स्कोलियोसिस के इलाज में स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी कारगर : डा.सतनाम सिंह छाबड़ा

शब्दवाणी समाचार मंगलवार 21 अप्रैल 2020 नई दिल्ली। हम नियमित रूप से स्पाइनल नेविगेशन और न्यूरोमॉनिटिरंग सर्विसेज को उपयोग में लाते हैं, ताकि रीढ़ की हड्डी में आई विकृति को दूर करने के लिए की जाने वाली सर्जरी को बेहद सुरक्षित तरीके से पूरा किया जा सके। नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरो एंड स्पाइन डिपाटमेंट के डायरेक्टर डा. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि स्कोलियोसिस एक ऐसी विकृति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में दोनों ओर असामान्य झुकाव या कर्व आ जाता है। ज्यादातर मामलों में इसकी वजह का पता नहीं चल पाता है और किशोरावस्था में पहुंचने के आस-पास ही यह विकृति विकसित होती है या नजर आने लगती है। अगर किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में 10 डिग्री से ज्यादा का घुमाव या झुकाव आ गया है, तो इसका मतलब है कि उसे स्कोलियोसिस है। अगर रीढ़ की हड्डी में घुमाव बहुत ज्यादा आ जाता है, तो इसके चलते छाती के बीच की जगह भी कम होती जाती है और इसके चलते फेफडों के सही तरीके से काम करने में भी दिक्कतें पैदा होने लगती है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।



स्कोलियोसिस होने के कारण जैसे कि ज्यादातर मामलों में स्कोलियोसिस होने की वास्तविक वजह का पता ही नहीं चल पाता है। इसे अज्ञात कारक स्कोलियोसिस का जाता है। जिन मामलों में स्कोलियोसिस होने की वजह साफतौर से पता चलती है। इसे दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-नॉन स्ट्रक्चरल इसमें हड्डी मुड़ी हुई तो लगती है, लेकिन उसकी फंक्शनिंग में कोई खास रुकावट या अड़चन देखने को नहीं मिलती है। कभी कभार जब एक टांग दूसरी टांग से लंबी होती है, तो उसकी वजह से भी रीढ़ की हड्डी में कर्व आ सकता है। स्ट्रक्चरल-स्ट्रक्चरल स्कोलियोसिस के कारकों में जन्मजात विकृति, सेलेब्रल पाल्सी यानी मस्तिष्काघात, इन्फैक्शन या मस्क्युलर डिस्ट्रोफी आदि शामिल होते हैं। इस स्थिति में हड्डी में झुकाव काफी कठोर हो जाता है और उसका उपचार करना काफी कठिन हो जाता है।
कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान शिशु की रीढ़ की हड्डी पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाती है, जिसके चलते हड्डी में कर्व आ जाता है। हालांकि बच्चे के जन्म के समय यह बमुश्किल  ही नोटिस हो पाता है और किशोरावस्था के आस-पास ही यह समस्या वास्तविक रूप से उभरकर सामने आती है। डी 12 हेमीवर्टेब्रा के ऐसे ही एक मामले का उदाहरणा हमने ऊपर दिया है। न्यूरोमस्क्युलर यह पोलियोमाइलीटिस, स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी, सेलेब्रल पाल्सी, डाउंस सिंड्रोम जैसी स्थितियों में देखा जाता है, जहां पीठ को सपोर्ट करने वाले मसल्स के कमजोर होने की वजह से रीढ़ की हड्डी में विकृति आ जाती है। इसके परिणामस्वरूप मरीज ठीक से बैठ भी नहीं पाता और जब वह खुद से बैठने की कोशिश करता है, तो गिर जाता है।
डीजनरेटिव बुजुर्ग लोगों में यह स्थिति सामान्य रूप से देखने को मिलती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, बोन मिनरल डेंसिटी कम होने लगती है और स्पाइन की डिस्क और जॉइंट बाहर की तरफ निकलने लगते हैं, जिससे पीठ के निचलते हिस्से में एक कर्व सा उभरने लगता है।
डा. सतनाम सिंह छाबड़ा के अुनसार आमतौर पर रीढ़ की हड्डी में आया कर्व या घुमाव सी के शेप में नजर आता है, लेकिन अगर दो बड़े कर्व आ गए हैं, तो एस के शेप में नजर आते हैं। इसे सामान्यतः डबल मेजर कर्व कहा जाता है। डेक्स्ट्रो स्कोलियोसिस जब झुकाव रीढ़ की हड्डी के दाहिनी तरफ होता है। ये तीन प्रकार के होते हैं राइट थोरेसिक, राइट थोरेकोलंबर और राइट लंबर। लेवो स्कोलियोसिस जब झुकाव रीढ़ की हड्डी के बायीं ओर होता है। ये तीन प्रकार के होते हैं  लेफ्ट थोरेसिक, लेफ्ट थोरेकोलंबर और लेफ्ट लंबर।
डा. सतनाम सिंह छाबड़ा का कहना है कि ब्रेसिंग बढ़ते बच्चों में कर्व के माइल्ड से मॉडरेट होने के दौरान ब्रेसिंग करा लेने से काफी मदद मिलती है। स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी, अगर कर्व बहुत साफ नजर आ रहा है और बढ़ता जा रहा है, खासतौर से खोपड़ी के नजदीक, तो विकृति को ठीक करने के लिए जहां हड्डी में कर्व आया है, उस हिस्से में फ्यूजन सर्जरी करनी पड़ती है। इसमें पेडिकल स्क्रू, हुक और वायर का इस्तेमाल करके रीढ़ की हड्डी को सीधा और स्थिर किया जाता है।



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