अंतरराष्ट्रीय पूंजीवादी व्यवस्था जनता को न्याय नहीं दिला सकती : मुनेश त्यागी

शब्दवाणी समाचार, रविवार 18 जुलाई 2021गौतम बुध नगर। 17 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय दिवस है और यह पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है। मगर सवाल यह है कि मानव द्वारा इतनी उन्नति करने के बाद भी न्याय दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? विश्व के अरबों लोग सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से सस्ते और सुलभ न्याय से वंचित हैं।पूंजीवादी व्यवस्था कहती है कि वह मानव सभ्यता की आखिरी मंजिल है, अगर यह व्यवस्था मानव सभ्यता की आखरी मंजिल है तो इसमें सस्ता, सुलभ और वास्तविक न्याय से अरबों लोग करीब 4 अरब से ज्यादा लोग न्याय से वंचित हैं आखिर क्यों?

ऐसा इसलिए है कि न्याय अधिकांश सरकारों के एजेंडे में नहीं है। न्याय का बजट आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम है, मुकदमों का अंबार लगा हुआ है, करोड़ों मुकदमे पेंडिंग है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक मुकदमों के अनुपात में न्यायिक अधिकारीगण, पेशकार, स्टेनो नहीं हैं, पर्याप्त संख्या में अदालतें नहीं है और दूसरे जरूरी पैराफर्नीलिया नहीं है। हमारा देश इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है जहां पर 4 करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग हैं, मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीश नहीं हैं, स्टेनो और पेशकार नहीं हैं। 25 हाई कोर्टों में 40 परसेंट पद खाली हैं और लोअर ज्यूडिशरी में 25 परसेंट से ज्यादा जजों के पद खाली हैं, बहुत बड़ी संख्या में स्टेनो और पेशकारों की बड़ी कमी है, अदालतों की बड़ी कमी है।

 न्यायप्राप्ति बहुत महंगा सौदा हो गया है, सस्ता और सुलभ न्याय लोगों के सपनों से भी परे हो गया है। वैसे भी सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था का इतिहास बताता है कि यह व्यवस्था दुनिया में सबसे ज्यादा अन्याय, शोषण और हिंसा पर टिकी हुई है, यह मनुष्यों, मजदूरों, किसानों और उपभोक्ताओं का खून चूस कर पुष्पित पल्लवित होती है, यह मजदूरों किसानों और उपभोक्ताओं का शोषण करती है जो दुनिया में सबसे बड़ी हिंसा है और उन्हें आर्थिक रूप से लूटती है और शक्तिशाली बनती जाती है।

पूंजीपति लुटेरे देश दूसरे देशों पर आधिपत्य जमाते हैं, वहां हस्तक्षेप करते हैं और अपने मनमाने प्यादे बैठा कर अपना शोषण बढ़ाने और बनाए रखते हैं। अमेरिका और यूरोप के देश इसका उदाहरण है और इसके द्वारा दुनिया के अनेक  ,,दक्षिणी अमेरिका, पश्चिमी एशिया में क्यूबा, बोलीविया,वेनेजुएला, मेक्सिको, पीरु, ब्राजील, अर्जेंटीना, चिल्ली, कोलम्बियाई, इराक, ईरान, टर्की, सीरिया, लीबिया, पाकिस्तान ,अफ़गानिस्तान यूक्रेन आदि देश इसके उदाहरण हैं। वहां अंतरर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ खुल्लमखुल्ला आंतरिक हस्तक्षेप किए जाते हैं।

नई आर्थिक नीतियां ,,,,,उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण इसके उदाहरण हैं जिसके द्वारा मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा जनता का खून चूसा जाता है उनके साथ अन्याय किया जाता है। यह व्यवस्था दुनिया के लोगों को न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती। असली न्याय केवल और केवल समाजवादी व्यवस्था में ही मोहिया कराया जा सकता है, जहां सबको शिक्षा, सबको काम, सबको स्वास्थ्य, सब को सुरक्षा, सबको न्याय  मुहैया कराये जाएंगे। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था दुनिया के 4 अरब से ज्यादा लोगों को सस्ता सुलभ और शीघ्र न्याय उपलब्ध नहीं करा सकती, क्योंकि यह पूरी व्यवस्था ही शोषण और अन्याय पर आधारित है और शोषण और अन्याय इसके खून में रचे बसे हैं।

हम यहां जोर देकर कहेंगे कि दुनियाभर के अन्याय, हिंसा और शोषण के शिकार लोगों को सस्ता सुलभ और अविलंब न्याय समाजवादी व्यवस्था में ही मुहैया कराया जा सकता है क्योंकि यह व्यवस्था मानव के शोषण अन्याय और हिंसा पर आधारित नहीं है यह मानव मैत्री पर आधारित है और वैश्विक स्तर पर मानव मैत्री पर आधारित व्यवस्था में ही जनता को सच्चा, सुलभ और वास्तविक न्याय मिल सकता है और वहीं पर अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।

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