कॉर्निया प्रत्यारोपण से बच सकती है आँखों की रौशनी : डॉ महिपाल सिंह सचदेव
शब्दवाणी समाचार रविवार 2 फरवरी 2020 नई दिल्ली। भारत में नेत्रहीनता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है कॉर्निया दृष्टिहीनता। कॉर्निया में आई खराबी के कारण यदि किसी की दृष्टि चली जाती है तो उसकी आंख के उस हिस्से में केराटोप्लास्टी तकनीक या लैमेलर केराटोप्लास्टी तकनीक से स्वस्थ कॉर्निया प्रत्यारोपित की जाती है। लेकिन कॉर्निया प्रत्यारोपण की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अन्य अंगों की तरह इसे किसी प्रयोगशाला या फैक्टरी में नहीं बनाया जा सकता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति द्वारा नेत्रदान किए जाने से ही प्रकृति-प्रदत्त कॉर्निया का प्रत्यारोपण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
सेंटर फॉर साइट के निदेशक डॉ महिपाल सिंह सचदेव ने बताया कि आप जब कमजोर नजर की शिकायत लेकर आंखों के डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह जांच करने के बाद कुछ खास परिस्थितियों में कॉर्निया ट्रांसप्लांट कराने की सलाह देते हैं। कॉर्निया ट्रांसप्लांट की सलाह आंखों में तकलीफ के इन लक्षणों के बाद दी जाती है:आई हर्पीज, फंगल या बैक्टीरियल केराटिटिस जैसे संक्रमण के लक्षण। आनुवांशिक कॉर्निया रोग या कुपोषण। केराटोकोनस के कारण कॉर्निया का पतला होने या आकार बिगडऩे के कारण। रासायनिक दुष्प्रभाव के कारण कॉर्निया के क्षतिग्रस्त होने के कारण। कॉर्निया में अत्यधिक सूजन आने के कारण।
कॉर्निया दरअसल आंखों की ऊपरी परत होता है। कॉर्निया आंख की फोकसिंग क्षमता को 2/3 गुना अधिक करने की जिम्मेदारी निभाता है। इसके बजाय हमारा कॉर्निया अपने पीछे बने चैंबर में आंसुओं और आंखों के पानी से ही पोषित होता रहता है। अच्छी दृष्टि के लिए कॉर्निया की सारी परतों को धुंधलाहट या अपारदर्शिता से मुक्त होना जरूरी होता है। जब किसी रोग, जख्म, संक्रमण या कुपोषण के कारण कॉर्निया पर धुंधली परत जम जाती है तो हमारी दृष्टि खत्म या कमजोर पड़ जाती है। हाल के दशक में लैमिलर ग्राफ्ट तकनीक का आविष्कार होने से कॉर्निया की अलग-अलग परतों का प्रत्यारोपण संभव हो पाया है। यह थोड़ी जटिल तकनीक है लेकिन इसके परिणाम काफी सफल रहे हैं। इसमें मरीज का संपूर्ण कॉर्निया नहीं बदला जाता है बल्कि उसकी क्षतिग्रस्त आंतरिक या बाहरी किसी भी परत को बदल दिया जाता है।
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