कितने स्वतंत्र हैं हमारे पड़ोसी देश चीन के लोग

शब्दवाणी समाचार, शनिवार 7 अगस्त 2021, नई दिल्ली। इस 15 अगस्त को भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे। हम अपने देश के संविधान, लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता पर गर्व करते हैं। लेकिन यह यह स्वतंत्रता हमारे पड़ोसी देश चीन के लोगों को नसीब नहीं है। चीन कई वर्षों से तिब्बती बौद्ध, वीगर मुस्लिम, हाउस क्रिस्चियन और फालुन गोंग साधना अभ्यासियों पर क्रूर अत्याचार कर रहा है। उनके अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है, कैद कर लिया जाता है, अत्याचार किया जाता है और अक्सर मार दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आये दिन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों पर किये जा रहे अत्याचारों की खबरें छपती रहती हैं । इस लेख के द्वारा हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे लिए यह जानकारी क्यों प्रासंगिक है। 

वीगर मुस्लिमों का दमन

कम्युनिस्ट चीन ने 1949 में शिनजियांग क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया, तभी से बीजिंग का लक्ष्य शिनजियांग को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से एकीकृत करने और हान समुदाय को वहां बड़े पैमाने पर बसाने का रहा है। इस कारण वहां के वीगर निवासी अल्पसंख्यक बन गए। यहां के मुसलमानों के प्रति रवैये के लिए चीन की दुनिया भर में खूब आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार लगभग दस लाख वीगर मुसलमानों को री-एजुकेशन कैंप' में रखा गया है जहाँ उन पर दमन किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की जिनेवा स्थित नस्ली भेदभाव उन्मूलन समिति ने कैदी वीगर नागरिकों को तत्काल रिहा करने की मांग की है। 

फालुन गोंग साधना अभ्यास का दमन

फालुन गोंग (जिसे फालुन दाफा भी कहा जाता है) बुद्ध और ताओ विचारधारा पर आधारित साधना अभ्यास है जो सत्य-करुणा-सहनशीलता के सिद्धांतों पर आधारित है। फालुन गोंग की शुरुआत 1992 में श्री ली होंगज़ी द्वारा चीन की गयी। आज इसका अभ्यास दुनिया भर में, भारत सहित, 100 से अधिक देशों में किया जा रहा है।  इसके स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक शिक्षाओं के कारण फालुन गोंग चीन में इतना लोकप्रिय हुआ कि 1999 तक करीब 7 से 10 करोड़ लोग इसका अभ्यास करने लगे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप उस समय 6 करोड़ ही थी। उस समय के चीनी शासक जियांग जेमिन ने फालुन गोंग की शांतिप्रिय प्रकृति के बावजूद इसे अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा माना और 20 जुलाई 1999 को इस पर पाबंदी लगा कर कुछ ही महीनों में इसे जड़ से उखाड़ देने की मुहीम चला दी। पिछले 22 वर्षों से फालुन गोंग अभ्यासियों को चीन में यातना, हत्या, ब्रेनवाश, कारावास, बलात्कार, जबरन मज़दूरी, दुष्प्रचार, निंदा, लूटपाट, और आर्थिक अभाव का सामना करना पड रहा है। 

तिब्बती बौद्ध लोगों का दमन

राजनीतिक दृष्टि से तिब्बत कभी चीन का अंग नहीं रहा। माओ ज़े दोंग को तिब्बत के बिना कम्युनिस्ट चीन की आजादी अधूरी लगी। अंतत: 7 अक्तूबर, 1950 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया और 1951 में तिब्बत को हड़प लिया। पिछले 60 वर्षों से चीनियों का तिब्बत में यह खूनी दमन चक्र निरन्तर चल रहा है। चीन दलाई लामा और उनके समर्थकों को अलगाववादी ठहराता है। चीन के ऊपर तिब्बत में धार्मिक दमन और वहाँ की संस्कृति के साथ छेड़-छाड़ का आरोप लगता रहता है। तिब्बत में आज भी भाषण, धर्म या प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है और चीन की मनमानी जारी है।

हाउस क्रिस्चियन समुदाय पर दमन 

एक अनुमान के मुताबिक़ चीन में 10 करोड़ ईसाई रहते हैं किन्तु इनमें से अधिकतर भूमिगत चर्चों (हाउस चर्च) में पूजा करते हैं। चीन की सरकार ईसाइयों को राज्य-स्वीकृत चर्चों में से किसी एक में शामिल होने के लिए दबाव डालती है, जो कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा से सहमति रखते हैं। इन हाउस चर्चों पर नियंत्रण के लिए कम्युनिस्ट पार्टी लगातार कार्रवाई कर रही है। इसके तहत सैकड़ों चर्च तोड़ दिए गए। बाइबिल जला दी गईं। घरों में होली क्रॉस और जीसस की जगह राष्ट्रपति शी जिनपिंग के फोटो लगाने का आदेश जारी हुआ है। 

यह भारत के लिए प्रासंगिक क्यों है?

चीन भले ही आज एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति है, लेकिन वहां के लोग स्वतंत्र नहीं हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी लोगों के बीच अपनी प्रभुसत्ता बनाये रखने के लिए झूठ, छल और धोखाधड़ी का सहारा लेती है। धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी चीन के बहुसंख्यक समुदाय को भय और नियंत्रण में रखती है। यही कारण है कि वहां लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की आवाजें उठ रही हैं। पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत के पास चीन को सिखाने के लिये बहुत कुछ है। भारत को चीन में हो रहे घोर मानवाधिकार हनन की निंदा करनी चाहिए। हो सकता है भविष्य में भारत चीन में लोकतंत्र का मार्ग अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे। यही सोच भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिला सकती है।

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