आरोपी दीपक चौरसिया, चित्रा त्रिपाठी, अजित अंजुम न्यायालय में हुए पेश

◆ नाबालिग बच्ची की वीडियो को तोड़ मरोड़कर प्रसारित करने के मामले में 

◆ सैयद सोहेल ‌के विरुद्ध NBW जारी

शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 21 जून 2022, नई दिल्ली। नाबालिग की वीडियो को तोड़-मरोडक़र प्रसारित करने के मामले में बीते गत 6 जून को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शशि चौहान की अदालत में सुनवाई हुई। इस मामले के 8 में से 7 आरोपी दीपक चौरसिया, अजीत अंजुम, चित्रा त्रिपाठी, राशिद, ललित सिंह, सुनील दत्त, अभिनव राज अदालत में पेश हुए। इन सभी आरोपियों को चार्जशीट की प्रतियां भी उपलब्ध कराई गई। एक आरोपी वर्तमान में रिपब्लिक टीवी के सीनियर ऐंकर सैयद सोहेल जो अदालत में पेश नही हुए। जिस पर अदालत ने सैयद सोहेल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करते हुए आदेश दिया कि वह आगामी 20 जुलाई को अदालत में पेश हों। साथ ही न्यायालय से झूठ बोलकर गुमराह किये जाने के आशय से गलत बयान दिए जाने को लेकर पीडित पक्ष द्वारा दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने नोटिस भी जारी किया है।

दरअसल गत 7 जून को सैयद सोहेल को न्यायालय में पेश होना था लेकिन मोहम्मद सैयद सोहेल ने न्यायालय में पेश न होकर अपने वकील के माध्यम से एक अर्जी के माध्यम से बीमारी का हवाला देकर अगली तारीख में पेश होने का वक़्त मांगा था,जिसपर न्यायालय में आरोपी सैयद शोहेल को अगली तारीख में पेश होने का वक्त दिया। लेकिन उसी 7 मई को दोपहर करीब 3 बजे, व रात्रि 9 बजे लाइव में देखा गया,जिसके बाद पीड़ित पक्ष के वकील ने मोहम्मद सोहेल के विरूद्ध झुठ बोलकर न्यायालय को ग़ुमराह किये जाने को लेकर दायर याचिका के माध्यम से कार्यवाही की मांग की गई थी, याचिका में पीड़ित पक्ष के वकील ने यह आरोप लगाया है कि सैयद सोहेल 6-7-8 मई को लाइव कार्यक्रम मे देखा गया जिसकी फुटेज भी न्यायालय को दी गयी है। साथ ही पीडि़ता पक्ष के अधिवक्ता धर्मेन्द्र कुमार मिश्रा ने इस मामले में नामित अन्य व्यक्तियों को आरोपी न बनाने का मामला भी अदालत में उठाया। इतना ही नही अदालत ने आरोप पत्र दाखिल करने वाले अनुसंधान अधिकारी को नोटिस भी जारी किया और अगली सुनवाई जो कि 20 जुलाई को होनी है,उस पर उपस्थित होने का आदेश भी दिया। 

इस मामले की पैरवी कर रहे जन जागरण मंच के लोगो का कहना है कि अब कुछ उम्मीद बंधी है कि पीडि़ता को अदालत से न्याय मिल सकेगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013 की 2 जुलाई को पालम विहार क्षेत्र के सतीश कुमार (काल्पनिक नाम) के घर संत आसाराम बापू आए थे। बापू ने परिवार के सदस्यों सहित उनकी 10 वर्षीय भतीजी को भी आशीर्वाद दिया था। उस समय सतीश के घर के कार्यक्रम की वीडियो आदि भी बनाई गई थी। बापू आसाराम प्रकरण के बाद  न्यूज़ 24,न्यूज़ नेशन, इंडिया न्यूज टीवी चैनलों ने बनाई गई वीडियो को प्रसारित किया था। परिजनों ने आरोप लगाए थे कि उनकी व आसाराम बापू की छवि धूमिल करने के लिए वीडियो को तोड़-मरोडक़र अश्लील अभद्र तरीके से प्रसारित किया गया था। साथ ही पीड़िता व उनके परिवार को दलाल, लड़की सप्लायर बताकर साथ ही उनके घर को गुफा कांड, अश्लीलता का अड्डा बताकर पेश किया था। जिससे परिवार व मासूम बालिका को मानसिक व सामाजिक रुप से कष्ट झेलना पड़ा था। आहत होकर परिजनों ने पालम विहार पुलिस थाना में 2013 में ज़ीरो FIR दर्ज कराई थी। 

ज़ीरो एफआईआर से पूर्ण एफआईआर दर्ज होने में दो वर्ष लग गए उसके बाद भी पुलिस द्वारा 2 साल तक कार्यवाही नही कर मामले को बंद कर दिया गया था। इस मामले में आरोपियों को बचाने हेतु गुरूग्राम पुलिस द्वारा भरसक प्रयास किया गया। लेकिन जब यह मामला हाइकोर्ट पहुँचा और हाइकोर्ट ने संज्ञान लेकर अपनी निगरानी रखते हुए पुलिस को आदेशित किया तो मजबूरन पुलिस को कार्यवाही हेतु बाध्य होना पड़ा। जिसके बाद दीपक चौरसिया, चित्रा त्रिपाठी, अजित अंजुम, अभिनव राज, सुनील दत्त, ललित सिंह आदि के विरुद्ध 2020- 21 में दाखिल की गई चार्जशीट में विभिन्न धाराओं 120b, 469, 471,आईटी एक्ट 67 b, पोक्सों एक्ट 13c, 14(1) 180 के तहत 10 साल की बच्ची और उनके परिवार के 'संपादित' व 'अश्लील' वीडियो दिखाने, और उन्हें आसाराम बापू के यौन उत्पीड़न मामले से जोड़ने के लिए नामित किया गया. दाखिल की गई चार्जशीट में पुलिस ने दावा किया कि आरोपियों को गिरफ्तार करने से "कानून व्यवस्था" बिगड़ सकती है। 

जिस पोक्सों में पुलिस को आरोपियों की गिरफ्तारी कर बाद में चार्जशीट पेश करनी चाहिए थी ऐसे मामले में पुलिस ने बगैर गिरफ्तार किये ही चार्जशीट पेश किया,जबकि दीपक चौरसिया ने पुलिस को जाँच में सहयोग भी नही किया है। पीड़ित परिवार को सेसन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि पुलिस ने जानबूझकर मामले को करीब तीन बार बंद कर दिया गया था, आरोपियों द्वारा मामले को दबाने में कोई कसर नही छोड़ा गया, वर्तमान में मामला न्यायालय में हैं आगे जो भी होगा वह न्यायालय तय करेगी, लेकिन 9 साल बाद अब पीड़िता परिवार को न्याय की उम्मीद जगी है।

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