लेबर कोड व कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर सीटू का जन जागरण अभियान

शब्दवाणी समाचार, वीरवार 21 जनवरी  2021, गौतम बुध नगर। मजदूरों को बंधवा बनाने वाले चारों लेबर कोड़ व किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग के साथ-साथ पथ विक्रेता अधिनियम 2014 को सही तरीके से लागू करवाने आदि मांगों को लेकर सीटू का 17 से 29 जनवरी 2021 तक जन जागरण अभियान व जत्था चलाने का कार्यक्रम तय है उक्त कार्यक्रम के तहत सीटू नेता गंगेश्वर दत्त शर्मा, राम स्वारथ, पथ विक्रेता कर्मकार यूनियन के नेता लोकेश, मनोहर, धर्मेंद्र कुमार, शैलेंद्र, विजय राणा के नेतृत्व में भंगेल फेस- 2, सेक्टर 106 नोएडा और सेक्टर 110 नोएडा मार्केट पर जन जागरण अभियान के तहत नुक्कड़ सभा किया गया जिसमें बड़ी संख्या में पथ विक्रेताओं सहित मेहनतकश लोगों ने हिस्सा लिया। सभा को संबोधित करते हुए सीटू जिलाध्यक्ष गंगेश्वर दत्त शर्मा ने कहा कि मेहनतकश भाईयो और बहनों कोराना बिमारी की रोकथाम का बहाना बनाकर केन्द्र सरकार ने आम लोगों को राहत देने के नाम पर ‘‘ऊँठ के मुह में जीरा‘‘ वाला काम किया। यानि जिस समय लोगों को सबसे ज्यादा हर प्रकार की मदद की जरूरत थी उस समय सरकार ने संवेदनहीनता दिखा कर उनके साथ घोखा किया।

¤ जनधन खातों में 500 रू. मात्र 3 बार आर्थिक मदद भेजी गई जबकि 7500/रू. प्रति माह की मांग ट्रेड यूनियनों ने रखी थी। 

¤ प्रति व्यक्ति प्रति परिवार 10/कि. अनाज देने की बजाए मात्र 5 किलो अनाज ही दिया गया। जबकि एफसीआई, भारत सरकार के पास राशन गोदाम भरे पड़े हैं।

¤ कोरोना-वाॅरियर्स, फ्रंटलाईन कर्मी जो इस लड़ाई में सबसे आगे थे उनको 50 लाख रू. स्वास्थ्य बीमा तो छोड़िए किए काम का वेतन भुगतान तक नहीं किया गया। बहुत सारे कर्मचारियों को मृत्य होने पर मुआवजे की राशि तक नहीं दी गई।

¤ केन्द्र सरकार के आदेश-निर्देश के बावजूद मजदूरों/कर्मचारियों को वेतन भुगतान नहीं किया गया, काम की कमी बताकर लाखों लोगों को ले-आफ, छंटनी की गई। पूरा काम लेकर कम वेतन दिया गया। वेतन कटोतियाँ कर जीविका पर हमला किया गया। घोषित न्यूनतम वेतन का भुगतान सुनिश्चित करवा पाने में उत्तर प्रदेश सरकार विफल रही है।

¤ हर जरूरी वस्तु का दाम बढ़ा कर कालाबाजारी-जमाखोरी करने वाले पूंजीपतियों को अंधाधुंध मुनाफा कमाने की छूट दी गई। केन्द्र व दिल्ली सरकार दोनों ही मंहगाई रोकने में विफल रही हैं।

 कोरोना काल में श्रम कानूनों में मालिक पक्षिय बदलाव कर और तीखा हमला किया गया

 इसमें मुख्य बदलाव 

• स्थाई कामों में स्थाई भर्ती पर रोक। फिक्स टर्म रोजगार को बतौर नीति लाना। बगैर नाटिस कभी भी नौकरी से निकालने की इजाजत देना।

• 40 मजदूरों तक रिकार्ड बनाने में छूट देना।

• 50 मजदूरों से कम पर ठेकेदार को लाईसेंस लेने से छूट देना।

• ठेका मजदूर व दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लाखों-लाख मजदूरों की जिम्मेदारी से मुख्य नियोक्ता (प्रिंसिपल एम्पलायर) को बरी करना। 

• ई.एस.आई. (सी) व पी.एफ. में फंड योगदान में कटौती कर ईलाज के कानून व बीमा कानून को कमजोर किया गया। पी.एफ. की राशि को सट्टेबाजार में निवेश की ईजाजत देकर मजदूरों की भविष्य निधि राशि को बाजार के रहमो करम पर छोड़ दिया गया है।

महंगाई में बेतहाशा वृद्धि, वेतन अदायगी न होना, बडे़ पैमाने पर वेतन कटौती होना, छंटनी के चलते मजदूर-कर्मचारी में गुस्सा स्वभाविक है। कोविड बिमारी के बहाने मजदूर-कर्मचारी के विरोध के स्वर को दबाना व इस बीच सत्तापक्ष में बैठी भाजपा द्वारा किए गए प्रदर्शनों/रैलियों को होने देना केन्द्र सरकार के पक्षपाती रवैये को उजागर करता है।  मजदूर-कर्मचारी अथवा किसानों के विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिये  धारा 188 का पक्षपाती तरीके से इस्तेमाल करना भारतीय संविधान में मिले जनतांत्रिक अधिकारों का हनन है।

• हां एक काम जरूर किया गया, अयोध्या में मंदिर निर्माण का प्रारम्भ।

तो हमें अब समझना होगा कि हिंदुहित की बात करने वाली इस सरकार ने पिछले 1 साल से मेहनतकशों पर कितने घातक हमले किए हैं । चंद पूंजीपतियों से मित्रता निभाने व उन्हें बेईंतहा व के पक्षधर हैं। हमें पूंजीपतियों के हितैषी, मोदी जी का सुझाया हुआ मजदूरों-किसानों को गुलामी का जीवन देने वाला नया भारत चाहिए या सबकी खुशहाली, आपसी प्रेम भाईचारा व सद्भाव का भारत चाहिए ! तय करें ये निर्णायक घड़ी है। आपका निर्णायक संघर्ष ही आपको सुखद भविष्य दे सकता है। 

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