उच्च मेडिकल शिक्षा में अग्रणी सुधार के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद 


शब्दवाणी समाचार, शुक्रवार 21 अगस्त 2020, नई दिल्ली। 6 अगस्त 2020 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्जामिनेशन के अंतर्गत 8 मेडिकल स्पेशेलिटीज़ के पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा कोर्सेज आरंम्भ करने का गैज़ेट नोटिफिकेशन लाया गया। ये वे 2 साल के कोर्सेज हैं जिन्हें एमबीबीएस की डिग्री पूरी होने के बाद किया जा सकेगा। रेगुलेशंस के अनुसार, ये ट्रेनिंग प्रोग्राम किसी भी 100 से अधिक बेड वाले, मेडिकल स्पेशेलिटीज़ के वरिष्ठ स्टाफ सहित वेल इक्विप्ड निजी या सरकारी अस्पताल द्वारा करवाया जा सकेगा। इस नोटिफिकेशन द्वारा लाए गए विनियामक परिवर्तन भारत के हेल्थकेयर में भी बदलाव लायेंगे, विश्व में पहला ऐसा देश बनाने का प्रयास जिसका हेल्थकेयर समृद्धि से अलग होगा। 
क्यों है पोस्ट-ग्रेजुएट सीट्स की आवश्यकता?
हर साल मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया और नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्जामिनेशंस के अंतर्गत 50000 सीट्स (इसमें 15000 नॉन क्लिनिकल सीट्स भी शामिल हैं) के लिए तकरीबन 1,70,000 डॉक्टर्स एनईईटी पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षा लिखते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सालाना बचे 120000 डॉक्टर्स जिनको ये सीट्स नहीं मिल पातीं वे अपने क्लिनिकल वर्क पर वापस नहीं आते, वे 2 से 5 साल केरल या कोटा में कोचिंग आदि में व्यर्थ कर सकते हैं, कुछ का डॉक्टर बनने सपना भी छोड़ सकते हैं। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा में कुछ हज़ार सीट्स जुड़ने पर तुरंत डॉक्टर्स मरीज़ की देखभाल के लिए निजी या सरकारी अस्पताल में वापस आ सकते हैं। यह उन्हें कोर्स खत्म होने के बाद एमडी, एमएस साथ के लिए अप्लाई करने का भी विकल्प देता है। यह गरीब तबके से आने वाले निपुण युवा डॉक्टर्स के लिए एक आकर्षक विकल्प है क्योंकि डिप्लोमा कोर्स की बहुत ही सामान्य कीमत है, साथ ही वे प्रोग्राम के दौरान वेतन भी पर रहे होंगे जिससे उनके परिवार को सहयोग करने में भी मदद होगी।
हम किन प्रकार की स्पेशेलिटीज़ में कम हैं?



