ब्रेनली सर्वे के अनुसार यदि विकल्प मिले तो 44.6% भारतीय छात्र घर से ही जारी रखेंगे स्कूली शिक्षा


शब्दवाणी समाचार, रविवार 19 जुलाई 2020, नई दिल्ली। यदि ब्रेनली के सर्वे पर नजर डालें, तो भारत में एक नया कल्चर देखने को मिल सकता है। छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के लिए विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म ने 2,150 भारतीय यूजर का सर्वे किया। ये प्रश्न मौजूदा स्कूल फ्रॉम होम की परिस्थिति पर आधारित थे और इसमें कुछ रोचक नतीजे सामने आए हैं। शुरुआत करने वाले करीब 68.7 ब्रेनली यूजर ने माना कि इस महामारी से पहले, वे कभी ऑनलाइन क्लास का हिस्सा नहीं बने थे। आज, लर्निंग के इस तरीके ने करीब 72.8 फीसदी छात्रों के रोजमर्रा की दिनचर्या को भी प्रभावित किया है। 44.6 फीसदी छात्रों का कहना है कि वे महामारी के बाद भी स्कूल फ्रॉम होम के विचार को प्राथमिकता देगें। इसलिए इस महामारी के बाद भारत में ऑनलाइन क्लास लेने वाले छात्रों की संख्या में इजाफा हो सकता है। 64.5 फीसदी छात्रों ने यह भी माना है कि वे शिक्षा में इस ‘न्यू नॉमर्ल’ के अभ्यस्त हो चुके हैं। हालांकि, भारत में तेजी से बढ़ रहे इस ऑनलाइन लर्निंग कल्चर में नेटवर्क कनेक्टिविटी एक बड़ी बाधा बन सकती है।



तकरीबन 59.8 फीसदी छात्रों ने कहा कि नेटवर्क कनेक्टिविटी स्कूल फ्रॉम होम मॉडल की सबसे बड़ी अड़चन है। यह पूछने पर कि क्या उन्होंने भी इस तरह की समस्या का सामना किया है तो 55.9 ब्रेनली यूजर का कहना था कि नहीं उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं हुई। ब्रेनली ने छात्रों से बातचीत के प्राथमिक माध्यम के बारे में भी पूछा। इसमें लिस्टेड सभी चारों विकल्पों- फोन कॉल, सोशल मीडिया, मैसेजिंग एप और ब्रेनली जैसे ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म को 25-25% रिस्पॉन्स मिला। ब्रेनली ने छात्रों से पूछा कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान किस प्रकार अपनी दुविधाओं को हल किया। 37.7 फीसदी छात्रों ने टीचर से फोन कॉल या सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क कर, जबकि 30.2 फीसदी छात्रों ने ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपनी दुविधाओं को दूर किया। छात्र आमतौर पर अपनी समस्याओं को हल करे के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का सहारा लेते हैं।
अंत में, सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि स्कूल फ्रॉम होम मॉडल सटीक हल नहीं है। करीब 35.8 फीसदी छात्रों को साइंस की ऑनलाइन क्लास के दौरान कॉन्सेप्ट समझने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। 31 फीसदी छात्रों को लैंग्वेज की क्लास में और मैथ की क्लास में सबसे अधिक 51.9 फीसदी छात्रों को इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ा। इसलिए बेहतर हल के रूप में डिजिटल लर्निंग और पारंपरिक तरीके के बीच में संतुलन बनाना होगा।



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