रामप्रसाद बिस्मिल ने महर्षि दयानंद से प्रेरणा ली : राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य

 

शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 20 दिसम्बर  2022, सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में महान देश भक्त,क्रांतिकारी प. रामप्रसाद बिस्मिल के 95 वें बलिदान दिवस पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह करोना काल से 481 वां वेबिनार था। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि बिस्मिल क्रांतिकारियों के सिरमौर थे व आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रेरणा लेकर वह क्रांतिकारी बन गए और  बिस्मिल से प्रेरणा पाकर अनेक नोजवान आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।उनके घनिष्ठ मित्र अशफाकउल्ला खां भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले।उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा  लेकर महर्षि दयानन्द के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया था और अनेकों युवा साथियों को लेकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।देश की आजादी की लड़ाई को मजबूत करने के लिए हत्यारों और धन की आवश्यकता थी जिसे पूरा करने के लिए प्रसिद्ध काकोरी काण्ड को अंजाम दिया।

देश के युवाओं के लिये उनका जीवन सदियों तक प्रकाश पुंज बना रहेगा।आज इतिहास को शुद्ध करके क्रांतिकारियों को सही सम्मान देने की आवश्यकता है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण कर सकें ।  वैदिक विद्वान डा.जयेंद्र आचार्य (आर्य समाज,आर्ष गुरुकुल नोएडा) ने कहा कि अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल समस्त क्रांतिकारियों के गुरु थे व देश की आजादी के लिए संघर्षरत्त गर्म दल के क्रांति के जनक थे।शाहजहांपुर की उर्वरा धरती में महान क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ।आर्य समाज शाहजहांपुर के सत्संग में स्वामी सोमदेव जी के प्रवचनों को सुनके बालक बिस्मिल के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।उनसे प्रभावित होकर पंडित बिस्मिल ने सत्यार्थ प्रकाश पढा, जिसको पढ़ कर बिस्मिल का सम्पूर्ण जीवन बदल गया।नशे जैसी दुष्प्रवृत्ति में जकड़े नौजवानों ने सब बुराइयों को छोड़कर अपने जीवन को संयम तथा सदाचार के मार्ग पर लगा दिया।महर्षि दयानन्द को अपना गुरु मानकर देश को आज़ाद कराने का संकल्प लिया तथा सम्पूर्ण जीवन देश को आजाद कराने में लगा दिया तथा देश की आजादी की लड़ाई लड़ते लड़ते फाँसी के फंदे को चूम लिया।

उन्होंने फांसी के फंदे को चूमते हुए कहा था "मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूं" उन्होंने कहा कि "जो फांसी पर चढ़े खेल में उनको याद करें,जो वर्षों तक सड़े जेल में उनको याद करें"।उन्होंने युवाओं से बिस्मिल के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उत्तर प्रदेश के प्रांतीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि शहीद देश की अमानत है,समय समय पर उनको याद करके हम उनके जीवन से प्रेरणा लेकर नयी उर्जा का संचार कर सकते हैं।उन्होंने कहा कि बिस्मिल पहले क्रांतिकारी थे जिनका वजन फांसी वाले दिन बढ़ गया था।उन्होंने देश भक्ति से ओतप्रोत रचनाओं "तेरा वैभव अमर रहे मां,हम दिन चार रहें ना रहें" एवं हे मातृभूमि तेरी,जय हो सदा विजय हो" सुनाकर समा बांध दिया। आस्ट्रेलिया से केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के महामंत्री महेन्द्र भाई ने कहा की राम प्रसाद बिस्मिल को वैदिक धर्म को जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ।इससे उनके जीवन में नये विचारों और विश्वासों का जन्म हुआ।उन्हें एक नया जीवन मिला।उन्हें सत्य, संयम,ब्रह्मचर्य का महत्व आदि समझ में आया। मुख्य अतिथि आर्य नेता अर्जुन देव दूरेजा व अध्यक्ष प्रेम सचदेवा ने कहा कि बिस्मिल बहुत अच्छे शायर थे,उनका लिखा गीत "सरफरोशी की तमन्ना" हर व्यक्ति की जुबान से गाया जाता है।बिस्मिल ने फांसी से तीन दिन पहले जेल में अपनी आत्म कथा लिखी थी जो हर नोजवान को पढ़नी चाहिए। गायिका कौशल्या अरोड़ा, ईश्वर देवी, कमला हंस, जनक अरोड़ा, कृष्णा पाहुजा, प्रेम हंस, चंद्रकांता आर्या आदि के मधुर गीत हुए।

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