केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के द्वारा मजदूर विरोधी एवं पूंजीपतियों के पक्ष में 

शब्दवाणी समाचार, शुक्रवार 01 मई  2020, नई दिल्ली। इस बार का मई दिवस एक ऐसे समय में है जब दुनिया कोविद -19 महामारी से जूझ रही है। चीन, वियतनाम और क्यूबा जैसे देश जनता के पक्षधर वाली नीतियों के जरिए महामारी से लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं। कई विकसित पूंजीवादी देश इस महामारी के खिलाफ अपने सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे कुछ अपवाद देश भी हैं जो इस समय भी दक्षिणपंथी नीतियों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।



भारत में भी, कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ की लड़ाई सार्वजनिक क्षेत्र की मशीनरी द्वारा ही लड़ी जा रही है। चाहे वह स्वास्थ्य हो या  कानून एवं व्यवस्था का या फिर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान हों - ये वही सार्वजनिक क्षेत्र हैं जिसपर पिछले दो दशकों से नव-उदारवादी नीतियों का हमला जारी रहा था।
कोरोना संकट के इस दौर में भी केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के द्वारा मजदूर विरोधी एवं पूंजीपतियों के पक्ष की नवउदारवादी नीतियों को ही आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। काम के घंटे को 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने, मँहगाई भत्ता को वापस लेने का काम किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र में मजदूरों की छटनी की जा रही है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। 'काम नहीं तो वेतन नहीं' को लागू किया जा रहा है। राशन वितरण करने में भी सरकार पूरी तरह से विफल रही है।
ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना है कि हम अपनी चट्टानी वर्गीय एकता के जरिए इस महामारी से मुकाबला करें। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि इन मजदूर विरोधी नवउदारवादी नीतियों को, जिसकी सच्चाई आज महामारी के दौरान पूरी दुनिया और भारत में उजागर हो चुकी है उसे भी वापस करवाया जाए।
सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य कमेटी इस मई दिवस पर अपने वर्ग संगठन सीटू के साथ पूरी एकजुटता प्रकट करने का आह्वान करती है। सभी साथियों से अपील है कि वे 1 मई को सुबह 8 बजे अपने अपने दफ्तरों में झंडा फहराएं। कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए शारीरिक दूरी का ख्याल रखते हुए अपने अपने घरों के सामने लाल झंडे के साथ मजदूर वर्ग के हितों पर सरकार के द्वारा किए जाने वाले हमले के खिलाफ प्रदर्शन करें। इसके लिए वे हाथ से लिखे पोस्टर, तख्ती, आदि का भी प्रयोग करें। आज जरूरत इस बात की है कि अपने प्रतिरोध से सरकार को मजबूर किया जा सके कि तालाबंदी से प्रभावित मजदूर वर्ग को अधिक से अधिक राहत मिल सके। 



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