90 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय घरों में मीटर से बिजली का कनेक्शन : सीईईडब्ल्यू अध्ययन


77 प्रतिशत ग्रिड उपभोक्ता बिजली सेवा से संतुष्ट
एयर कंडीशनर का उपयोग करने वालों में 75 प्रतिशत से ज्यादा के पास स्टार लेबल वाले एसी
88 प्रतिशत भारतीय घरों में एलईडी बल्ब


शब्दवाणी समाचार, वीरवार 8 अक्टूबर 2020, नई दिल्ली। सीईईडब्ल्यू के स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार ग्रिड की बिजली का उपयोग करने वाले 93 प्रतिशत भारतीय घरों में मीटर वाला कनेक्शन है और 91 प्रतिशत को नियमित बिल दिए जा रहे हैं। कौंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने आज यह रिपोर्ट जारी की। अध्ययन से पता चला कि 77 प्रतिशत ग्रिड उपभोक्ता मिल रही बिजली की सेवा से संतुष्ट हैं। इसके अलावा, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता संतुष्टि 2015 के 23 प्रतिशत से तीन गुना से ज्यादा बढ़कर 2020 में 73 प्रतिशत हो गई है। इस अध्ययन के तहत भारतीय घरों में ऊर्जा कुशलता की भी जांच की गयी है। इसमें पाया गया कि 88 प्रतिशत भारतीय घरों में एलईडी बल्ब हैं। यह सरकार की उन्नत ज्योति बाई अफोर्डेबल एलईडी फॉर ऑल (उजाला) योजना तथा राज्य सरकारों की पहल के तहत है।



