कि इलैक्ट्रोड्स से निर्मित होता है) को ब्रेन के भीतर काफी गहराई में लगाया जाता है और यह ब्रेन के उन हिस्सों को सिग्नल भेजता है जो मोटर रिस्पॉन्स से जुड़े होते हैं। यह प्रक्रिया पार्किन्सन से जुड़ी तकलीफों और तनाव से कुछ हद तक राहत प्राप्त करने का महत्वपूर्ण ऑपरेटिव विकल्प है।
पार्किन्सन रोग एक न्यूरोडिजेनरेटिव डिसॉर्डर है जिसके लक्षण बहुत धीरे-धीरे काफी समय में अभिव्यक्त होते हैं। इसमें मरीज़ की मोटर स्किल्स पर असर पड़ता है क्योंकि इस रोग में सैंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। डीप ब्रेन स्टिमुलेशन के दौरान, ब्रेन में गहराई वाली संरचनाओं को पल्स जेनरेटर, जिसमें पेसमेकर लगा होता है, से जुड़ीमहीन तारों की मदद से उत्प्रेरित किया जाता है। पहले चरण में लीड्स को ब्रेन के नीचे रखा जाता है और इस जगह की पहचान कंप्यूटर वर्कस्टेशन की मदद से ऑपरेशन से पूर्व एमआरआई की मदद से लक्ष्य की गणना कर की जाती है।
डॉ अनुराग गुप्ता, सीनियर कंसल्टेशन, फोर्टिस अस्पताल वसंत कुंज ने कहा, “शुरू में इसे अस्थायी तौर पर लगाया जाता है और चिकित्सक के निर्देश पर मरीज़ ओटी में ही कुछ शारीरिक हरकत (मूवमेंट) करता है। इससे इलैक्ट्रोड्स की सही स्थिति की पहचान हो पाती है। सही पॉजि़शन तय होने के बाद मरीज़ को एनेस्थीसिया दिया जाता है और तारों को त्वचा के नीचे से गुजारकर एक पेसमेकर से जोड़ा जाता है जो कि स्टिमुलेशन उत्पन्न करता है और इसे छाती में त्वचा के नीचे लगाया जाता है। इसके बाद मरीज़ को निगरानी में रखा जाता है। दूसरे चरण में, जो कि तीन से छह महीने बाद होता है, मरीज़ की जरूरतों को ध्यान में रखकर बैटरी की प्रोग्रामिंग को एडजस्ट किया जाता है। यह प्रोग्रामिंग पेसमेकर से होते हुए ब्रेन तक पहुंचने वाले इलैक्ट्रिकल पल्स की शक्ति का निर्धारण करती है।
कंपन, कठोरता, चलने फिरने में तकलीफ पार्किन्सन रोग के शुरूआती लक्षण हैं। यह रोग मुख्य रूप से डोपेमाइन उत्पन्न करने वाले न्यूरॉन्स पर हमला कर उन्हें प्रभावित करता है, पार्किन्सन रोग मानसिक विकारों जैसे डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी और नर्वसनैस को भी पैदा करता है। इस रोग का समुचित रूप से प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधन लगाने होंगे ताकि इससे कारगर तरीके से निपटा जा सके।
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