सेहत व तंदुरुस्ती की कसौटी पर पिछड़ रहे हैं स्कूली बच्चे

स्पोर्ट्ज़ विलेज के कोविड के बाद के स्वास्थ्य सर्वेक्षण से हुआ

शब्दवाणी समाचार, 27 मार्च 2023, नई दिल्ली।स्पोर्ट्ज़ विलेज वर्ष 2009 से भारत में स्कूल परिसर में शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद को प्रोत्साहन देने के लिए अपने पुरस्कार विजेता एडुस्पोर्ट्स कार्यक्रम के माध्यम से खेल शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। साथ ही यह बीते 12 सालों से राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों की सेहत का आकलन कर रहा है। कोविड के बाद के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि, पूरे भारत में बच्चों की तंदुरुस्ती का स्तर काफी खराब हो गया है और यह बड़ी चिंताजनक बात है। देश भर में किए गए इस अध्ययन में 20 शहरों और कस्बों के 120 स्कूलों के 6 से 16 साल की उम्र के बच्चों को शामिल किया गया है। पूरे भारत के निजी एवं सरकारी, दोनों तरह के स्कूलों में बच्चों कि सेहत को विभिन्न कसौटियों पर परखा गया। इस दौरान बॉडी मास इंडेक्स (BMI), एरोबिक कपैसिटी, एनारोबिक कपैसिटी, कोर स्ट्रेंथ, फ्लेक्सिबिलिटी, अपर-बॉडी स्ट्रेंथ और लोअर-बॉडी स्ट्रेंथ का आकलन किया गया।

कोविड-19 महामारी ने बच्चों के दैनिक जीवन के कई पहलुओं को अस्त-व्यस्त कर दिया, जिसमें उनकी शारीरिक गतिविधि का स्तर भी शामिल है। इसके अलावा, इसने पूरी दुनिया में अनगिनत लोगों की सेहत और तंदुरुस्ती पर काफी बुरा असर डाला है। महामारी के दौरान स्कूल लंबे समय के लिए बंद कर दिए गए थे, जिसकी वजह से शारीरिक गतिविधि और बाहरी खेलों के अवसरों में कमी आई। इसके अलावा, बाहर घूमने पर लगी पाबंदी तथा सोशल डिस्टेंसिंग के दिशा-निर्देशों ने बच्चों की अपने घरों के बाहर आयोजित खेलों या शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता को सीमित कर दिया।

सर्वेक्षण के नतीजों के बारे में अपनी राय जाहिर करते हुए श्री सौमिल मजमुदार, सीईओ एवं मैनेजिंग डायरेक्टर, स्पोर्ट्ज़ विलेज, ने कहा, “पिछले साल स्कूलों ने पहले की तरह ही कक्षा में पढ़ाई को फिर से शुरू किया। उस समय तक, भारतीय बच्चों की शारीरिक फिटनेस पर महामारी का दीर्घकालिक प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन इस सर्वेक्षण के नतीजे यह साबित करते हैं कि, महामारी की वजह से स्कूल बंद होने का काफी बुरा असर पड़ा। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के बीच स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती की कमी एक बार फिर साबित करती है कि स्कूलों में शारीरिक गतिविधि काफी मायने रखती है, जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बेहद जरूरी है। स्कूलों को खेल को शिक्षा के अभिन्न अंग के रूप में देखना चाहिए और उन्हें व्यवस्थित तरीके से तैयार की गई शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के अवसर प्रदान करना चाहिए। स्कूलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक बच्चा स्पोर्टज़ विलेज के एडुस्पोर्ट्स प्रोग्राम में शामिल है, जिसका उद्देश्य इस कमी को दूर करना है और इसे स्कूल की समय-सारिणी और कैलेंडर में एकीकृत किया गया है।"

निष्कर्ष की मुख्य बातें

पूरे भारत में कुल 20,000 बच्चों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया 