ये अध्ययन इंडिया रेसीडेंशियल एनर्जी सर्वे (आईआरईएस) 2020 के निष्कर्षों पर आधारित हैं। यह सर्वेक्षण सीईईडब्ल्यू ने इनिशिएटिव फॉर ससटेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आईएसईपी) के साथ मिलकर किया था। आईआरईएस भारत के 21 राज्यों में 152 जिलों के करीब 15,000 घरों को कवर करता है और यह अब तक का पहला अखिल भारतीय सर्वेक्षण है जो भारतीय घरों में ऊर्जा की पहुंच, खपत और ऊर्जा कुशलता का अध्ययन करता है । 
ऊर्जा मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेट्री संजय मल्होत्रा, ने कहा अध्ययन रिपोर्ट के लोकार्पण के लिए मैं सीईईडब्ल्यू की टीम को बधाई देता हूं। इससे हमें पहुंच और कार्यकुशलता के मामले में अंतर्दृष्टि मिलती है तथा इससे हमें भविष्य की कार्रवाई तय करने में मदद मिलेगी। बढ़ती अपेक्षाओं के मद्देनजर 77 प्रतिशत संतुष्टि ज्यादा है लेकिन 23 प्रतिशत असंतुष्टि की दर भी कम नहीं है। अब हमारा फोकस गुणवत्ता, विश्वसनीयता और उपभोक्ता संतुष्टि पर होगा ताकि संतुष्टि की दर 77 प्रतिशत से बढ़ाकर 90 प्रतिशत और उससे भी ज्यादा की जा सके। हमलोग एक कमेटी की स्थापना कर रहे हैं जो एक ऐसे ढांचे का विकास करेगा जिससे वितरण कंपनियों की रैंकिंग की जाएगी। उपभोक्ता संतुष्टि के अलावा, डिस्कॉम की वित्तीय स्थिरता भी बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार द्वारा संचालित डिसकॉम बेची जाने वाली प्रति यूनिट बिजली पर तकरीबन एक रुपए का नुकसान उठाते हैं।  बिजली लोगों को सक्षम बनाती है। हमें डिसकॉम की सुविधाओं को बेहतर करना है साथ में गरीब परिवारों को बिजली भी मुहैया करानी है।
सीईईडब्ल्यू की प्रोग्राम लीड और अध्ययन की लीड लेखक शालू अग्रवाल ने कहा, “भारत ने घरेलू बिजलीकरण के क्षेत्र में प्रशंसनीय प्रयास किए हैं। लगभग सभी घरों में बिजली पहुंच जाने के बाद भारत की ऊर्जा नीति को अब बिजली के उपयोग को स्थायी बनाने तथा ग्राहक संतुष्टि पर केंद्रित होना चाहिए। भरोसेमंद आपूर्ति, राजस्व संग्रह और उपभोक्ता केंद्रित सेवा डिलीवरी इन लक्ष्यों को हासिल करने के केंद्र में होगा। गरीब परिवारों के लिए हमें सभी राज्यों में बेहद निम्न शुल्कदर लागू करने की आवश्यकता है। बिजली की उपलब्धता ने उपभोक्ताओं की अपेक्षाओं को खोल दिया है। 20 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय घरों ने अपना पहला पंखा और टीवी 2010-20 के दशक के दौरान खरीदा है। हम उम्मीद करते हैं कि इसके कई सकारात्मक लाभ देखने को मिलेंगे। इनमें उपभोक्ता उपकरण की मांग बढ़ना, औद्योगिक विकास और आजीविका वृद्धि शामिल है।
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन से यह भी पता चला कि भारतीय घरों में 96.7 प्रतिशत ग्रिड से जुड़े हुए हैं और 0.33 प्रतिशत परिवार खासतौर से ग्रिड से इतर श्रोत से जुड़े हुए हैं। इनमें सौर ऊर्जा शामिल है। इसके लिए सोलर होम सिस्टम, सोलर मिनी ग्रिड और बैट्री स्टोरेज शामिल है। हालांकि अनुमान है कि 2.4 प्रतिशत भारतीय घर अभी भी बगैर बिजली कनेक्शन के हैं। ऐसे घर ज्यादातर उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। अध्ययन से यह भी पता चला कि ये परिवार मुख्य रूप से गिड्र की बिजली का खर्च नहीं उठा पाने के कारण बिजली के कनेक्शन से वंचित हैं। प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) के तहत निशुल्क कनेक्शन की उपलब्धता के मद्देनजर ये परिवार या तो योजना के बारे में नहीं जानते थे या मासिक बिजली शुल्क देने में होने वाले खर्चे के कारण अनइच्छुक थे।
बिजली तक पहुंच की स्थिति
अध्ययन से पता चला कि कई राज्यों में बिजली के मीटर से बिल करने में सुधार हुआ है। इसमें उत्तर प्रदेश में छह गुना सुधार शामिल है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में बिल से संबंधित मामला बना रहा और इससे डिसकॉम की खराब आर्थिक स्थिति और गंभीर हुई है। अध्ययन से पता चला कि झारखंड में ग्रिड उपयोगकर्ताओं की सबसे कम हिस्सेदारी है जिन्हें नियमित आधार पर बिल (55 प्रतिशत) मिलते हैं। इसके बाद बिहार का नंबर है (64 प्रतिशत)। बिलिंग की अनियमितता असम, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी ज्यादा थी। कई राज्यों में भुगतान की खराब दर के मद्देनजर पावर इकाइयों को प्रत्यक्ष और परोक्ष डिजिटल भुगतान की व्यवस्था करनी चाहिए और इसके लिए   माइक्रोआंत्रप्रेन्योर को आगे बढ़ाएं। इनमें ग्रॉसरी की दुकान और जनरल मर्चेन्ट शामिल हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन से पता चला कि जिन उपभोक्ताओं को बिल किया जाता है उनमें सिर्फ 17 प्रतिशत उपभोक्ता डिजिटल (ऑनलाइन) भुगतान करते हैं। शहरी भारत में यह 27 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण भारत में ऐसे उपभोक्ता 12 प्रतिशत हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि 70 प्रतिशत भारतीय घरों में स्मार्टफोन हैं।   
अध्ययनों के अनुसार एक औसत भारतीय परिवार ग्रिड से रोज 20.6 घंटे की विद्युत आपूर्ति प्राप्त करता है। शहरी घरों में ~22 घंटे की विद्युत आपूर्ति प्राप्त होती है। हालांकि, अध्ययन से पता चला है कि दो तिहाई ग्रामीण और शहरी घरों के पांच में से दो घर रोज कम से कम एक बार बिजली की कटौती का सामना करते हैं। दिल्ली, केरल और गुजरात के घरों में रोज 23 घंटे से ज्यादा की आपूर्ति आती है जबकि उत्तर प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, असम और बिहार में बिजली सबसे ज्यादा जाती है।     
भारत में अभी भी सबके लिए किफायती, भरोसेमंद, स्थायी और आधुनिक बिजली उपलब्ध नहीं है। स्थायी विकास के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बिना बिजली वाले बाकी बचे 2.4 प्रतिशत घरों की पहचान और उनका बिजलीकरण करने के अलावा सीईईडब्ल्यू के अध्ययन की सिफारिश है कि बिजली के उपयोग को बनाए रखने पर ध्यान दिया जाए और यह काम ऐसा हो कि उपयोग को किफायती करने पर भी ध्यान दिया जाए।
ऊर्जा कुशलता
वैसे तो भारत सार्वत्रिक बिजलीकरण के करीब है पर ऊर्जा कुशलता के क्षेत्र में सभी भारतीय राज्यों में समान प्रगति नहीं हुई है। सीईईडब्ल्यू अध्ययन से पता चला कि सिर्फ 25 प्रतिशत भारतीय परिवार ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिसियंसी (बीईई) के स्टार लेबलिंग प्रोग्राम के बारे में जानते हैं। जिन राज्यों में परिवार समृद्ध और ज्यादा शिक्षित हैं वहां यह जागरूकता ज्यादा है।
एलईडी बल्ब और एयर कंडीशनर के उपयोग के रूप में ऊर्जा कुशलता को अपनाने के मामले में भारत में अच्छी-खासी प्रगति हुई है। अध्ययन से पता चला कि भारतीय घरों में एक बिलियन बल्ब और ट्यूब का स्टॉक है और इनमें दो तिहाई एलईडी आधारित हैं। उड़ीशा में एलईडी बल्ब का उपयोग करने वाले घरों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। इसके बाद दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश का नंबर है। इसका मुख्य कारण सक्रिय सरकारी योजनाएं हैं। अध्ययन से पता चला कि 75 प्रतिशत से ज़्यादा एसी उपयोगकर्ता स्टार लेबल वाले एसी का उपयोग करते हैं जबकि 60 प्रतिशत घरों में स्टार लेबल वाले रेफ्रीजरेटर हैं। हालांकि, अन्य प्रमुख उपकरणों जैसे गीजर, टेलीविजन, छत का पंखा और वाशिंग मशीन के मामले में नतीजे कम उत्साहजनक रहे। 93 प्रतिशत भारतीय घरों में पंखों का उपयोग होता है लेकिन सिर्फ तीन प्रतिशत घरों में ऊर्जा कुशल पंखे हैं।
अध्ययन से पता चला कि उपकरणों की खरीद के मामले में 40 प्रतिशत परिवार कीमत को सबसे महत्वपूर्ण कारण मानते हैं। ब्रांड की लोकप्रियता, स्थायित्व और बिजली की बचत समेत अन्य प्राचल इसके बाद आते हैं। थोक में खरीद, बाजार में उन्नत प्रतिबद्धताएं या अंतिम उपयोगकर्ता के लिए फाइनेंसिंग जैसे उपायों से  ऊर्जाकुशल उपकरणों को किफायती बनाना आवश्यक है ताकि कार्यकुशल उपकरणों को अपनाना बढ़े। 



