रो-रो फेरी सेवा और परिवहन एवं लॉजिस्टिक्सय पर उसका प्रभाव

शब्दवाणी समाचार रविवार 03 नवंबर 2019 (अमिताभ कांत) नई दिल्ली। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने द्वारा दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी एवं अत्याधुनिक रो-रो परियोजना का उद्घाटन सौराष्ट्र के भावनगर जिले में घोगा से दक्षिण गुजरात में भरूच जिले के दहेज को जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण अध्याय का शुभारंभ हुआ है। हजीरा परियोजना के दूसरे चरण की शुरूआत भारत के परिवहन क्षेत्र में उल्लेखनीय बदलाव का सूचक है। इस जलमार्ग की पूरी क्षमता का दोहन करने से लोगों, वस्तुओं और वाहनों की आवाजाही को एक बड़ी रफ्तार मिलेगी। माल ढुलाई के लिए समय और लागत की बचत का भारत के विनिर्माण एवं निर्यात क्षेत्र पर लाभकारी असर पड़ेगा। अब तक सौराष्ट्र के घोगा से दक्षिण गुजरात के दहेज तक जाने के लिए 360 किलोमीटर की सड़क यात्रा करनी पड़ती थी। इसे तय करने में लगभग 8 घंटे का समय लगता था। समुद्री मार्ग से यह दूरी अब मात्र 31 किलोमीटर रह गई है।



भारत में लगभग 14,500 किलोमीटर नौगम्य अंतर्देशीय जलमार्ग और करीब 7,517 किलोमीटर समुद्र तट है जिन्‍हें परिवहन को सुगम बनाने के उद्देश्‍य से प्रभावी तौर पर विकसित किया जा रहा है। इससे सड़क एवं रेल नेटवर्क पर भीड़भार कम करने में मदद मिलेगी और क्षेत्रों के समग्र आर्थिक विकास को कई गुना बढ़ाया जा सकेगा। समुद्र तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन के ईंधन कुशल, पर्यावरण के अनुकूल एवं कम लागत वाले साधन हैं, विशेष रूप से थोक वस्तुओं के लिए। मालवाहक जहाजों से उत्‍सर्जन 32-36 ग्राम कार्बन डाईऑक्‍साइड प्रति टन-किलोमीटर तक होता है जबकि सड़क परिवहन के भारी वाहनों के मामले में यह 51-91 ग्राम कार्बन डाइऑक्‍साइड प्रति टन-किलोमीटर के दायरे में होता है। इसके अलावा सड़क परिवहन की औसत लागत 1.5 रुपये प्रति टन-किलोमीटर और रेलवे के लिए यह 1.0 रुपये प्रति टन-किलोमीटर है जबकि जलमार्ग के लिए यह महज 25 से 30 पैसे प्रति टन-किलोमीटर होगी। एक लीटर ईंधन से सड़क परिवहन के जरिये 24 टन-किलोमीटर और रेल परिवहन के जरिये 85 टन-किलोमीटर माल की ढुलाई हो सकती है जबकि जलमार्ग के जरिये इससे अधिकतम 105 टन-किलोमीटर तक माल की ढुलाई की जा सकती है। इन आंकड़ों से इस बात को बल मिलता है कि भूतल परिवहन के मुकाबले जलमार्ग परिवहन का कहीं अधिक किफायती एवं पर्यावरण के अनुकूल माध्‍यम है। यदि लॉजिस्टिक्‍स लागत को जीडीपी के 14 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत तक घटा दी गई तो देश को प्रति वर्ष 50 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है। माल ढुलाई की लागत कम होने पर उत्‍पादों के मूल्‍य में भी गिरावट आएगी।
भारत में कुल नौगम्‍य अंतर्देशीय जलमार्गों में से करीब 5,200 किलोमीटर (36%) प्रमुख नदियां और करीब 485 किलोमीटर (3%) नहरें हैं जो यांत्रिक जहाजों की आवाजाही के लिए अनुकूल हैं। अंतर्देशीय जलमार्ग अपनी परिचालन लागत कुशलता (60-80% प्रति टन किलोमीटर कम), कम पर्यावरणीय प्रभाव, सुविधाजनक अंतरसंक्रियता और भूमि अधिग्रहण एवं बुनियादी ढांचे के विकास से संबंधित कुछ मुद्दों के कारण रेल एवं सड़क परिवहन के मुकाबले कहीं अधिक फायदेमंद है। वर्तमान में केवल 4,500 किलोमीटर अंतर्देशीय जलमार्ग का व्यावसायिक रूप से उपयोग किया जा रहा है और भारत में 1% से भी कम घरेलू कार्गो की ढुलाई जलमार्ग के जरिये होता है।
अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन के विकास एवं परिचालन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के तहत इस क्षमता के दोहन के लिए काम काम कर रहा है। भारत के तटवर्ती क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए सरकार ने मार्च 2015 में 'सागरमाला कार्यक्रम' शुरू किया था और भारत के तटवर्ती क्षेत्रों के व्‍यापक विकास के लिए इसके तहत राष्‍ट्रीय परिप्रेक्ष्‍य योजना (एनपीपी) तैयार की जा रही है।
रोल-ऑन व रोल-ऑफ ('आरओ-आरओ') जलमार्ग परियोजनाओं में रो-रो जहाज/नौकाएं शामिल होती हैं जिन्‍हें कारों, ट्रकों, सेमी-ट्रेलर ट्रकों, ट्रेलरों और रेलरोड कारों जैसे पहिये वाले कार्गो की ढुलाई के लिए डिजाइन किया जाता है जिन्‍हें उनके पहियों पर चलाते हुए अथवा किसी प्‍लेटफॉर्म वाहन के जरिये जहाजों पर चढ़ाया अथवा उतारा जाता है। इसमें संबंधित पोर्ट टर्मिनल और संबंधित कनेक्टिविटी बुनियादी ढांचे के साथ जेट्टीज (घाट या सेतु) भी शामिल होते हैं। यात्री जेट्टीज का इस्‍तेमाल पूरी तरह से यात्रियों के नौकायन के लिए किया जाता है लेकिन रो-रो जेट्टीज इस तरीके से निर्मित होते हैं अथवा उनमें किनारा आधारित रैंप होते हैं ताकि बंदरगाह पर जहाजों में माल की लदान एवं उठाव कुशलता से किया जा सके। गुजरात में रो-रो परियोजना दो टर्मिनल के बीच 100 तक वाहनों (कार, बस और ट्रक) और 250 यात्रियों को ले जाने में समर्थ होगी। ऐतिहासिक तौर पर सीमित विकल्‍प उपलब्‍ध होने के कारण इस क्षेत्र में सड़क परिवहन में अक्‍सर काफी भीड़ और जाम का सामना करना पड़ता है। साथ ही रो-रो फेरी ऑपरेटर ने जो किराये का प्रस्‍ताव दिया है वह प्रचलित बस किराये के बराबर है। इसलिए इस सुविधा से इस क्षेत्र के यात्रियों को बहुप्रतीक्षित राहत मिल जाएगी।
भारत में असम, गुजरात, कर्नाटक महाराष्‍ट्र और केरल में विभिन्‍न रो-रो परियोजनाओं में भौगोलिक दृष्टि से प्रतिकूल भारत के आंतरिक इलाकों में आवाजाही के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं। उन्‍हें जलमार्ग से जोड़कर इस विषमता को व्‍यापक फायदे में बदला जा सकता है।
भारत में इस प्रकार की अधिकतर रो-रो परियोजनाओं को राज्‍य सरकार द्वारा परिचालन एवं रखरखाव के साथ ईपीसी मोड अथवा निजी कंसेस्‍नायर द्वारा निर्माण और परिचालन एवं रखरखाव के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी (डीबीएफओटी) मोड के तहत लागू की गई हैं। हाल में ऐसी एक परियोजना महाराष्‍ट्र में शुरू की गई है। 
वस्तुओं के मूल्य निर्धारण में वैश्विक प्रतिस्‍पर्धा और विभिन क्षेत्रों में सामाजिक एवं आर्थिक समृद्धि लाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि सरकार कई स्तर वाली परिवहन की एकीकृत एवं कुशल व्‍यवस्‍था विकसित करे जिनमें से प्रत्येक स्‍तर को जीवंत एवं कुशल तरीके से विकसित करने की आवश्‍यकता है। परिवहन का ऐसा ही एक स्‍तर जलमार्ग है।
