कुपोषण मुक्त भारत के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता अहम्
शब्दवाणी समाचार, रविवार 13 सितम्बर 2020, नई दिल्ली। केवल बच्चे नहीं बल्कि वयस्क और समस्त राष्ट्र के विकास में पोषण की अनिवार्य भूमिका पर जोर देते हुए देशव्यापी अभियान के तहत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2020 को राष्ट्रीय पोषण माह घोषित किया है। यह लोगों को आजीवन कुपोषण मुक्त रखने के विशेष अभियान 'कुपोषण-मुक्त भारत' की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। कुपोषण माह में पंचायत स्तर पर ध्यान केंद्रित करना मुख्य आकर्षण होगा ग का जमीनी स्तर से समाधान के लिए भारत के पिछड़े क्षेत्रों में पोषण की समस्या की जड़ तक पहुंचना होगा पोषण माह 2020 के तहत मुख्यतः अत्यधिक गंभीर कुपोषित (एसएएम) बच्चों की पहचान, निगरानी और उपचार प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित होगा। साथ ही पोषण वाटिका या न्युट्री गार्डन के प्रचार-प्रसार के लिए वृक्षारोपण अभियान होगा।
अत्यअधिक गंभीर कुपोषण पीड़ित बच्चों (एसएएम) की मृत्यु का अधिक खतरा है यदि उन्हें दस्त, निमोनिया, मलेरिया आदि बीमारियां होती हैं। कोविड-19 की वजह से आंगनवाड़ी केंद्र (एडब्ल्यूसी) बंद होने से बच्चों के विकास पर निगरानी रखने और बढ़ावा देने की गतिविधियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में एसएएम बच्चों का पता लगाने के लिए आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को घर-घर जाना होगा। उनकी मांओं को ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी), स्वास्थ्य सुविधाओं और अस्पतालों, और पोशन एप्लिकेशन जैसे अन्य माध्यमों से भी जानकार और जागरूक बनाना होगा।
पंचायत में कुपोषण की स्थिति पर चर्चा के साथ चार पोषण पंचायतों का आयोजन करना होगा अर्थात् 1. एसएएम बच्चों का पता लगाना, 2. रेफरल और उपचार व्यवस्था के उपाय, 3. पोषण का प्रावधान, 4. माताओं को आवश्यक शारीरिक, आधारभूत और सामाजिक सहयोग और अग्रिम पंक्ति की कार्यकर्ताओं के कार्यों की स्वीकृति या सराहना करना। ये कार्यकर्ता ट्रिपल ए हैं - आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्ल्यूडब्ल्यू), मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), ऑक्ज़िलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम) जो पोषण माह के प्रमुख घटकों में एक है।
पोषण-वाटिका की अभूतपूर्व पहल की जाएगी जिसमें हर गांव में सूक्ष्म-पोषक परिवेश बनाना शामिल है। एडब्ल्यूसी, पंचायत और गांव की खाली जमीनों पर सब्जियों, फलों, और महत्वपूर्ण हर्ब्स की खेती की जाएगी।
सुश्री रचना सुजय, सीनियर टेक्निकल एडवाइजर, अलाइव एंड ड्राइव, एफएचआई 360 के अनुसार, "किसी ग्राम पंचायत के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति सुधारने में सबसे पहला कदम सरपंच या मुखिया और पीआरआई सदस्य का होगा जो जमीनी स्तर की बड़ी आबादी के प्रति उत्तरदायी होंगे। निम्नलिखित चार कदम उठा कर वे ग्राम पंचायत की स्थिति सुधारेंगे और उन्हें 'सुपोषित' (अच्छी तरह पोषित) बनाएंगे। पहला कदम विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को सभी विभागों से आपूर्त स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं की समीक्षा करना और आवश्यक सहायता और सही कार्रवाई करना है। दूसरा कदम पंचायत प्रमुखों द्वारा स्वास्थ्य और पोषण संबंधी आदतों पर सही संदेश देने के लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान शुरू करना है। सुजय के अनुसार तीसरा कदम पंचायत प्रमुखों का सामुदायिक आपूर्ति केंद्रों का दौरा कर यह सुनिश्चित करना है कि काम-काज सही से हो रहा है और इस तरह कथित सेवाओं में समुदाय का भरोसा बढ़ाना है। चौथा कदम वार्षिक ग्राम पंचायत विकास योजनाओं में स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों की प्राथमिकता तय करने, योजना और बजट बनाने पर विचार करना है।
डॉ. सुरभि जैन, मुख्य पोषण विशेषज्ञ और स्तनपान सलाहकार, न्यूट्रिवेल इंडिया, ने कहा, “शिशुओं के लिए मां का दूध वरदान है जो उन्हें संक्रमण और अन्य बीमारियों से बचाता है। शिशु मृत्यु दर कम करने और उनका वांछित विकास और वृद्धि सुनिश्चित करने में मां के उपयुक्त पोषण और शिशु को शुरू के छह महीने केवल मां का दूध देने के बाद पूरक पोषक आहार देने से मदद मिलती है। बच्चों के समग्र विकास में परिवार की बुजुर्ग महिलाएं और माताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के आंगनवाड़ी केंद्र जो घर-घर जागरूकता पैदा करते हैं और पोषण सेवाएं देते हैं कुपोषण से लड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। जहां तक पूरक आहार की बात है आंगनवाड़ी केंद्रों के पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत गहन पोषक तत्व युक्त खाद्य पदार्थ प्रदान करने के अतिरिक्त यह जरूरी है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता स्थानीय रूप से उपलब्ध सस्ते और सुरक्षित पोषक तत्वों से घर पर आहार तैयार करने को बढ़ावा दें और यह बच्चों को पर्याप्त मात्रा में उचित बारंबारता के साथ मिले।