महिलाएं व बच्चे देश की आबादी का 60 फ़ीसदी हिस्सा हैं फिर भी देश के मातृ और शिशु मृत्यु दर के आंकड़े विश्व में चिंताजनक है। हमें गायनाकोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियंस, फैमिली फिजिशियन, एनेस्थीसियोलॉजिस्ट और रेडियोलॉजिस्ट की महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरत है। अधिकतर सार्वजानिक अस्पताल खासकर टीयर 2 और टीयर 3 टाउन के अस्पताल 80 फ़ीसदी से ज्यादा ऐसे पेशेवरों की कमी से जूझते हैं। अगर इन तमाम क्षेत्रों में अस्पताल डिप्लोमा ट्रेनिंग कोर्सेज लाते हैं तो इन पेशेवरों की कमी से अगले 2 से 4 सालों में निपटा जा सकता है। 
ऑब्स्टेट्रिक्स और गायनाकोलोजी में डिप्लोमा :
भारत में हर 20 मिनट में एक महिला की बच्चे को जन्म देते समय मृत्यु हो जाती है। हमें हर साल 24 मिलियन गर्भवती महिलाओं के लिए कम से कम 4.2 मिलियन सिजेरियन सेक्शन करने की आवश्यकता है, और इसके लिए कम से कम 200000 गायनाकोलोजिस्ट्स की ज़रूरत है। लेकिन हमारे पास केवल 40000 प्रैक्टिसिंग गायनाकोलोजिस्ट्स हैं जिनमें से बहुत बड़ी संख्या में ऑब्स्टेट्रिक्स प्रैक्टिस नहीं करते, और अधिकतर ये बड़े शहरों में रहते हैं। इस डिप्लोमा के साथ इस बहुत बड़े गैप को कम समय में ही कम किया जा सकेगा जिससे मातृ मृत्युदर में कमी आएगी।
पीडियाट्रिक्स में डिप्लोमा :
भारत में हर साल हजारों नवजात बच्चे अस्पताल में आईसीयू में मर जाते हैं, ऐसी त्रासदियों के बारे में अक्सर मीडिया में पढ़ने को मिलता है। हर साल 24 मिलियन बच्चे पैदा होते हैं और तकरीबन सिर्फ 24000 पिडियाट्रिशियंस ही उनकी देखभाल कर पाते हैं। इस कोर्स के ज़रिये हमें ऐसे डॉक्टर्स मिलेंगे जो नवजात बच्चों की देखभाल, साथ ही वेंटीलेटर, आईसीयू आदि में भी उनकी देखभाल के लिए ट्रेन हुए हों, जिससे नवजातों की मृत्युदर पर रोक लगाने में आसानी होगी।    
एनेस्थीसियोलॉजी में डिप्लोमा : 
कोई भी सर्जरी बिना एनेस्थीसियोलोजिस्ट के नहीं की जा सकती। हालाँकि हमारे पास सालाना 65 मिलियन सर्जरीज़ पर 30000 प्रक्टिसिंग एनेस्थीसियोलोजिस्ट हैं। इनमें से केवल 26 मिलियन सर्जरीज़ की जा सकती हैं, बाकी केवल धीरे धीरे आंकड़ा बनतीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एनेस्थीसियोलोजिस्ट की कमी आपदा का प्राथमिक कारण है। क्रिटिकल केयर भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बढ़ती ज़रूरत है, और यह विभाग एनेस्थीसियोलोजिस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है। जब तक हम अधिक संख्या में एनेस्थीसियोलोजिस्ट नहीं देते तब तक क्रिटिकल केयर यूनिट्स का संचालन सही से नहीं हो सकता। इस कोरोना संक्रमण के दौरान, ये सही मायनों में “कोरोना योद्धा” थे क्योंकि कोविड के मरीजों को वेंटीलेटर पर देखभाल के लिए इस कुशलता की ज़रूरत होती है। 
ट्यूबरक्लोसिस एंड चेस्ट डिजीज में डिप्लोमा 
पल्मोमोनोलोजिस्ट प्राथमिक रूप से फेफड़े सम्बन्धी बीमारी का इलाज करते हैं, और कोविड महामारी से लड़ने के लिए वे सबसे आगे हैं। भारत में श्वसन सम्बन्धी बीमारियों का आंकड़ा विश्व में चिंताजनक है। भारत विश्व में श्वसन सम्बन्धी बीमारियों की राजधानी है, जिसमें मिलियन की संख्या में भारतीय ट्यूबरक्लोसिस, निमोनिया, और अस्थमा जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, और कोविड संक्रमण के बाद से इनकी संख्या में इज़ाफा हो रहा है, और देश में 3000 से भी कम पल्मोमोनोलोजिस्ट हैं। इस डिप्लोमा के साथ हजारों स्पेशेलिस्ट लाए जा सकेंगे जो इस कमी को कम समय में पूरा कर सकेंगे। 
डिप्लोमा इन रेडियो डायग्नोसिस :
बिना स्कैन के मनुष्य के शरीर पर कोई भी प्रोसीजर नहीं किया जा सकता, और इस स्कैन को रेडियोलोजिस्ट द्वारा देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर हजारों गर्भवती महिलाओं को असामान्य भ्रूण की समस्या होती है जो अक्सर सामने भी नहीं आ पाती क्योंकि उनका किसी रेडियोलॉजिस्ट से संपर्क नहीं होता। दुर्भाग्य से भारत में तकरीबन केवल 11000 रेडियोलॉजिस्ट्स हैं। इस कोर्स की बहुत व्यापक ज़रूरत है खासकर ग्रामीण इलाकों में यहाँ इसकी बेहद कमी है। 
फॅमिली मेडिसिन में डिप्लोमा और ऑप्थोलोजी में डिप्लोमा और ईएनटी में डिप्लोमा :
इन स्पेशेलिटीज़ में डिप्लोमा बहुत असरदार होंगे जिनसे इनसे संबंधित डॉक्टर्स की कमी से लड़ा जा सकेगा, खासकर ग्रामीण इलाकों में। किसी भी बड़े व्यस्त अस्पताल का संचालन बिना पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स के मरीजों की देख रेख के सही से नहीं हो सकता। अपने वरिष्ठ की निर्देशन में ये युवा बीमार मरीजों की देखभाल के लिए अग्रणी रहे हैं। जब जिला अस्पताल पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूशन्स बनेंगे और उत्साही युवा डॉक्टरों को आकर्षित करेंगे, छोटे शहरों के अस्पतालों की गुणवत्ता में सहज ही व्यापक बदलाव आएगा। प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, नीति आयोग और नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्जामिनेशन की दिखाई इस दूरगामी दृष्टि का बहुत बहुत धन्यवाद, यह भारतीय स्वास्थ्य के क्षेत्र के इतिहास में एक नया आयाम खोलेगा।



 


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