कहानी सदैव महान बने रहने की

शब्दवाणी समाचार, रविवार 7 फरवरी  2021(लेखक रेहाना परवीन खान जोशी) नई दिल्ली। एक आदमी मरने के बाद भी सदैव महान बने रहना चाहता था। तो वह अपने जीवन काल में एक घाटे से डूबती हुई कंपनी में नोकरी आरम्भ किया। कुछ समय बाद वह अपनी लग्न, मेहनत, नीति, कूट नीति से उस घाटे में डूबती कंपनी को घाटे से बाहर निकाला। जब घाटे से कंपनी बाहर निकलनी शुरू हुईं तो उस कंपनी से जुड़े सभी छोटे-बड़े लोगों में एक खुशी की लहर दौड़ गई कियोंकि उस कंपनी से उन लोगों का भविष्य टिका था अगर कंपनी घाटे के कारण बन्द होती तो उन सब का भविष्य अंधकार में होता और कंपनी फायदे में होती तो उन सभी का भविष्य उज्ज्वल होता। इसलिए उन सभी लोगों ने अपना उज्ज्वल भविष्य जिसके कारण बनना शुरू हुआ उसको अपना आदर्श मानकर उसके आदेशों को अब वगैर सोचे-समझे सब मानने लगे यहां तक कि अब सब उसके प्रति अंधभक्त की तरह उसकी भक्ति जैसा करने लगे। 

अब वह कंपनी दिन दुगनी और रात चौगनी होने लगी इस तरह एक दिन वह कंपनी पूरी दुनिया में छा गईं। इससे उस कंपनी से जुड़े लोग मालामाल हो गए और मानो सबके घर में रोजाना दिवाली मनने लगी। जैसा होता है एक दिन सब को मरना होता है उसी तरह अब समय आ गया उस महान व्यक्तिक के मरने का जिसके कारण कंपनी से जुड़े लोगों के घर में रोज दिवाली मन रही थी। पर उस महान व्यक्तिक को चिंता थी जब में मर जाऊंगा और फिर मेरे मरने के बाद जब इस कंपनी को कोई और उत्तराधिकारी इसे आगे बढ़ाएगा तो यह सभी लोग जो आज मुझे महान समझते हैं और ईश्वर की तरह अंधभक्त होकर मुझे मानते हैं तो यह लोग फिर मेरे उत्तराधिकारी को महान समझने लगेंगे। यह चिंता उसको खाई जा रही थी। फिर उस महान व्यक्तिक ने निर्णय लिया में महान हूँ और महान ही रहूंगा इसलिए इस कंपनी को जिस घाटे से लेकर चला था  फिर उससे भी ज्यादा घाटे में पहुंचा दूं तो में सदैव ही महान बना रहूंगा।

(यह एक काल्पनिक कहानी है, कृपया किसी व्यक्तिक विशेष से न जोड़ें) 

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