पोषण में कमी निरंतर और बदतर होती गरीबी का कारण और परिणाम दोनों है। इससे समझ और शारीरिक विकास की अपूरनीय क्षति होती है और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी मानव संसाधन का नाश करती है। जन्मजात वजन की कमी, विकास में अवरोध एवं मन और मस्तिष्क और शरीर पर आजीवन दुष्प्रभाव कुपोषण के कुछ परिणाम हैं। दुनिया में बच्चों की स्थिति पर यूनिसेफ की 2019 रिपोर्ट के अनुसार भारत में 5 साल से कम उम्र में मृत्यु के 69 प्रतिशत मामलों की मुख्य वजह कुपोषण है। नवजात के बेहतरीन और सबसे सही जीवन आरंभ करने का तरीका यथाशीघ्र स्तनपान है जो केवल 42 प्रतिशत नवजातों को संभव होता है और केवल 55 प्रतिशत बच्चे शुरू के 6 महीने तक आवश्यक केवल स्तनपान कर पाते हैं। यथाशीघ्र स्तनपान शुरू करना नवजात मृत्यु दर कम करने और बच्चों के जीवित एवं स्वस्थ रहने के मामलों में सुधार के प्रमुख प्रभावी प्रयासों में एक है। दरअसल समय से पूरक आहार आरंभ करने की तुलना में भी यह अधिक प्रभावी है। आरंभ करने की तुलना में भी यह अधिक प्रभावी है। यह कडवा सच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-2016) में भी दिखता है। इससे पता चलता है कि 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 7.5 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित (वेस्टेड) (ऊंचाई के अनुसार कम वनज के) हैं। परंतु भारत जैसे विकासशील देश के लिए बच्चों का कुपोषण दूर करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इसके कई कारण हैं। इनमें कुछ प्रमुख कारण हैं - गर्भावस्था में मां को पर्याप्त पोषण नहीं मिलना, स्तनपान शुरू होने में विलंब, शुरू में केवल स्तनपान के मामलों में कमी, सामाजिक या आर्थिक कारणों से विविधतापूर्ण और पोषण से भरपूर आहार का सीमित होना, शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त पूरक आहार की कमी और बच्चों के भरण-पोषण के गलत तरीके। कुपोषण की समस्या के जटिल होने के कुछ अन्य कारण भी हैं जैसे घरेलू खाद्य सुरक्षा और विविधता की कमी, वांछित खाद्य परिवेश, माता-पिता की आर्थिक स्थिति, जागरूकता और शैक्षिक संसाधन, स्वास्थ्य सेवा की सुविधा और उपलब्धता
इस प्रत्यक्ष चुनौती पर पूरा ध्यान देते हुए संपूर्ण पोषण के लिए भारत सरकार के अग्रणी प्रोग्राम राष्ट्रीय पोषण मिशन ('पोषण अभियान') प्रधानमंत्री की व्यापक संपर्क योजना है जिसके तहत बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं का पोषण सुधारने का लक्ष्य है। 2018 में शुरू मिशन का मकसद कुपोषण मुक्त भारत का सपना सच करना है। यह अवरुद्ध विकास (स्टंटिंग), पोषण की कमी, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों में) और जन्म के समय कम वजन की समस्या प्रति वर्ष क्रमशः 2 प्रतिशत, 2 प्रतिशत, 3 प्रतिशत और 2 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखता है। 0-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में स्टंटिंग (अवरुद्ध विकास) कम करने का लक्ष्य 2022 तक 38.4 प्रतिशत से 25 प्रतिशत करने का है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एनीमिया मुक्त भारत प्रोग्राम शुरू किया है ताकि नवजात शिशुओं, बच्चों, किशोरों, प्रजनन उम्र की महिलाओं, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में इसका प्रकोप कम हो।
प्रधानमंत्री मोदी ने रेडियो प्रोग्राम मन की बात में राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा, 'यथा अन्नम तथा मन'- यानी हमारे आहार की गणवत्ता का हमारे मानसिक और बौद्धिक विकास से सीधा संबंध है।
'कुपोषण-मुक्त भारत के विजन 2021 का सारांश इस प्रकार है – 'बच्चे स्वस्थ, सुपोषित रहें, वृद्धि और विकास की क्षमता प्राप्त करें, सक्रिय हो कर शिक्षा प्राप्त करें और सफल वयस्क जीवन का आनंद लें थ, सुपोषित बनें, सामाजिक और आर्थिक विकास की क्षमता प्राप्त करें; सुरक्षित, पोषक, लैंगिक समानता और समुदाय में सब के विकास के परिवेश में रहें जो वर्तमान और भविष्य में मानव और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा दे।
पोषण अभियान भारत को राष्ट्रीय पोषण का लक्ष्य पूरा करने में मदद करने के साथ-साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी अभाव के कुचक्र को तोड़ने और सुपोषित, सक्षम नागरिक तैयार करने के लिए व्यवस्थित प्रयास है। इस दिशा में पोषण अभियान कई मंत्रालयों के समेकित प्रयासों से स्वास्थ्य और पोषण सूचकांक सुधारने के लिए पूरे देश में डिजिटल आंदोलन में मदद करेगा।
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