जल आधारित परिवहन में निवेश की एक प्रमुख विशेषता यह है कि कई भूमि आधारित परिवहन व्‍यवस्‍था, जिसमें जटिल भूमि अधिग्रहण, मार्ग के अधिकार, पुनर्वास एवं अन्‍य मुद्दों से निपटने की आवश्‍यकता होती है, के विपतरीत जल अधारित परिवहन परियोजना प्रस्‍ताव अपेक्षाकृत सरल कदम है। यह कई कानूनी, नियामकीय, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों से भी मुक्‍त है जो आमतौर पर अन्य परिवहन परियोजनाओं को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी-डीबीएफओटी मॉडल के तहत फेरी ऑपरेटरों से बर्थिंग शुल्क और टर्मिनल पर पार्किंग राजस्व भी प्राप्त होगा। भारत में बुनियादी ढांचे का अभाव और समग्र आबादी एवं आर्थिक विकास में कमी के कारण रो-रो परियोजना से 10% से अधिक की एक परियोजना आईआरआर सृजित होती है और इसलिए यह एकल स्तर पर आर्थिक रूप से व्यवहार्य है। हालांकि इन परियोजनाओं में व्‍यापक गुणक प्रभाव मौजूद होते हैं और इसलिए इसे आर्थिक एवं सामाजिक विकास दर के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यही कारण है कि राज्‍य सरकारों ने पीपीपी-डीबीएफओटी मॉडल के तहत निजी भागीदारों को नई रो-रो परियोजनाएं आबंटित करने पर विचार कर सकती हैं जबकि मौजूदा चालू परियोजनाओं को पीपीपी-रिवर्स-बीओटी मॉडल के तहत आवंटित किया जा सकता है। उपयुक्‍त पीपीपी मॉडल के तहत सरकार स्‍वामित्‍व और अहम राष्‍ट्रीय बुनियादी ढांचे पर नियंत्रण बरकरार रख सकती हैं जबकि दूसरी ओर इससे सरकार पर वित्तीय बोझ को भी हल्‍का किया जा सकता है और परिसंपत्ति की परिचालन कुशलता में भी सुधार लाया जा सकता है। नई परियोजनाओं में टर्मिनल का निर्माण सरकार द्वारा करने की आवश्‍यकता है ताकि परिचालन को निजी क्षेत्र के लिए वाणिज्यिक रूप से व्‍यवहार्य बनाया जा सके।
रो-रो सेवाओं को रेलवे में भी भारतीय रेल द्वारा लागू करने की योजना बनाई गई है। भारतीय रेल ने कार्गो वाहनों के लिए बिहार में और पेट्रो उत्‍पादों के लिए त्रिपुरा में रो-रो सेवाएं शुरू की है। कुल मिलाकर सरकार इन सभी रो-रो परियोजनाओं के लिए एक साथ योजना बना रही है और इस निवेश के लिए उचित मात्रा में यातायात होने के बाद एक मजबूत पुल अवसंरचना के प्रावधान के लिए भी खुद को तैयार कर रही है।
लॉजिस्टिक परफॉर्मेंस इंडेक्स (एलपीआई) पर नवीनतम वर्ल्‍ड बैंक रिपोर्ट 2016 में भारत अब 35वें स्‍थान पर पहुंच चुका है जो 2014 के आरंभ में प्रकाशित पिछली रिपोर्ट में 54वें स्‍थान पर रहा था। इसके एलपीआई रैंकिंग में सुधार के लिए विभिन्‍न माध्यमों के तहत एकीकृत गतिशीलता के प्रावधानों को प्राथमिकता दी जा रही है। साथ ही बेहतर मानक के साथ इंजीनियरिंग परामर्श सेवाएं लेने और परियोजना के कार्यान्‍वयन के लिए उपयुक्‍त मॉडल चुनने का भी प्रस्‍ताव है ताकि हितधारकों के बीच जोखिम और लाभ को बांटा जा सके। इसके साथ ही सरकार देश भर में परिवहन परियोजनाओं के कार्यान्‍वयन कुशलता में सुधार लाने में समर्थ होगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस योजना के शुभारंभ के अवसर पर कहा भी है कि इससे बंदरगाह समृद्धि के प्रवेश द्वार बनेंगे और पेट्रोल व डीजल के आयात पर भारत की निर्भरता घटेगी और भारत को विकास की एक नई राह पर अग्रसर होगा। इससे एक करोड़ से अधिक रोजगार के अवसर मुहैया कराए जा सकेंगे और पर्यटन एवं परिवहन क्षेत्र में नये आयाम खुलेंगे।


लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।



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