मोटापे की जेनेटिक उलझन

◆ शरीर के वजन को काबू में रखने के लिए कर रहे हैं संघर्ष तो आपने डीएनए के योगदान को समझिए 

शब्दवाणी समाचार, शुक्रवार 3 मार्च 2023, (लेख इंडस हेल्थ प्लस में संयुक्त प्रबंध निदेशक और प्रिवेंटिव हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट श्री अमोल नायकावाड़ी) सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, नई दिल्ली। भारतीयों में मोटापे की समस्या काफी तेजी से उभर रही है। इसे दिल की बीमारी और डायबिटीज जैसे गैर संक्रामक रोगों के बढ़ते सामाजिक-आर्थिक बोझ से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके अलावा सुस्‍त जीवनशैली जीने और ज्यादा कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों में हाल ही में मोटापा महामारी के स्तर तक पहुंच चुका है। हालांकि, इस तरह के माहौल में रहने वाला हर व्यक्ति मोटापे का शिकार नहीं होता। न तो सभी लोगों के शरीर पर फैट का जमाव एक जैसा होता है और न ही सबकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एक जैसी होती हैं। परिवार या एक वंश या जातीयता से जुड़े लोगों में इस तरह की असमानताएं हो सकती हैं। लोगों में धीरे-धीरे होने वाले जेनेटिक बदलाव भी मोटापे के एक महामारी में उभरने का कारण हो सकता है। फिर भी एक जैसे माहौल में रहने वाले लोगों की शारीरिक संरचना में अंतर होता है और उनकी प्रतिक्रिया भी अलग-अलग होती है। इससे मोटापे के उभरने में जीन्स के शामिल होने की संभावना बढ़ती है। 

2019 और 2021 के बीच किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार हर चार में से एक भारतीय मोटापे का शिकार है। घरेलू सर्वे के अनुसार करीब 23 फीसदी पुरुषों और 24 प्रतिशत महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स 25 या उससे ज्यादा है। 2015-16 के मुकाबले पुरुषों और महिलाओं के बीएमआई में चार फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। सर्वे में पांच साल से कम उम्र के 3.4 फीसदी बच्चों में बॉडी मास इंडेक्स की मात्रा ज्यादा पाई गई। इसके मुकाबले 2015-16 में केवल 2.1 फीसदी बच्चों में ज्यादा मोटापा और बीएमआई देखा गया था। कुल मिलाकर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मोटापा ज्यादा पाया गया। सर्वे के अनुसार शहरों में 40 से 49 साल के लोगों में मोटापा तेजी से बढ़ा, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 50 से 59 साल के आयुवर्ग के लोगों में मोटापे में बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा ज्यादा वजन के लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है, शहरों में रहने वाले लोगों में ग्रामीणों की तुलना में मोटापे का ज्यादा असर देखा गया।    

शरीर जीन्स से यह निर्देश लेता है कि किस तरह वातावरण में होने वाले बदलाव पर अपनी प्रतिक्रिया देनी है। रिश्तेदारों, जुड़वां बच्चों और गोद लिए गए बच्चों के जीन्स में समानता और अंतर हमें अप्रत्यक्ष रूप से यह वैज्ञानिक सबूत देता है कि किस तरह जीन्स का अनुपात अलग-अलग लोगों के वजन में विविधता के लिए जिम्मेदार होता है। इस संबंध में किए गए दूसरे अध्‍ययनों में जीन्स की विविधता को देखने के लिए मोटे और कम वजन के लोगों के बीच तुलना की गई। जीन्स की विविधता विभिन्न लक्षणों को प्रभावित कर सकती है (जैसे ज्यादा खाना या शिथिल और निष्क्रिय रहना) या मेटाबॉलिज्‍म (इसमें आहार में लिए गए वसा युक्त पदार्थों का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की क्षमता कम होती है), बॉडी में फैट जमा होता रहता है। रिसर्च ने कई जीन्स में अलग-अलग रूपों की खोज की है। इन जीन्स के प्रभाव से ज्यादा भूख लगती है और ज्यादा खाने की इच्छा होती है। यहां यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि जेनेटिक विविधता के साथ जीवनशैली और पर्यावरण से जुड़े कारक भी किसी व्यक्ति के मोटापे से ग्रस्त होने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। भारतीयों में पर्यावरण से जुड़े कुछ कारक मोटापे को बढ़ाने में योगदान दे सकते है और किसी जीन्स की खास प्रवृतियों से यह क्रिया-प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इसलिए मोटापे से बचने, उसे मैनेज करने के लिए संतुलित आहार,नियमित व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली बेहद जरूरी है।  

भारत में मोटापे को बढ़ावा देने वाले प्रमुख पर्यावरणीय कारकों में से एक कारक लोगों की खान-पान की आदतों में बदलाव है। रेशे युक्त खाद्य पदार्थों और काब्रोहाइड्रेट्स से युक्त परंपरागत भारतीय भोजन की जगह अब पश्चिमी शैली के भोजन ने ले ली है, जिसमें वसा, चीनी और प्रोसेस्‍ड खाद्य पदार्थों की मात्रा ज्यादा होती है। इससे शरीर में पहुंचने वाली ऊर्जा की मात्रा में बढ़ोतरी होती है और एनर्जी के खर्च होने में कमी आती है, जिससे शरीर का वजन बढ़ता है और मोटापा आता है। इसके अलावा शहरीकरण ने भारत में मोटापे के मामले बढ़ने में अपना योगदान दिया है। शहर के लोगों में मोटापा सुसत जीवनशैली और हाई कैलोरी के खाद्य पदार्थों तक आसान पहुंच की वजह से बढ़ रहा है। आर्थिक और सामाजिक दर्जा भी मोटापे से जुड़ा है। कम आय वर्ग के लोगों की सेहतमंद भोजन तक कम पहुंच होती हैं। इसके चलते वह हाई कैलोरी के फूड पर ही निर्भर रहते हैं, जिससे मोटापे का खतरा भी बढ़ता है। 

कुल मिलाकर, भारत में जेनेटिक संवेदनशीलता और पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारक दोनों भारत में मोटापे के विकास में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जीन्स की खास प्रवृत्तियों और मोटापे को बढ़ाने वाले माहौल के मिले-जुले असर से भारतीयों में मोटापे का खतरा ज्यादा हो सकता है।  मोटापे को रोकने के लिए अपनी जींस की संरचना से वाकिफ होना बहुत जरूरी है। इसके लिए आहार में खाद्य पदार्थों के चयन पर निगाह रखना जरूरी है। जीवनशैली और पर्यावरण से संबंधित कारकों को बदला जा सकता है, जबकि जीन्स इसकी तुलना में स्थायी होते हैं इसलिए जागरूक रहने के साथ ही सेहतमंद खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करना और नियमित व्यायाम करना मोटापे से बचाव और शरीर के वजन को नियमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मोटापे के जेनेटिक जोखिम से जूझ रहे लोगों को वजन को नियंत्रित रखने के लिए अपनी डाइट में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, फल और सब्जियों को शामिल करने और रोजाना कसरत करने से मदद मिल सकती है। 

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