बाल दिवस पर ब्रेट ली का अनुरोध बच्चों की सुनने की क्षमता को स्वस्थ रखने पर दिया जाए ध्यान

शब्दवाणी समाचार शुक्रवार 15 नवंबर 2019 नई दिल्ली। बाल दिवस मनाने के लिए नई दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल सायंसेस (एम्स) के सहयोग से लिटिल थिएटर ग्रुप ऑडिटोरियम में आयोजित किए गए इस विशेष कार्यक्रम में कॉक्लियर के ग्लोबल हियरिंग अम्बेसडर और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाडी ब्रेट ली ने बच्चों के माता-पिता और सरकार, अधिकारीयों से अनुरोध किया कि बहरेपन की समस्याओं पर, खास कर बच्चों में सुनने की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। एनसीआर के सभी अस्पतालों में यूनिवर्सल न्यूबॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यूएनएचएस) को अनिवार्य करने पर ब्रेट ली लोगों के बीच जागरूकता और चर्चा को बढ़ावा दे रहे है। दिल्ली में सुनने की क्षमता के स्वास्थ्य से जुडी चर्चा में ब्रेट ली के साथ दिल्ली के कई विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिकारी - प्रोफ़ेसर डॉ एस सी शर्मा (ईएनटी स्पेशालिस्ट, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल सायंसेस) और प्रोफ़ेसर डॉ अलोक ठाकर (ईएनटी स्पेशालिस्ट, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल सायंसेस) भी सहभागी हुए।



इस अवसर पर मीडिया से बात करते हुए ब्रेट ली ने कहा, "पीड़ितों की संख्या इतनी ज्यादा होने के बावजूद सुनने की क्षमता को स्वस्थ रखने के बारे में जागरूकता अभी भी काफी कम है। पिछले पांच सालों से मैं भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर जागरूकता बढ़ा रहा हूं, बहरेपन की समस्याओं से बच्चों के भविष्य पर कितने बुरे असर हो सकते हैं उनके बारे में सभी को जानकारी दे रहा हूं।  यूएसए, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और यूके की तरह यूएनएचएस को अनिवार्य कर देना चाहिए।
2002 में 58 वे नेशनल सैंपल सर्वे में भारतीय परिवारों में विकलांगता के बारे में सर्वेक्षण किया गया और पाया गया कि बहरेपन की समस्या यह दूसरी सबसे ज्यादा पायी जाने वाली विकलांगता है। साथ ही यह भी पाया गया कि ग्रहणशीलता में कमी का यह सबसे बड़ा कारण है। 2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली में 34000 से ज्यादा लोग गंभीर बहरेपन से पीड़ित थे। वर्तमान में उपलब्ध सर्वे की बेहतर पद्धतियों और ताजा जानकारी के अनुसार यह संख्या काफी ज्यादा हो सकती है।
बचपन में ही जल्द से जल्द सुनने की क्षमता की जांच करवाना जरुरी है इस मुद्दे पर जोर देते हुए प्रोफ़ेसर डॉ एस सी शर्मा (ईएनटी स्पेशालिस्ट, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल सायंसेस) ने बताया, "सुनने की क्षमता यह मनुष्य की सबसे महत्त्वपूर्ण क्षमताओं में से एक क्षमता है और अगर इसमें कोई कमी हो तो सौभाग्य से उस पर इलाज किए जा सकते हैं। जन्म से ही बहरा बच्चा अपनी पूरी जिंदगी वैसे ही गुजारता हुआ देखना बहुत दुखदायक होता है। ब्रेट ली ने बिलकुल सही कहा किसी को भी जिंदगी भर सन्नाटा न सहना पड़े।  समस्या की जल्द से जल्द पहचान और समय पर सही इलाज से यह बच्चें भी अपनी जिंदगी का पूरा मजा ले सकते हैं। लेकिन अगर इलाज न किया जाए तो न केवल उनका बोलना सीमित हो जाता है बल्कि उनके विकास पर भी असर पड़ सकता है। ऐसे बच्चें पूरे जीवन भर के लिए अकेले पड़ जाते हैं और तनाव में रहते हैं।  लेकिन यूएनएचएस और समस्या की जल्द पहचान के साथ कॉक्लियर इम्प्लांट्स जैसे आधुनिकतम और नए डिवाइसेस, लगातार थेरपी और देखभाल से उनकी समस्या को दूर किया जा सकता है, इस चुनौती के खिलाफ लड़ाई के अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। बहरेपन के प्रभाव को कम करने और समाज पर इसके प्रभाव की हमारी क्षमताएं यूएनएचएस से बढ़ेंगी।
अनुसंधान के अनुसार भारत में 1000 नवजात में से 5-6 शिशुओं को सुनने की कोई न कोई समस्या होती है।  ब्रेट ली ने आगे बताया, "मैंने जो पढ़ा है उस जानकारी के अनुसार बच्चा दो साल का या उससे भी बड़ा नहीं होता तब तक इस समस्या का पता नहीं लगाया जा सकता और तब तक इतना नुकसान पहले ही हुआ होता है कि उसका इलाज नहीं किया जा सकता।  नवजात शिशुओं के लिए यूनिवर्सल स्क्रीनिंग फॉर हियरिंग यही एकमात्र तरीका है जिससे उनकी सुनने की क्षमता की जांच की जा सकती है और हमारे समाज पर से इस समस्या के बोझ को हम मिटा सकते हैं।
इस मुद्दे पर जोर देते हुए प्रोफ़ेसर डॉ अलोक ठाकर (ईएनटी स्पेशालिस्ट, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल सायंसेस) ने कहा, "बच्चा छह महीने का होने से पहले ही जल्द से जल्द निदान करके सही इलाज किए जाए तो बच्चे का भाषिक विकास बेहतर होता है इसके कई उदाहरण मिले हैं।  इससे बच्चे की सीखने क्षमता का भी सुधार होता है। डॉक्टर्स होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि क्षेत्र के हर बच्चे को सुनने की क्षमता को स्वस्थ रखने के लिए सुविधाएं और मदद मिलती रहे ताकि आगे चलकर वह देश के सफल और सक्षम नागरिक बने।  यही हमारा लक्ष्य है।
61 सरकारी प्रसूति केंद्रों में यूनिवर्सल न्यूबॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग को लागु करने के प्रयासों में केरल बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और डॉ शर्मा मानते है कि दिल्ली भी इसी तरह से आगे बढ़ सकता है। आज हमारे देश में केरल यह एकमात्र राज्य है जहां सभी सरकारी अस्पतालों में यूएनएसएच को 98% सफलता मिली है। केरल सोशल सिक्युरिटी मिशन ने ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया है जिसमें जिन नवजात शिशुओं की जांच की जाती है उनकी जानकारी जमा की जाती है। डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर्स (डीईआईसी) जैसे संस्थानों और मेडिकल कॉलेजेस द्वारा इस जानकारी का नियमित फॉलो-अप्स में उपयोग किया जाता है और इससे उन्हें पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों को आधुनिक सेवाएं मुहैया करने में मदद मिलती है।



 


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