लाइवलीहूड को री-इमेजिन करने पर फोकस


शब्दवाणी समाचार, शनिवार 25 जुलाई 2020, नई दिल्ली। पूरा देश महामारी के प्रभाव से उबरने के लिए प्रयासरत है और इस बीच तीन सप्ताह के पैन-आईआईटी ग्लोबल ई-कॉन्क्लेव का अंतिम चरण महत्वपूर्ण समाधानों और रणनीतियों के साथ संपन्न हुआ। देश इस अभूतपूर्व समय में कई चुनौतियों से जूझ रहा है और उनसे आगे निकलने की कोशिश कर रहा है, ग्लोबल आईआईटी एल्युमनी कम्युनिटी ने वर्तमान संकट का हल करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के हितधारकों के साथ यह प्रयास किया। कॉन्क्लेव के तीसरे चरण में राज्यों और उद्योग की रीबिल्डिंग के साथ-साथ एग्रीकल्चर, फूड सिक्योरिटी, एमएसएमई और लाइवलीहूड्स पर ग्लोबल आईआईटी एल्युमनी और भारतीय नीति निर्माताओं, इंडस्ट्री के दिग्गजों और थर्ड सेक्टर लीडर्स के बीच गंभीर विचार-विमर्श हुआ। 
री-बिल्डिंग स्टेट्स’ विषय पर पहले सत्र में लोकसभा सांसद जयंत सिन्हा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से चर्चा की और महामारी से मिले सबक व इससे जूझने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानने की कोशिश की। सत्र के दूसरे भाग में आईआईटी मद्रास के एल्युमनी और हिंदू ग्रुप में पब्लिशिंग वर्टिकल के सीईओ राजीव सी. लोचन ने जयंत सिन्हा के साथ संरचनात्मक परिवर्तनों के लिए व्यवस्थित प्रक्रियाओं पर चर्चा की।



उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ ने कहा, “लगभग 24 करोड़ की आबादी वाले यूपी में हमने वायरस के प्रकोप से लड़ते हुए कई चुनौतियों का सामना किया। हालांकि, हम इसे लॉकडाउन के चार चरणों के दौरान रोकने में कामयाब रहे। जब हमने अंतरराज्यीय मूवमेंट्स को खोलने के साथ अनलॉक फेज में प्रवेश किया तो मामले बढ़ने लगे। इसके बाद भी हमने उन्हें नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की। आज राज्य में लगभग 16,000 सक्रिय कोविड-19 मामले हैं। हम उनका अस्पतालों के तीन स्तरों में इलाज कर रहे हैं। मेरा मानना है कि जब तक हमारे पास कोविड-19 के लिए कोई भी वैक्सीन या उपचार नहीं होता, तब सभी एहतियाती उपायों के तहत सुरक्षित रहना एकमात्र तरीका है। हालांकि, इन तैयारियों के बीच हमने यह भी महसूस किया है कि हम राज्य या देश को लंबे समय तक लॉकडाउन नहीं रख सकते क्योंकि यह आर्थिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित कर रहा है। लॉकडाउन के दौरान हमने कृषि उद्योग को सक्रिय रखने और किसानों व औद्योगिक श्रमिकों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने पर फोकस किया। इस अवधि में रिकॉर्ड-तोड़ चीनी और इथेनॉल का उत्पादन हुआ। हमने इस दौरान अपने 2500 कोल्ड स्टोरेज को सफलतापूर्वक चालू रखा। सबसे अच्छी बात यह थी कि हम टेक्नोलॉजी और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के जरिये इन सभी पर नज़र रख सकते थे और हमें विश्वास है कि इससे हमें अर्थव्यवस्था चलाने और भविष्य में नई नौकरियां पैदा करने में मदद मिलेगी।
'री-इमेजिंग एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्योरिटी' पैनल को आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र और आईटीसी के ग्रुप हेड डेजिग्नेट संजीव रंगरस ने संचालित किया, जिसमें नाबार्ड के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर पीवीएस सूर्यकुमार और अक्षय पात्र फाउंडेशन के चेयरमैन मधु पंडित दास भी शामिल हुए। उन्होंने कृषि सुधारों, कृषि के पुनर्निर्माण पर उनके प्रभाव और किसानों को कठिन समय में खाद्य सुरक्षा और पोषण के अलावा अन्य लाभों पर चर्चा की।
कॉन्क्लेव के अंतिम दिन एमएसएमई, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और ग्रामीण बैंक के संस्थापक प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने माइंडवर्क्स के सीईओ आर. गोपालकृष्णन से बातचीत की, जो आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र भी हैं। तीनों ने एमएसएमई और भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की रणनीतियों पर विचार-विमर्श किया क्योंकि देश की 69% आबादी की आजीविका इस क्षेत्र पर निर्भर है।
प्रो मुहम्मद यूनुस ने इस गहमागहमी भरे सत्र में स्वीकार किया कि “यह देखकर आश्चर्य होता है कि हमारे देश में गरीबों को बैंक लोन देने योग्य नहीं मानते। मैं कहूंगा कि स्थिति इसके उलट है। बैंकों ने उनके लिए कुछ डिज़ाइन नहीं किया है। मेरे अनुसार, उनके साथ व्यापार करने के लिए उन्हें उन लोगों के योग्य बनना होगा। इसलिए आज, यदि हम इसे संभव बनाते हैं और माइक्रोफाइनेंस संगठनों को सामाजिक व्यवसाय के तौर पर लाइसेंस जारी करते हैं तो वे जमा ले सकेंगे और परिभाषित माइक्रो आंत्रप्रेन्योर को उधार दे सकेंगे। जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, माइक्रो आंत्रप्रेन्योर प्रगति नहीं कर पाएंगे।'
इस विषय पर सरकार का नजरिया प्रस्तुत करते हुए केंद्रीय एमएसएमई, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा, “भारत की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता गरीब लोगों के लिए लोन की व्यवस्था करना और रोजगार क्षमता बढ़ाना है। समस्या उन लोगों के लिए है जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। उनके लिए माइक्रोफाइनेंस उपलब्ध नहीं है। उनकी मदद करना ही समय की जरूरत है। हमारे कृषि, ग्रामीण और जनजातीय स्पेस में, जिसमें देश की 65% आबादी कार्यरत है, जीडीपी विकास दर और प्रति व्यक्ति आय न के बराबर है। इस वजह से हमारे प्रधानमंत्री ने 156 जिलों की पहचान की है जहां हमें स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
इस बीच, 'री-बिल्डिंग इंडस्ट्री' सत्र में क्वालिटी काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष आदिल ज़ैनुलभाई, जी-20 में भारत के प्रतिनिधि सुरेश प्रभु और मास्टेक इंक व आईगेट के को-फाउंडर और चेयरमैन सुनील वाधवानी ने भाग लिया। उन्होंने इस बात पर चर्चा की कि दूरंदेशी भारत सरकार संकट को अवसरों में बदलने की दिशा में किस तरह काम कर सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार कोविड-19 के बाद के युग में भारत को बदलने के लिए वाणिज्यिक उद्योग और सामाजिक कल्याण में संभावित इम्पैक्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है।
भारतीय कंपनियों और समाज के साथ-साथ दुनियाभर में भारत की भूमिका के प्रति आशावाद पर जोर देते हुए श्री सुरेश प्रभु ने कहा, “आज की कोविड-19 स्थिति पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाली वास्तविकता है। जिस तरह से हम व्यवसाय कर रहे हैं, जिस तरह से हम लोगों से बात कर रहे हैं और जिस तरह से हम जीवन जी रहे हैं, उसके संदर्भ में दुनिया बदल गई है। इस वजह से जैसा कि परिवर्तन होता है, यह उन लोगों को अवसर प्रदान करता है जो जरूरी नहीं कि पहले की प्रणाली का हिस्सा थे। हमारे देश की अर्थव्यवस्था $3 ट्रिलियन के करीब होने के बावजूद, हम अभी तक दुनिया के बड़े खिलाड़ी नहीं हैं। हम अब एक बड़े खिलाड़ी हो सकते हैं क्योंकि बदलाव होना शुरू हो गया है। हमारे देश के विभिन्न देशों के साथ काम करने से, नई सप्लाई चेन उभरेंगी, नए विचार दुनिया पर हावी होंगे और उस स्थिति में अवसर पैदा होंगे।



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