आरजेएस का श्रीमंत शंकरदेव राष्ट्रीय सम्मान 2021 घोषित 

 



शब्दवाणी समाचार, सोमवार 28 सितम्बर 2020, नई दिल्ली। राम-जानकी संस्थान आरजेएस नई दिल्ली द्वारा अनूठी मुहिम के अंतर्गत पूर्वजों और महापुरुषों के सम्मान का देश में माहौल बन रहा है। आरजेएस राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने बताया कि असम के वैष्णव संत और महान समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव की 572वीं जयंती 26 सितंबर के दिन आरजेएस फैमिली और फ्रेंड्स ने श्रद्धांजलि अर्पित की । इनका जन्म असम के नौगांव जिले की बरदौवा समीप अलिपुखुरी गांव में हुआ था। माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया।दादी खेरसुती ने पाला-पोसा लेकिन पत्नी सूर्यवती के असामयिक निधन से मानसिक आघात लगा और वो वैरागी हो गए। शंकर‌देव ने अपने वैराग्यी जीवन में भारत के विभिन्न तीर्थों का दर्शन किया। ये समाज में लोगों के ह्रदय से अंधकार‌और कुरीतियां दूर कर जनजागृति उत्पन्न किए। शंकरदेव नाटककार ,लेखक और संगीत मर्मज्ञ भी थे। बिहार के तिरहुत क्षेत्र के एक श्रद्धालु जगदीश मिश्र के स्वागत में शंकर देव ने महानाट अभिनय भी कराए थे। शंकर देव से प्रभावित जगदीश मिश्र बिहार से चलकर असम के बरदौवा जाकर शंकरदेव ‌को भागवत सुनाई थी और यह ग्रंथ इन्हें भेंट किया था। ऐसे महान व्यक्ति के बारे में आरजेएस फैमिली ने राष्ट्रीय सम्मान घोषित किया है।
असम के एक किसान-पुत्र नितुल सुतिया ने अपने माता-पिता श्री गोवर्धन सुतिया श्रीमती सरूमाई सुतिया की स्मृति में आरजेएस भारत-उदय श्रीमंत शंकर राष्ट्रीय सम्मान 2021 की घोषणा की। उनका कहना है कि मैं आरजेएस फैमिली का बहुत आभारी हूं जो मेरे माता-पिता को इतना सम्मान दे रहे हैं। साथ ही पुस्तक में फोटो और परिचय दे रहे हैं। आगामी गणतंत्र दिवस का अवार्ड फंक्शन मेरे लिए यादगार रहेगा।




आरजेएस परिवार से जुड़ी शांति साधना आश्रम गुवाहाटी की बहन नयन तारा ने बताया है कि असम में तो श्रीमंत शंकरदेव का बड़ा नाम है। इनके नाम पर आरजेएस का राष्ट्रीय सम्मान पूरे देश की नई पीढ़ी को‌ प्रेरित करेगा। श्रीमंत शंकरदेव 22 वर्ष में ही समस्त वेद,पुराण, उपनिषद एवं व्याकरण के ज्ञाता हो गए थे। असमिया साहित्य, संस्कृति, समाज व आध्यात्मिक जीवन में युगांतरकारी महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक मौन अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया। उनके महान कार्यों ने इस क्षेत्र में सामाजिक-सांस्कृंतिक एकता की भावना को सुदृढ़ किया। उन्होंने रामायण और भगवद्गीता का असमिया भाषा में अनुवाद किया। ये गृहस्थ परंपरा के वैष्णव संत थे।इनके जीवन से गृहस्थी में रहकर सन्यासी जीवन जीना सीखा जा सकता है। इसलिए शंकरदेव के अनुयाई पारिवारिक जीवन में दूसरों के कल्याण की भावना रखते हैं और जागरूकता के लिए रासलीला, नृत्य-संगीत और नाटक आदि भी करते हैं। 



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