औद्योगिक इकाइयों को सरकार विशेष आपदा राहत पैकेज दे : सहदेव शर्मा

शब्दवाणी समाचार, सोमवार 11 मई 2020, नोएडा। वैश्विक महामार कोविड-19 से बचाव के लिए घोषित लॉकडाउन का देश की औधोगिक इकाइयों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यदि इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने जल्दी उपाय नहीं किए तो इसका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होगा। देश की अधिकांश और नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा की औधोगिक इकाइयों की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्र नरेंद्र मोद और उत्तर प्रदेश के मुख्यंत्री योग आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। एसोसिएशन ने केंद्र और राज्य सरकार को औधोगिक इकाइयों की समस्या से अवगत कराते हुए समस्या समाधान की मांग की है। इसके अतिरिक्त विशेष आपदा राहत पैकेज की भी मांग की है।



एसोसिएशन के अध्यक्ष सहदेव शर्मा का कहना है कि वैश्विक महामार कोविड-19 का देश की औद्योगिक इकाइयों द्वारा केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा जार दिशा निर्देशों का पालन कर है। लॉकडाउन 3 :0 में सरकार ने रेड, ग्रन एवं रेंज जोन में कुछ औद्योगिक इकायों में उत्पादन शुरू करने का निर्णय लिया है। लेकिन नीति निर्णयों में अस्पष्टता एवं भेदभाव के कारण औद्योगिक इकाइयों का पुन: संचालन बहुत कठिन है। भारत में लगभग 3216 करोड़ प्रवास श्रमिक हैं। इनका 40 प्रतिशत बेंगलूरु, 15 प्रतिशत गुरुग्राम, 14 प्रतिशत हैदराबाद, 12 प्रतिशत दिल्ली, 6 प्रतिशत मुम्बई, 4 प्रतिशत चेन्नई और 4 प्रतिशत नोएडा में रहता है। ये प्रवासी मजदूर देश की अर्थव्यवस्था रूप गाड़ के पहिए हैं। इनके बिना किस भ उद्योग में उत्पादन शुरू नहीं किया जा सकता। ऐसे में इन मजदूरों को इनके घर भेजने से देश भर के उद्योगों के सामने विकट समस्या पैदा हो गई है। बिना मजदूरों के औधोगिक इकाइयों में उत्पादन शुरू करना कतई सम्भव नहीं है। अत: देश की औद्योगिक इकाइयों में पुन: उत्पादन शुरू करने के लिए मजदूरों के बड़ी संख्या में पलायन की समस्या का स्थाई समाधान किया जाए।
मुकेश शर्मा के अनुसार देश में शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके बावजूद सरकारों द्वारा शराब के कारोबार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे कोरोना विस्फोटक की संभावना बढ़ गई है। वहीं औद्योगिक इकाइयों में कोविड-19 से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और सेनेटाइजेशन जैसे सभी सुरक्षात्मक उपायों को ध्यान में रखा जा रहा है। इसके बावजूद उनके ऊपर कई तरह की कड़ शर्ते थोप गई है। सरकारों के इस भेदभावपूर्ण रवैये से न केवल औद्योगिक इकाइयों का संचालन एवं उत्पादन प्रभावित होगा। अत: औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने के लिए पारदर्शी नीतियों का पालन किया जाए।
ऐ के पचौर ने कहा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा देश का प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है। सरकारों द्वारा रेड, ग्रीन एवं औरेंज जोन में औद्योगिक इकाइयों को पुन: शुरू करने के निर्णय के अन्तर्गत प्रशासन द्वारा आवेदन मांगे गए हैं। अधिकारियों द्वारा बिना किस तय मानक के मनमाने तर के से चुनिंदा इकाइयों को शुरू करने की अनुमति प्रदान की जा रह है, वहीं कई ऐस इकाइयों के आवेदन को रद्द कर दिया गया है जिन्हें अनुमति दिया जाना चाहिए। इसका अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि ग्रेटर नोएडा में स्थित 534 औद्योगिक इकाइयों द्वारा आवेदन शुरू किए गए। इनमें से महज 159 आवेदन मान्य हुए। प्रशासन को नीति क्रियान्वयन के लिए पारदर्शी आचरण के निर्देश दिए जाएं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो कई औद्योगिक इकाइयों के अस्तित्त्व पर संकट पैदा हो जाएगा।
आदित्य घिल्डियाल ने कहा कि लॉकडाउन के पालन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को छोडक़र सभ इकाइयों एवं संस्थानों को बंद कर कोरोना महामार से मजबूत से लड़ा जाए। अग्नि सरकारों द्वारा उठाए गए हर कदम के साथ है। अन्यथा औद्योगिक इकाइयों के संचालन में किस तरह का भेदभाव न किया जाए।
अशोक कुमार के अनुसार लॉकडाउन से पूर्व औद्योगिक इकाइयां अर्थव्यवस्था के दबाव का सामना कर रहे थे। लॉकडाउन में इकाइयों में कामकाज ठप रहने से इनकी हालत और खराब हो गई है। कर्मचारियों एवं श्रमिकों को वेतन देने बहुत मुश्किल हो गया है। यदि जल्दी ही  इनकी दशा सुधारने के लिए सरकारों की ओर से विशेष आपदा राहत पैकेज नहीं दिया गया तो कर्ज से दबकर इनकी कमर टूट जाएगी। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जिसकी भरपाई के लिए चार से पांच साल लग जाएंगे। देश विदेश के कई बुद्धिज व कोविड-19 के विश्वव्याप संकट के भीषण परिणामों को दूसरे यूद्ध के बाद सबसे अधिक भयंकर बता चुके हैं। ऐसे में इस समस्या से लड़ाई में औद्योगिक इकाइकयों अहम भूमिका हो जाती है।
ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन (अग्नि) ने सरकारों से मांग की है कि अर्थव्यवस्था में अपना सहयोग देने वाले सभी औद्योगिक इकाइयों को विशेष आपदा राहत पैकेज देकर प्राणवायु प्रदान करें। देश की जीएसटी में अंशदान देने वाले उद्योगों की मदद के लिए सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता के स्थाई उपचार किए जाएं।



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