एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पीटल्स, दिल्ली ने बसिलर इनवैजिनेशन का किया सफल इलाज
शब्दवाणी समाचार, शनिवार 4 सितम्बर 2021, नई दिल्ली। बहुसुविज्ञताओं वाले एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पीटल, द्वारका ने बसिलर इनवैजिनेशन (बीआई) का सफलतापूर्वक इलाज किया है। (यह एक ऐसी स्थिति है जब रीढ़ का ऊपरी सिरा खोपड़ी के आधार को दबाने लगता है। इससे मस्तिष्क की धमनियां दबती हैं और उनपर दबाव पड़ता है। यहां कई नसें होती हैं जो रीढ़ को मस्तिष्क से जोड़ती हैं।) यह सर्जरी 31 साल के एक पुरुष मरीज पर की गई जो बसिलर इनवैजिनेशन से पीड़ित था। यह एक जन्मजात गड़बड़ी है। मरीज हमारे पास लाया गया तो सिर और गर्दन में गंभीर दर्द की शिकायत थी। वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था और धीरे-धीरे उसके हाथों की पकड़ कमजोर होती जा रही थी। सीटी स्कैन और एमआरआई से पता चला कि यह बसिलर इनवैजिनेशन का मामला है। यह एक ऐसी स्थिति है जब मेरुदंड का अस्थिखंड ऊपर की तरफ, खोपड़ी के निचले हिस्से में बढ़ जाता है।
मेरुदंड के इस हिस्से (बसिलर इनवैजिनेशन) को ठीक करने के लिए डीसीईआर (डिसट्रैक्शन, कंप्रेशन, एक्सटेंशन और रीडक्शन) तकनीक का उपयोग किया गया है। स्कल बेस (खोपड़ी के आधार) का परिमाण बढ़ाने के लिए कंप्रेशन और एक्सट्रैक्शन (दबाने और निकालने) की प्रक्रिया का उपयोग किया गया। इसके तहत स्कल के आधार को हटाकर दबी हुई रीढ़ को फैलने दिया गया और रीढ़ के सी1 और सी2 जोड़ (पहला और दूसरा हिस्सा) के बीच एक स्पेसर (केज या पिंजड़ा) डाला गया। दो घंटे की सर्जरी के बाद पहले ही दिन मरीज स्वतंत्र रूप से चल सकता था तथा हाथों की पकड़ भी बेहतर हुई। इस मामले को बहुत ही चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ माना गया क्योंकि किसी भी तरह की जटिलता मरीज को वेंटीलेटर पर निर्भर बना देती और आंतरिक रक्तस्राव होता। सर्जरी के छह महीने बाद सीटी स्कैन से पता चला कि रीढ़ की हड्डी ठीक से दब गई है और बसिलर इनवैजिनेशन में सुधार हुआ है।
बसिलर इनवैजिनेशन एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें रीढ़ का ऊपरी सिरा खोपड़ी के निचले हिस्से में घुस जाता है इससे मस्तिक की नसें दबती हैं और मरीज को तकलीफ होती है। यह नसों की समूह होता है जो मस्तिष्क को रीढ़ की हड्डी से जोड़ता है। इस दुर्लभ स्थिति में मरीज की खोपड़ी खुल सकती है जहां रीढ़ की हड्डी मस्तिष्क से गुजरती है। आम आबादी में इस स्थिति की मौजूदगी एक प्रतिशत होने का अनुमान है। यह स्थिति आमतौर पर मध्यम आय वर्ग के लोगों में बाद के समय में होती है और किसी चोट या बीमारी का परिणाम हो सकती है (इस मामले में जन्मजात)। इस स्थिति के लक्षण गर्दन में दर्द जैसी आम तकलीफ हो सकती है। इसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है जबकि इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
इस पर डॉ. सौरभ वर्मा एचओडी और स्पाइन सर्जरी के कंसलटैंट ने कहा, “हम मरीज को शीघ्र ठीक होते देखकर बेहद खुश हैं। उसे ऑपरेशन के तीसरे दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। यह बहुत ही ट्रिकी मामला था और इसके लिए अनुभवी हाथों की जरूरत थी और हम मरीज को बचा सकें क्योंकि एक टीम के रूप में हमलोगों ने कौशल और कार्यकुशलता का प्रदर्शन किया। इस मामले की चर्चा करते हुए, डॉ. हमजा शेख, स्पाइन सर्जरी में एसोसिएट कंसलटैंट ने कहा, “हम एक और मरीज को सफलतापूर्वक जीवन दान देकर खुशी हमसूस कर रहे हैं। इस दुर्लभ मामले से सफलतापूर्वक निपटने के लिए पूरी टीम को बधाई। सही जानकारी, सुविज्ञता, टेक्नालॉजी और संरचना से युक्त होकर हम चिकित्सा क्षेत्र में नई उपलब्धियां हासिल कर सकती हैं।
Comments