हंगामा क्यों है बरपा

शब्दवाणी समाचार शनिवार 14 दिसम्बर 2019 (परवेज़ अखतर) नई दिल्ली। आर्टिकल शुरू करने से पहले  जावेद अखतर साहब की चार लाइने,  
जो बात कहने से डरते हैं सब 
वो बात लिख।
रात इतनी काली कभी ना थी
ये बात लिख।। 
जिस पेन से लिखते थे कसीदे मुहब्बत के।।
अपने ज़मीर को जगा कर आज की 
हकीकत को लिख।।



ये बात समझने की ज़रूरत है नर्स (नेशनल रजिस्टर सिटिज़न) कैब (सिटिज़न एन्डेमेन्ड बिल ) का बिल पास होने से देश में कोहराम का आलम क्यों बन गया है क्यों इतनी तन्ज़ीमे (संगठन) सड़क पर उतर आयीं 
क्यों दफ़तर जलाये जाने लगे क्यों रास्ते बंद किये जाने लगे क्यों धरना प्रदर्शन शुरू हो गये ।।
क्या प्रदर्शन करने वाले लोग बेवकूफ़ हैं ?
इस बिल की मुखालफ़त करने वाले लोग बेवकूफ़ है ?
नहीं बेवकूफ़ नहीं हैं इनमे तमाम बुद्धि जीवी लोग भी हैं तमाम देश के बहुत ही दिग्गज लोग भी हैं, तमाम बहुत अच्छे दिल, व अच्छे विचार के लोग भी हैं, इनमे हिन्दू भी हैं मुसलमान भी हैं, 
और दूसरी कौम के लोग भी हैं, और दूसरे देश के लोग भी हैं, यहाँ तक अमेरिकी सान्सद भी हैं, 
जिनका ये खुल कर मानना है कि ये बिल भारत के लिये बहुत ही खौफ़नाक मन्ज़र ले कर आयेगा।
ध्यान दें 
अभी तक इन्डियन सिटिज़न एक्ट कह रहा है 
26 जनवरी 1950 से जुलाई 1987 के दरमियान में पैदा होने वाला हर लङका / लङकी जो भारत में पैदा हुआ है, वो हिन्दुस्तानी है।
Section-03-The Indian Citizenship-Act-1955.
1 जुलाई 1987  से लेकर दिसम्बर  2003 के दरमियान जो भी लङका / लङकी हिन्दुस्तान में पैदा हुआ हो और उस के माँ बाप में से कोई भी हिन्दुस्तानी हो वो हिन्दुस्तानी माना जाएगा 
उसे हिन्दुस्तानी शहरियत हासिल होगी
Section-3-The Indian Citizenship Act-1955 
2004- से आज तक जो भी लङका / लङकी भारत में पैदा हुआ हो जिस में माँ और बाप दोनों भी हिन्दुस्तानी हो या दोनों में से कोई भी 
गैर क़ानूनी तौर पर हिन्दुस्तानी सरहद में दाख़िल ना हुआ हो वोह भी हिन्दुस्तानी माना जाएगा 
Section-3-The Indian Citizen Act-1955)
उसके बावजूद हंगामा इस लिये बरपा है कि इन एक्ट में मौजूदा सरकार *संशोधन* करना चाहती है संशोधन भी ऐसा कि इसके होने से देश का माहौल इतना खराब हो जायेगा, इतना गर्म हो जायेगा कि क्या हिन्दू क्या मुस्लिम या क्या ही और धर्म के लोग सबके सामने एक ऐसी विपदा खड़ी हो जायेगी और एक खतरनाक माहौल बन जायेगा जैसा के देश के *विभाजन* (पार्टिशन) के वक्त हुआ था 
सिटिज़न अमेंडमेन्ड बिल (CAB) को दोनों सदनों से पास करा के सरकार ये काम करने जा रही है 
कि 
पिछले 6 साल से जो भी हिन्दु या बौद्ध धर्म के लोग यहाँ तक इसाई भी 
भारत में रह रहा है उसको तो भारत की *नागरिकता* मिलेगी, 
पर *मुसलमानों* को अपने बाप दादा का कोई ऐसा प्रूफ़ देना होगा जिससे साबित हो कि वो *1948 के पहले* से भारत में रह रहे थे।
जो कि शायद काफ़ी मुसलमानों के लिये 
काफ़ी मुश्किल होगा साबित करना 
शायद ये *हिटलरी फ़रमान* ही होगा क्योंकि अपना देश काफ़ी हद तक *डिज़िटलाईजेशन* हो चुका है है बावजूद उसके सरकारी दफ़तर से रक्षा मंत्रालय की फ़ाईल गायब हो जाती, 
अपने देश में लाखों मुकदमे सिर्फ़ इसलिए पेन्डिन्ग हैं के उन मुकदमों दस्तावेज़ नहीं मिल रहे हैं।
तमाम सरकारी काम उलट पुलट हैं क्योंकि उनसे सम्बन्धित फ़ाईलें गायब हैं।
तो फ़िर ये कैसे आसान होगा कि 
काफ़ी हद तक कम पढ़े लिखे मुसलमानों से ये उम्मीद की जायेगी के वे 70 साल पहले के दस्तावेज सम्हाले होंगे, और उसको दिखा पायेंगे।
इसी तुगलगी फ़रमान की वजह से 
आज देश में कोहराम का आलम बनता जा रहा है, 
तमाम बुद्धिजीवी लोग फ़िर वो हिन्दू हों मुसलमान हों या फ़िर किसी भी कौम के लोग हों  *बेहद फ़िक्रमन्द* इस लिये हैं, कि 