सीईईडब्ल्यू में प्रोग्राम एसोसिएट सुनील मैनी ने कहा, “चूंकि लाखों नए परिवार अब ग्रिड संरचना के भाग हैं इसलिए, उनके बीच ऊर्जा कुशलता से संबंधित जागरूकता को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि बिजली की मांग को सर्वश्रेष्ठ बनाया जा सके। सरकारी एजेंसियां जैसे ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफशियंसी (बीईई) और एनर्जी एफिसियंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएलएल) मिलकर काम कर रहे हैं ताकि भारतीय घरों में ऊर्जा कुशल उपकरणों को बढ़ावा दिया जा सके। हालांकि सभी सरकारी दफ्तरों को दूसरों के सर्वश्रेष्ठ व्यवहार से सीखना चाहिए ताकि आवश्यक बाज़ारू और नियामक नीतियों के मेल को लागू किया जा सके जिससे ऊर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग बढ़े। ग्राहक केंद्रित और विकेंद्रित उपभोक्ता जागरुकता रणनीति को डिजाइन करना और ऊर्जा कुशल उपकरणों की बाज़ार में उपलब्धता को बेहतर करना और किफायती बनाना इस दिशा में मुख्य कदम होंगे। दोनों अध्ययन, ‘स्टेट ऑफ इलेक्ट्रीसिटी ऐक्सेस इन इंडिया’ और ‘अवेयरनेस एंड अडॉप्शन ऑफ एनर्जी एफिसियंसी इन इंडियन होम्स’ को यहां पढ़ा जा सकता है। can be accessed here and here. दोनों अध्ययन इंडियन रेसीडेंशियल एनर्जी सर्वे (आईआरईएस) 2020 से मिली जानकारी पर आधारित हैं।



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