पूर्वी उत्तर प्रदेश के बच्चों में ब्लड डिसॉडर के बढ़ रहे मामले- बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक स्थायी इलाज : डॉ विकास दुआ

शब्दवाणी समाचार शुक्रवार 15 नवंबर 2019 नई दिल्ली। यूपी के पूर्वी क्षेत्र में बच्चों के ब्लड डिसॉडर के बढ़ते मामलों के साथ, गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफएमआरआई) वात्सल्य चिल्ड्रन हॉस्पिटल के सहयोग से एक ओपीडी चलाता है। यह ओपीडी विशेषरूप से बच्चों में बल्ड डिसॉडर, ब्लड कैंसर और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए चलती है। यह ओपीडी वाराणसी स्थित वात्सल्य चिल्ड्रन हॉस्पिटल में हर महीने की 12वीं तारीख को सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक खुली रहती है।




वाराणसी में 6 महीनों तक ओपीडी चलाने के बाद यह देखा गया कि इस क्षेत्र के अधिकतर बच्चे खून संबंधी समस्याओं जैसे थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित हैं। गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में बाल रोग हेमोलॉजी ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक और हेड, डॉक्टर विकास दुआ ने बताया कि, “चूंकि अधिकांश लोग इस समस्या से परिचित नहीं होने के कारण वे इसके शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं, इसलिए लोगों को इस समस्या के बारे में जागरुक करना बहुत जरूरी है। मरीजों को किसी भी प्रकार के ब्लड डिसॉडर जैसे थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया और ब्लड कैंसर के सामान्य लक्षणों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इन लक्षणों में कमजोरी, थकान, तेज बुखार, ब्लीडिंग और संक्रमण का हाई रिस्क आदि शामिल हैं। थैलेसीमिया के मरीजों को 6 महीने की उम्र से ही नए खून और बीएमटी प्रक्रिया से गुजरने की आवश्यकता होती है।
भारत में, हर साल 3000 से अधिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रक्रियाएं की जा रही हैं, इसके बाद भी कई मरीज लाइन में इंतजार करते रहते हैं। आवश्यकता और वास्तविक बीएमटी प्रक्रियाओं के बीच के अंतर का कारण जागरूकता, बुनियादी सुविधाओं, सुविधाओं और अच्छे डॉक्टरों की कमी है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रक्रिया ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, इम्यून में गड़बड़ी, अप्लास्टिक एनीमिया, कुछ ऑटो इम्यून डिसॉडर जैसी समस्याओं का इलाज करने में अत्यधिक प्रभावी है। अब यह तकनीक ब्रेन ट्यूमर, न्यूरो बैस्टोमा और सरकोमा के लिए भी इस्तेमाल की जाने लगी है।
डॉक्टर दुआ ने आगे बताया कि, “बोन मैरो ट्रांसप्लांट, बच्चों में बल्ड डिसॉडर के लिए अब तक उपलब्ध एकमात्र सफल उपचार है। 30-50% मामलों में खून की अनुकूलता की पहचान करने के लिए रोगी और भाई-बहनों पर एचएलए परीक्षण किया जाता है, जो आमतौर पर पॉजीटिव ही होता है। जबकि यदि किसी केस में खून मैच नहीं करता है तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्टेम सेल रजिस्ट्रियों के माध्यम से पहले रोगियों के लिए डोनर की तलाश की जाती है। इसमें विफल होने पर हाप्लोइंडिकल ट्रांसप्लांट (आधा मैच प्रत्यारोपण) किया जा सकता है, जहां माता-पिता दोनों में से कोई एक डोनर बन सकता है।”
गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट की जोनल डायरेक्टर, डॉक्टर रितु गर्ग ने बताया कि, “इस ओपीडी का मुख्य उद्देश्य बच्चों में बल्ड डिसॉडर के मामलों में वृद्धि पर जागरूकता बढ़ाना है और वाराणसी के लोगों के लिए अत्याधुनिक सेवाएं प्रदान करना है। बल्ड डिसॉडर से पीड़ित कई बच्चों पर असावधानी बरती गई है और हमारा उद्देश्य उन रोगियों तक समय पर पहुंचना है। इस ओपीडी के माध्यम से हम वाराणसी के लोगों के लिए सबसे अच्छी देखभाल सुविधाएं लाए हैं। पहले रोगियों को परामर्श लेने के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता था लेकिन अब वे अपने बच्चों के किसी भी प्रकार के बल्ड डिसॉडर के लिए वाराणसी में ही परामर्श ले सकते हैं। विश्व स्तरीय सेवाओं के माध्यम से अच्छी क्वालिटी वाली स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए देश की अग्रणी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता द्वारा ओपीडी सेवा और संबंधित सुविधाएं अभी तक एक और रोगी-केंद्रित कदम है।



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