अगरचे  नेहरू जी ने गांधी जी ने या फ़िर जिन्ना न और उस वक्त की मौजूदा संसद ने बन्टवारे जैसा घृणित काम किया था ,तो क्या ज़रूरी है वो काम फ़िर दोहराया जाये, 
अरे भारत में रह रहे आज के मुसलमानों के पास इससे बड़ा सुबूत और क्या होगा के बंटवारे के वक्त आज के मुसलमानों के पूर्वज़ भारत में ही रहे, 
देश के लिए इतनी कुरबानीयाँ देने के बाद इस देश से मोहब्बत करने वाले हमारे तमाम जां निसार पूर्वज़ अपने इसी देश की मिटटी में मिलने के लिये इसी देश में रह गये।
और इससे बड़ा और कौन सा सुबूत देंगे कि आज़ादी दिलाने से लेकर देश को उंचाई तक पहुँचाने में मुसलमानों का भी बहुत बड़ा हाथ है, 
 (सारे जहाँ से अच्छा) और देश प्रेम के तमाम नारों व तरानों को यहीं के मुसलमानों ने दिया।
आज देश में बेश कीमती इमारतों से लेकर प्रमाणू बम तक  इज़ाद करने का श्रेय मुसलमानों को जाता है, 
पर ये कोई एक तरफ़ा यानि मुसलमानों की ही बात नहीं है इन सब योगदान में हिन्दू भाई भी शामिल रहे हैं।।
आज देश और किन किन दिक्कतों का सामना कर रहा है इस पर ध्यान तो दिया नहीं जा रहा है।
पूरी तरह नफ़रत की राजनीति करके समस्याओं पर खुद भी ध्यान नहीं दिया रहा है।
और देश वासियों का भी ध्यान भटकाया जा रहा है।
मशहूर शायर मुनव्वर राना जी ने एक लाईन बोली थी 
के 
 लगेगी आग तो आयेंगे कई घर ज़द में
 *यहाँ सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है।।
सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है ।।
हाँ दोस्तों इतिहास गवाह है और ये एक कड़वी सच्चाई भी है 
कि 
ये नफ़रत के बीज़ बोने वाले लोग *पूरी तरह सुरक्षित* रहते हैं  पर 
मरते हैं और बर्बाद होते हैं गरीब लोग मध्यम वर्गीय लोग 
रोज़मर्रा की कमाई करने वाले लोग। 
(किसी भी कौम के) 
वो लोग जो अपने परिवार को पालने के लिये जददोज़हद कर रहे हैं,
अरे ये परिवारिक जददोज़हद ही तो है, 
के 
आपने नोट बन्दी की सबने मन मसोस कर कुबूल कर लिया, 
आपने GST लगाई सबने मन मसोस कर कुबूल कर लिया, आप FDI बिल लाये सबने भरे मन से एक्सेप्ट कर लिया, 
आपने पेट्रोल मंहगा कर दिया आपने गैस  मंहगी कर दी पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ने से हर चीज़ मंहगी कर दी,
आप नौकरियां खा गये, आपने नौकरी देना बंद कर दिया, कोई नया अस्पताल बनवाया नहीं, कोई नया कालेज़ बनवाया नहीं, 
आपने देश की GTP लेवल बिल्कुल डाऊन कर दिया, 
रुपये को पूरी तरह कमज़ोर कर दिया, 
मंदिर मस्जिद, शहर का नाम बदलने, कब्रस्तान व शमशान बंगलादेश और पाकिस्तान की राजनीति के अलावा और कुछ किया नहीं, 
पुलवामा कांड का आज तक खुलासा किया नहीं कि इतना विस्फ़ोटक कहाँ से और कैसे आ गया, 
बहरहाल 
अब जब सब हर हाल में अपने आप को *हालात* के हिसाब से ढाल कर जीने की कोशिश कर रहे हैं तो एक नया *शिगूफ़ा* छोड़ दिया, 
कब तक किया जायेगा ये सब 
क्या आप लोग हिटलर के वो डायलाग को ही सही साबित करना चाह रहे हैं, 
जिसमे उसने कहा था 
कि 
 जनता को इतना निचोड़ दो, इतना जकड़ दो कि वो 
 जिन्दा रहने को ही विकास समझने लगे ।।
आखीर में हम ये कहना चाहेंगे, कि  विभाजन के वक्त 
सिर्फ़  दो आदमियों 
 (नेहरू जी व जिन्ना ) की ज़िदद की वजह से हिन्दुस्तान दो टुकड़ों में बंट कर उसका दंश आज भी झेल रहा है, 
अब वही चीज़ *दो लोगों* की ज़िदद से फ़िर दोहराने की कोशिश की जा रही है, 
जोकि शायद किसी भी मायने में ठीक नहीं है।।
क्यों कि तब में अब में बहुत फ़र्क है।
आज का हिन्दू भी और मुसलमान भी पढ़ा लिखा और जागरुक है।
आखीर में हम यही पूछेंगे 
के 
क्या यही है विकास ।
क्या यही है अच्छे दिन ।
क्या यही है भाईचारा ।



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