5 में से 2 बच्चों के BMI का स्तर सेहतमंद नहीं है

3 में से 2 बच्चों के शरीर के ऊपरी हिस्से में पर्याप्त ताकत की कमी है

5 में से 3 बच्चों के शरीर के निचले हिस्से में पर्याप्त ताकत की कमी है

5 में से 2 बच्चों की पेट की मांसपेशियों में पर्याप्त ताकत की कमी है

4 में से 1 बच्चे के शरीर में वांछित लचीलापन नहीं है

स्वास्थ्य के स्तर का तुलनात्मक विश्लेषण: लड़के बनाम लड़कियाँ  

सर्वेक्षण के नतीजे में लड़कों और लड़कियों के बीच प्रदर्शन में अंतर की बात भी सामने आई है, जिसमें लड़के लोअर-बॉडी स्ट्रेंथ, कोर स्ट्रेंथ और एरोबिक कपैसिटी में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि अपर-बॉडी स्ट्रेंथ में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर है।

निजी स्कूल बनाम सरकारी स्कूल 

इस सर्वेक्षण में आगे सार्वजनिक/सरकारी स्कूलों में बच्चों तथा निजी स्कूलों के बच्चों के बीच स्वास्थ्य के स्तर की तुलना की गई है। ज्यादातर श्रेणियों में निजी स्कूलों के बच्चों ने सरकारी स्कूल के बच्चों को पीछे छोड़ दिया, तथा अपर-बॉडी स्ट्रेंथ, फ्लैक्सिबिलिटी और कोर स्ट्रेंथ में काफी बेहतर प्रदर्शन (5% से अधिक) किया

बच्चों पर कोविड का असर

इस सर्वेक्षण में स्कूल बंद होने से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कोविड से पहले और बाद में 3000 बच्चों के प्रदर्शन की तुलना भी की गई। इसमें यह बात सामने आई कि फ्लैक्सिबिलिटी को छोड़कर बाकी के सभी मानकों में प्रदर्शन का स्तर काफी नीचे हो गया था। इससे यह महत्वपूर्ण बात भी उजागर हुई कि बच्चों की सेहत को बनाए रखने में स्कूलों की अहम भूमिका होती है।

मापदंडों का विवरण:

बॉडी मास इंडेक्स (BMI): किसी व्यक्ति के वजन और उसकी शारीरिक लंबाई से प्राप्त किया गया मान है, जिसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति का शारीरिक वजन अच्छी सेहत के लिए निर्धारित सीमा के भीतर है या नहीं।

एरोबिक कपैसिटी: हृदय और फेफड़ों की मांसपेशियों तक ऑक्सीजन पहुँचाने की क्षमता।

एनारोबिक कपैसिटी: एनारोबिक (ऑक्सीजन के बिना) एनर्जी सिस्टम से प्राप्त होने वाली एलर्जी की कुल मात्रा। यह कम समय में बेहद तेज़ गति से किए जाने वाले व्यायाम या शारीरिक गतिविधियों के दौरान उपयोगी है, जैसे कि कम दूरी की तेज़ दौड़। 

एब्डोमिनल या कोर स्ट्रेंथ: धड़ की मांसपेशियों की ताकत, जिससे शरीर की मुद्रा निर्धारित करने में मदद मिलती है।

फ्लैक्सिबिलिटी: शरीर के जोड़ों की स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता। 

अपर-बॉडी स्ट्रेंथ: पेक्टोरल (छाती), रॉमबॉइड्स (ऊपरी पीठ), डेल्टोइड्स (बाहरी कंधे), ट्राइसेप्स (ऊपरी बांह के पीछे) और बाइसेप्स (ऊपरी बांह के सामने) जैसी मांसपेशियों की ताकत।

लोअर-बॉडी स्ट्रेंथ: पैरों की मांसपेशियों, जैसे कि क्वाड्रिसेप्स (ऊपरी पैर के सामने की मांसपेशियां), हैमस्ट्रिंग (ऊपरी पैर के पीछे की मांसपेशियां), ग्लूटियल्स, हिप फ्लेक्सर्स और पिंडली की मांसपेशियों की ताकत।

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