मारीच और सुबाहु दोनों अविद्या रूपी ताडका के पुत्र हैं : स्वामी नारायणानंद

शब्दवाणी समाचार वीरवार 21 नवंबर 2019 (आशीष निगम) मौदहा,हमीरपुर। कस्बे के स्थानीय बड़ी देवी मंदिर प्रांगण में चल रहे नौ दिवसीय श्री रामकथा के दौरान बुधवार को चौथे दिन अनंतश्री विभूषित काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराजश्री ने कहा कि ब्रम्हर्षि विश्वामित्र यज्ञ रक्षणार्थ श्री राम व लक्ष्मण को लेकर जब वन से प्रस्थान कर रहे थे तब मार्ग में ताड़का राक्षसी मिल गयी। जिसका वध श्रीराम ने किया, क्योंकि ताड़का अविद्या की मूर्ति है। जब तक अविद्या का संघार नहीं होता है और अविद्या का संघार चाहे ईश्वरीय ज्ञान से हो, चाहे शास्त्रीय ज्ञान से हो, महापुरुषों के उपदेश से हो, चाहे सत्कर्म से हो तब तक धर्म और विश्व मानवता की रक्षा नहीं हो सकती है। विश्व व मानवता की रक्षा में हमेशा आतंकवाद व नक्सलवाद खतरा होता है। विश्व व मानवता की रक्षा के लिए इनका संघार जरूरी होता है।



महाराजश्री ने बताया कि जो लोग धर्म का संकीर्ण अर्थ करते हैं वह सेवा नहीं करते। धर्म बहुत व्यापक वस्तु है। जैसे अग्नि की जो दाहकता है वही उसका धर्म है और जल में को आप्यायन शक्ति है तर कर देने की शक्ति है वही उसका धर्म है। अर्थात वस्तु में उसके वस्तुत्व की रक्षा करने वाला धर्म होता है क्योंकि उस वस्तु की रक्षा उसके धर्म के बगैर नहीं हो सकती। हममें और आपमें धर्म नामक वस्तु नहीं रहेगी तो हम और आप सुरक्षित नहीं रह पायेगें, मनुष्यता व मानवता सुरक्षित नहीं रह पाएगी।इसलिए सम्पूर्ण विश्व सृष्टि में एक धर्म है जिसका नाम है सनातन धर्म। किसी देश में एक काल में एक धर्म पैदा नहीं होता है। जो व्यक्ति मूलक धर्म होता है, परम्परा मूलक धर्म होता है और जो भूगोल मूलक धर्म होता है वो आपस में विषमता पैदा करती है। आज दुनिया के जितने साम्प्रदायिक धर्म हैं वो लड़ाई के केंद्र बिंदु बने हुए हैं। परन्तु सनातन धर्म सब जातियों में एक है, सब सम्प्रदायों में एक है, सब कालों में एक है वही धर्म का मूल है।
पूज्य शंकराचार्य जी ने बताया कि मारीच व सुबाहू दोनों अविद्या रूपी ताड़का के पुत्र हैं। जो स्वयं अविद्या स्वरूप हैं। इनमें जो मारीच अविद्या है वो भौतिक प्रपंच का प्रतीक है। मारीच माने मृगतृष्णा अर्थात मृगमरीचिका। जिसे तत्वज्ञान प्राप्त करना है उन्हें श्री राम की तरह विश्व प्रपंच को दूर फेक देना चाहिए। अगर प्रपंच की प्रतीति बनी रही तो वही मारीच  आध्यात्मिक चेतना रूपी माता सीता को लुभाकर हरण करवाने में रावण का सहयोग करता है। और अविद्या का दूसरा पुत्र सुबाहु कर्मलिप्त कर देता है। उसके सामने दूसरे का कष्ट, मानवता का कष्ट, धर्म का यहां तक कि ईश्वर का भी ध्यान नहीं रहता है। जिव को ऐसा मोहित कर देता है जिस कारण से लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर के स्वार्थ में आसक्त होते हैं और अपने बंधु बांधव से भी द्रोह कर लेते हैं। राम जी ने सुबाहू को मार दिया। इसलिए अज्ञान अर्थात अविद्या का संहार होने के बाद कहीं सत्कर्म होता है। इस कार्यक्रम का आयोजन नारायण सेवा समिति एवं श्रीराम उत्सव समिति द्वारा किया गया है। जिसमें समिति के समस्त पदाधिकारीगण एवं अन्यान्य भक्तों ने कथा लाभ प्राप्त किया।



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