स्वामी दयानन्द और आर्य समाज ने देश को बचाया बचाया : ठाकुर विक्रम सिंह

शब्दवाणी समाचार, सोमवार 26 सितम्बर 2022, सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, गाजियाबाद। शम्भु दयाल दयानन्द  वैदिक सन्यास आश्रम,दयानन्द नगर के 68 वें स्थापना दिवस समारोह हर्षोल्लास से संपन्न हुआ।स्वामी सुर्यवेश के ब्रह्मत्व में  महायज्ञ का आयोजन किया गया।मुख्य यज्ञमान श्रीमती शिल्पा गर्ग एवं श्री सुभाष गर्ग,श्रीमती सुमन चौहान एवं श्री लक्ष्मण सिंह चौहान रहे। पूर्व शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार श्री बालेश्वर त्यागी ने कहा कि मेरा इस आश्रम से बहुत लम्बा जुड़ाव रहा है,22 वर्ष तक नियमित यज्ञ में आते रहे हैं, परम्परा से हम इस विचारधारा से जुड़े हैं,स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य समाज का योगदान विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने 12 अप्रैल,1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी।आर्य समाज जैसे जागरूक मंच से उन्होंने देश में फैली कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के साथ-साथ गुलामी की बेड़ियों से जकड़ी मातृभूमि को विदेशियों से मुक्त कराने का आहान किया था।

वशिष्ठ अतिथि ठाकुर विक्रम सिंह (अध्यक्ष,राष्ट्रनिर्माण पार्टी) ने 1857 की क्रांति का जिक्र करते हुए बताया कि यह मेरठ से प्रारंभ हुई थी और यह स्वामी दयानन्द की प्रेरणा हुई थी,आर्यसमाज और दयानन्द ने देश को बचाया है।उन्होंने आगे कहा कि पश्चात के क्रांतिकारियों पर महर्षि दयानन्द सरस्वती का अत्यंत प्रभाव था। क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर,लाला हरदयाल,भाई परमानन्द,सेनापति बापट, मदनलाल धीगंड़ा इत्यादि जैसे शिष्यों ने स्वाधीनता आन्दोलन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।इंग्लैण्ड में भारत की स्वतन्त्रता के लिए जितने प्रयास हुए वह श्याम जी कृष्ण वर्मा के ‘इण्डिया हाऊस’ से हुए।अमेरिका में भारत की स्वाधीनता के लिए जो प्रयास हुए,वे भाई परमानन्द के समर्पण और सहयोग का फल है।डी.ए.वी. कालेज लाहौर में इतिहास और राजनीति के प्रोफेसर जयचन्द्र विद्यालंकार पंजाब के क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक रहे हैं।उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश के अधिकाधिक प्रचार पर बल दिया।

मुख्य वक्ता आश्रमाध्यक्ष स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह के दादा जी सरदार अर्जुन सिंह विशुद्ध आर्य समाजी थे और इनके पिता श्री किशन सिंह भी आर्य समाजी थे,भगत सिंह के विचारों पर भी आर्य समाज के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।सांडर्स को मारकर भगत सिंह आदि पहले तो लाहौर के डी.ए.वी.कालेज में ठहरे,फिर योजनाबद्ध तरीके से कलकत्ता जाकर आर्य समाज में शरण ली और आते समय आर्य समाज के चपरासी तुलसीराम को अपनी थाली यह कहकर दे आये थे कि “कोई देशभक्त आये तो उसको इसी में भोजन करवाना”।दिल्ली में भगत सिंह,वीर अर्जुन कार्यालय में स्वामी श्रद्धानन्द और पंडित इन्द्र विद्यावाचस्पति के पास ठहरे थे क्योंकि उस समय ऐसे लोगों को ठहराने का साहस केवल आर्य समाज के सदस्यों में ही था।हैदराबाद में निजाम सरकार के विरूद्ध (सत्याग्रह चलाकर) जनता के हितों की रक्षा केवल आर्य समाजियों ने की है।पंजाब केसरी लाला लाजपत राय प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता थे।राजस्थान केसरी कुंवर प्रताप सिंह वारहट,पं.राम प्रसाद बिस्मिल,रोशन सिंह,विष्णुशरण और उनके साथी पक्के आर्य समाजी थे,इनके सम्बन्ध में श्री मन्मथ नाथ गुप्त ने जो स्वयं क्रांतिकारी थे,ने साप्ताहिक हिन्दुस्तान के 13 जुलाई 1858 के अंक में लिखा था। फांसी के बाद राजेन्द्र लाहिड़ी के शव का तो आर्यसमाजियों ने जुलूस निकाला था तथा सम्मानपूर्वक उसकी अन्तयेष्टि भी की थी। इसी प्रकार के और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि देश की स्वतन्त्रता की लड़ाई में आर्य समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा ही नहीं लिया अपितु नेतृत्व भी किया है। नेता जी सुभाष के द्वारा आजाद हिन्द सेना का निर्माण और कार्य इतिहास में एक गौरवशाली स्वर्णिम अध्याय है। उक्त सेना के तीन प्रमुख नायकों में से सहगल आर्यसमाजी परिवार की ही देन थे।उनके पिता महाशय अछरू राम जी जाने माने आर्यसमाजी तथा कानूनविद थे।जब लालकिले में इस सेना पर अभियोग चला, तब इनके बचाव पक्ष के वकीलों की जो कमेटी बनी थी, उसमें बख्सी टेकचन्द तथा दीवान बदरी दास के रूप में आर्यसमाज ने योगदान करके अपनी राष्ट्रनिष्ठा को व्यक्त किया था।इसके अतिरिक्त सामान्य सैनिक के रूप में इस सेना में भर्ती होकर योगदान करने वाले आर्यसमाजियों की संख्या अनगिनत है।इस प्रकार हम देखते हैं कि सशस्त्र क्रान्तिकारी दल के माध्यम से भी आर्यसमाज देश की स्वाधीनता के लिए प्रयत्न करने वाले देशभक्तों की मुहिम में अग्रिम पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है।जिसका फल 15 अगस्त 1947 की स्वतन्त्रता के रूप में सामने आता है।देश को आज भी ऐसे ही एक आंदोलन की जरूरत है,जो देश में नैतिकता की लहर ला सके। मंच का कुशल संचालन कर रहे श्री सत्यकेतु (कार्यकारिणी सदस्य) ने बताया कि 68 वर्ष पूर्व स्वामी विज्ञानानंद जी ने इस आश्रम की स्थापना की थी। इस अवसर पर मुख्य रूप से स्वामी आदित्यवेश,प्रवीण आर्य, सतेन्द्र यादव,जितेन्द्र आर्य,डा प्रतिभा सिंघल,आशा आर्या, उदयवीर शास्त्री,त्रिलोक शास्त्री, वेद प्रकाश तोमर आदि उपस्थित रहे। आश्रम के उपाध्यक्ष स्वामी सुर्यवेश जी ने दूर दराज से पधारे आर्य प्रतिनिधियों का धन्यवाद ज्ञापित किया,शांतिपाठ और ऋषि लंगर से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।


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