फिल्म समीक्षा : मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे (Mrs Chatterjee vs Norway)
शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 14 मार्च 2023, (फिल्म समीक्षक : रेहाना परवीन) सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, नई दिल्ली। फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे सिनेमा घरों में 17 मार्च 2023 को प्रदर्शित हो रही है बीती रात को मीडिया प्रीमियर में इस फिल्म को दिखाया गया। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है जो साल 2011 की बात है जब नॉर्वे बाल कल्याण सेवा ने अनुरूप और सागरिका भट्टाचार्य के दो बच्चों को फॉस्टर केयर में भेजा था. नॉर्वे के अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि सागरिका भट्टाचार्य ने अपने दो बच्चों अभिज्ञान और ऐश्वर्या को थप्पड़ मारा, जबरदस्ती खिलाया और बच्चों पर अत्याचार किया. अधिकारियों के मुताबिक, बच्चों के पास खेलने के लिए जगह भी नहीं थी और कपल पर अपने बच्चों को सही से ना रखने का आरोप भी लगाया था. नॉर्वे की CWS ने बच्चों को फॉस्टर केयर में भेजने का फैसला लिया. इसके साथ ये भी तय किया कि बच्चे 18 साल की उम्र तक वहीं रहेंगे और पैरेंट्स को उनसे मिलने की इजाजत नहीं होगी। आखिरकार इस मुद्दे को भारत सरकार को आगे आना पड़ा था।
मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे एक बॉलीवुड ड्रामा फिल्म है जो अशिमा चिब्बर द्वारा लिखित और निर्देशित है। फिल्म में रानी मुख़र्जी सहित अनिर्बान भट्टाचार्य, नीना गुप्ता और जिम सरभ इस फिल्म में सहायक भूमिका में नजर आएंगे। मोनिशा आडवाणी, निखिल आडवाणी और मधु भोजवानी इस फिल्म के निर्माता हैं। बॉलीवुड की पॉपुलर एक्ट्रेस रानी मखर्जी की फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे में रानी मुखर्जी ने अभिनय बहुत अच्छा किया है। फिल्म में रानी मुखर्जी ने मिसेज चटर्जी का किरदार निभाया है। फिल्म में दिखाया गया है कि एक इंडियन बंगाली कपल नॉर्वे में रहता है। वहां पति काम में बहुत व्यस्त हो जाता है और पत्नी दो बच्चों के साथ खुशी के साथ जीती है। मगर कुछ समय बाद नॉर्वे की सरकार उन बच्चों को अपनी कस्टडी में ले लेती है क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चों की परवरिश अच्छे से नहीं हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मिसेज चटर्जी बच्चों को काला टीका लगाती हैं, हाथ से खाना खिलाती हैं और जमीन पर लिटाकर उनके साथ खेलती हैं. मिसेज चटर्जी कहती हैं कि ये भारतीय सभ्यता है लेकिन नॉर्वे सरकार इसे लापरवाही कहती है।
रानी मुख़र्जी के अभिनय ने पूरी फिल्म दर्शकों को अपनी सीट से हिलने नहीं दिया फिल्म अच्छी है। दो देशों में संस्कार अलग-अलग हो सकते हैं। इसलिए प्रत्येक देश को दूसरे देश के संस्कार को भी मान्यता देकर देखना चाहिए फिल्म यह संदेश भी देती है। फिल्म परिवार के साथ देखा जा सकता है इसलिए इस फिल्म को में पांच में से चार स्टार देती हूँ।
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