मॉडल-फ़ोटोग्राफ़र अधिराज का लॉकडाउन के दौरान कुछ अनुभव

शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 24 अगस्त 2021, नई दिल्ली। एक खाली दिमाग शैतान का घर होता है - याद है यह मशहूर कहावत जो हमें स्कूल के दिनों में सुनने को मिलती थी। मेरे पिता की एक आदत थी, वे मुझे स्कूल के समय से ही बड़ी कहावते सुनाया करते थे। उस वक्त मुझे इन कहावतों के अर्थ शायद ही समझ आते थे ...वह मेरे पिता की रूचि होगी, यह सोचकर मैं उन कहावतो को टाल देता था ! लेकिन अब मुझे एहसास होता है ... वे जो बातें मुझे बताया करते थे, वे सारी बातें अक्सर मेरे मन को छू जाती हैं ... उनके कितने गहरे तात्पर्य थे। वर्तमान समय में जब पूर्ण लॉकडाउन चल रहा है, तो अधिकांश चीजें सामान्य रूप से काम नहीं कर रही हैं। इन अनपेक्षित दिनों की शुरूवात से सोशल मीडिया, रोज़ के समाचार और वीडियो देखने के बजाय मैं अपना समय कुछ सकारात्मक लेखन पढ़ने में लगा रहा हूँ।  हालाँकि, दुनिया में क्या हो रहा है, इसके बारे में जागरूक होना ज़रूरी है, लेकिन उस हद तक नहीं की हम झूठी खबरों, नकारात्मक विचारों और आलोचनाओं को सुनने में समय गवां दें।  

अक्सर जब हम नकारात्मकता की चपेट में होते हैं तो हममें से बहुत लोग करुणामय होना भूल जाते हैं। मैं, सत्य, करुणा और सहनशीलता का पालन करता हूँ ... जो फालुन दाफा के मूल सिद्धांत हैं। यह मन और शरीर के लिए एक प्राचीन साधना अभ्यास है । इस खाली समय ने वास्तव में मुझे ध्यान अभ्यास के पांच व्यायामों को नियमित रूप से करने में मदद की है ... मैंने अभ्यास की अवधि बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है जो मेरे मन को शांत और संयमित रहने में मदद करता है। इसके अलावा यह अभ्यास प्रतिरोधक शक्ति को मज़बूत बनाने में मदद करता है, इसलिए सहज ही मैं काफी ऊर्जावान और सक्रिय महसूस करता हूँ, भले ही मैं पूरे समय घर पर हूँ।

एक रचनात्मक व्यक्ति और एक स्वयं-सीखे फोटोग्राफर होने के नाते, मुझे लगातार स्वयं को विकसित करने की आवश्यकता होती हैं। इसलिए, अपने ज्ञान को ऑनलाइन बढाने के लिए नियमित रूप से अलग-अलग समय निर्धारित करते हुए, अपने संपादन और रीटचिंग कौशल को और बेहतर बनाने का भी लगातार प्रयास करता हूँ। 

अंत में, मैं इस पूरे परिदृष्य से यह समझता हूँ की हमारे आसपास जो कुछ भी होता है उसके पीछे कुछ बड़े कारण हैं, हमें अपने विचारों और कार्यों के बारे में चिंतन करने का प्रयास करना चाहिए। यह क्षण हमें दिया गया है और हमारे पास यह विकल्प है कि हम अपने निष्क्रिय मन में बुराई को पलने दे या ...हम गर्व से चलें करके सर ऊँचा, मीलों दूर मृगतृष्णा से आगे, उन सूखी झाड़ियों के कांटो के पार, तपते नीरस रेगिस्तान की झुलसाने वाली गर्मी में ... जबकि, पड़ाव अधिक दूर नहीं है, जहाँ ताड़ वृक्ष और सुखमयी जल है भरपूर ... आओ लौटें सब उस अनंत नखलिस्तान को।

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