देश में 40 मिलियन लोग क्रॉनिक एचबीवी से संक्रमित है : वर्ल्‍ड हेपेटाइटिस डे

शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 26 जुलाई 2022(लेख :  इंडस हेल्‍थ प्‍लस के संयुक्‍त प्रबंध निदेशक एवं रोकथामपरक स्‍वास्‍थ्‍यरक्षा विशेषज्ञ श्री अमोल नाइकवाड़ी) नई दिल्ली। वायरल हेपेटाइटिस पर जागरूकता पैदा करने के लिये हर साल 28 जुलाई को ‘वर्ल्‍ड हेपेटाइटिस डे’ मनाया जाता है। वायरल हेपेटाइटिस से लिवर में जलन होती है, गंभीर बीमारी होती है और लिवर का कैंसर भी हो सकता है। वायरल हेपेटाइटिस पूरी दुनिया में पाया जाता है और विश्‍व में सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य की प्रमुख समस्‍याओं में से एक रहा है। भारत में हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीजन का पाया जाना मध्‍यम से लेकर उच्‍च स्‍तर तक का है और अनुमान के मुताबिक, हमारे देश में क्रॉनिक एचबीवी से संक्रमित 40 मिलियन लोग हैं, जोकि इस बीमारी के अनुमानित वैश्विक बोझ का लगभग 11% हैं। भारत की लगभग 3-4% आबादी को क्रॉनिक एचबीवी का संक्रमण है। इसके अलावा, इंडस हेल्‍थ प्‍लस के प्रीवेंटिव हेल्‍थ चेक-अप डेटा के अनुसार 1% लोग HbsAg पॉजिटिव पाये गये थे, जोकि हेपेटाइटिस बी वायरस में मौजूद सरफेस एंटीजन है और यह डेटा आम परीक्षणों के दौरान मिला था। लिवर के सही काम करने में मदद करने वाले लिवर एंज़ाइम्‍स और प्रोटीन्‍स के डेटा से खुलासा हुआ कि 2% महिलाएं और 9% पुरूष असामान्‍य स्थिति में थे। लिवर के काम करने की एक अन्‍य जाँच, जो बिलिरुबिन का मापन करती है, से 1% महिलाओं और 6% पुरूषों में असामान्‍य स्‍तर पाया गया। बिलिरुबिन खून में पाया जाने वाला एक पीला पिगमेंट होता है, जिसका उच्‍च स्‍तर पीलिया का संकेत देता है। इस जाँच का सैम्‍पल साइज 6500 था।

हेपेटाइटिस के कारण क्‍या हैं?

अल्‍कोहल और दूसरे विषैले पदार्थ: बहुत ज्‍यादा शराब पीने से लिवर को नुकसान हो सकता है और उसमें जलन हो सकती है। अल्‍कोहल आमतौर पर हेपेटिक कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है। इससे आखिरकार ऐसा नुकसान हो सकता है, जिसकी भरपाई न हो सके, लिवर टिश्‍यू (सिरोसिस) मोटा हो सकता है या उस पर घाव हो सकते हैं और लिवर फेलियर हो सकता है।

जलन वाली प्रतिक्रिया (इनफ्‍लेमेटरी रिएक्‍शन) : कभी-कभी रोग प्रतिरोधक तंत्र लिवर को खतरनाक मानकर उस पर हमला कर देता है। इससे स्‍थायी रूप से जलन होने लगती है और लिवर का काम करना थोड़े से लेकर गंभीर रूप से और बार-बार खराब हो सकता है। पुरूषों की तुलना में महिलाओं को इसका अनुभव तीन गुना ज्‍यादा हो सकता है।

जीवनशैली से जुड़े कारक: बहुत ज्‍यादा अल्‍कोहल पीना, अस्‍वास्‍थ्‍यकर जीवनशैली रखना और बहुत ज्‍यादा वसा का सेवन, यह सभी फैटी लिवर के कारण बनते हैं, जिसमें लिवर में बहुत ज्‍यादा वसा बन जाती है और लिवर की कोशिकाओं की प्राकृतिक संरचना प्रभावित होती है।

दुर्घटनावश सुई लगना: सुई से लगी चोट या संक्रमित खून या शरीर के संक्रमित द्रव्‍य का संपर्क दुर्घटनावश इसका कारण बन सकता है।

बचने के कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

नियमित जाँच: वायरल हेपेटाइटिस की अग्रिम जाँच और उपचार से लिवर कैंसर और लिवर की दूसरी गंभीर बीमारियों को टाला जा सकता है। जाँच से समस्‍याओं को जानने में मदद मिलती है और सही तथा अच्‍छी सेहत बनाये रखने में सहायता मिलती है।

स्‍वास्‍थ्‍यकर जीवनशैली: जीवनशैली में बदलाव, बीमारी का जल्‍दी पता लगाने और अग्रिम आधार पर परामर्श लेने से लिवर की समस्‍याओं की रोकथाम में बहुत मदद मिल सकती है।

आरोग्‍य का अभ्‍यास: एचएवी वायरस को फैलने से रोकने के लिये अच्‍छा निजी आरोग्‍य और उपयुक्‍त स्‍वच्‍छता बनाये रखना महत्‍वपूर्ण है। बाथरूम का इस्‍तेमाल करने, डाइपर बदलने और भोजन को बनाने, परोसने या खाने के बाद अपने हाथों को साबुन और पानी से धोएं।

टीका लगवाएं: हेपेटाइटिस ए की रोकथाम के लिये टीका सबसे प्रभावी उपाय है। यह संक्रमण के उच्‍च जोखिम वाले देशों की यात्रा करने वालों के लिये वैकल्पिक होता है। हालांकि हेपेटाइटिस का टीका केवल बच्‍चों और मेडिकल स्‍टाफ के लिये नहीं होता है। अगर आपको लगता है कि आपको इसका जोखिम है, तो अपने डॉक्‍टर से टीके के लिये बात करें।

इस्‍तेमाल की हुईं चीजों से बचें: इस्‍तेमाल की हुईं सीरींज, शेविंग रेज़र, टूथब्रश, टैटू बनाने वाले या छेद करने वाले उपकरणों का अपने शरीर पर उपयोग न होने दें।

लिवर हमारे शरीर का महत्‍वपूर्ण अंग है और हमारा लिवर स्‍वस्‍थ रहना चाहिये, ताकि पूरा स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा बना रहे। लिवर में कोई भी परेशानी आने से उसका काम खराब हो सकता है। लिवर के काम की स्थिति का मूल्‍यांकन जाँचों द्वारा किया जा सकता है, जैसे सीरम बिलिरुबिन के स्‍तर, एसजीपीटी जैसे लिवर एंज़ाइम्‍स, टोटल प्रोटीन लेवल्‍स, आदि का मापन। अल्‍ट्रासाउंड, सीटी और एमआरआई जैसे रेडियोलॉजीकल परीक्षणों से लिवर की संरचना दिख सकती है। जाँच के परिणाम असामान्‍य आने पर आपको अपने डॉक्‍टर या गैस्‍ट्रोएंटेरोलॉजिस्‍ट से परामर्श लेना चाहिये।

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