उर्वशी डांस सोसाइटी के वंदे मातरम कार्यक्रम में डांस बैले पर भारत की बहुरंगी संस्कृति का मनाया जश्न
◆ वंदे मातरम कार्यक्रम में भारत की बहुरंगी संस्कृति की झलक दिखी
◆ डांस बैल पर झूमे दर्शक और भारत की सांस्कृतिक विविधता का उठाया आनंद
शब्दवाणी समाचार सोमवार 1 मई 2023, सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, नई दिल्ली। उर्वशी डांस म्यूजिक आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी ने डांस बैले की तर्ज पर 'वंदे मातरम : भारत एक सोने की चिड़िया' प्रस्तुत की, जिसमें दर्शकों को लाइट कलर, गति और संगीत के विशिष्ट संयोजन के जरिये भारत की समृद्ध संस्कृति को जीवंत रूप में देखने का मौका मिला। इस विशिष्ट डांस बैले की प्रस्तुति भारत के संस्कृति मंत्रालय के आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में कलांजलि कार्यक्रम के तहत रेखा मेहरा के कुशल निर्देशन में नई दिल्ली के सेंट्रल पार्क में की गई। यह दो दिवसीय कार्यक्रम 29 अप्रैल को भी जारी रहेगा। इस अद्भुत नृत्य प्रस्तुति में लोक, शास्त्रीय एवं आधुनिक नृत्य शैलियों का बेहतरीन सामंजस्य किया गया था, जिसने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। सेंट्रल पार्क में मंच पर 80 वंचित लड़कियों सहित 100 कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे। इसका उद्देश्य इन युवा लड़कियों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने और सांस्कृतिक दुनिया में खुद के लिए एक जगह बनाने के लिए एक मंच देकर उन्हें सशक्त बनाना था।
बैले की शुरुआत सत्यम् शिवम् सुंदरम् थीम के साथ हुई, जिसमें तबला और पियानो की जुगलबंदी से ऊर्जावान और जीवंत ताल बजाई गई, जिसने शो को आगे बढ़ाने के लिए टोन सेट कर दिया। इसके बाद कथक और छऊ नर्तकों ने भव्य सफेद पोशाक में अपनी सुघर व सुरुचिपूर्ण कदमताल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। छऊ नृत्य इस शो में एक विशेष एहसास लेकर आया। इसके बाद मृदंगम और सितार की खूबसूरत जुगलबंदी ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद मणिपुरी नृत्य पेश किया गया, जिसे हमेशा 'सोने की चिड़ियाÓ के रूप में जाना जाता है। इस नृत्य में नर्तकियों ने पंखुड़ियां पहनी थीं और उत्कृष्ट पैटर्न और सजावट के साथ पृष्ठभूमि में प्रकृति की सुंदरता को दिखाया गया था। इसके बाद कार्यक्रम में, जी20 लोगो और ग्लोब वाली पृष्ठभूमि में ओडिसी और मोहिनीअट्टम के माध्यम से भारतीय पारंपरिक नृत्य की सुंदरता और भव्यता प्रदर्शित की गई। शक्ति, युक्ति संभृतम भवतु भारतम प्रदर्शन के जरिये स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी जान की आहूति देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों और योद्धाओं की बहादुरी को विशेष श्रद्धांजलि थी। इस पवित्र प्रदर्शन के बाद माहौल में वीर स्वर की जगह आनंदमय स्वर घोला गया। इसमें शास्त्रीय और समकालीन संगीत का मिश्रण था। गिटार और तालवाद्य के उपयोग ने इसे जहां मॉडर्न लुक दिया, वहीं पृष्ठभूमि में राधा कृष्ण और पीले लहंगे में कथक लड़कियों ने इसे पारंपरिक रूप दिया।
इसके बाद बैसाखी के उत्सव में एक ग्रामीण दृश्य नजर आया, जिसने दर्शकों को एक देहाती वातावरण में पहुंचाया, जहां संगीत और फसलों की कलरव ध्वनि थी। हरियाणवी बीट ने इसमें मिट्टी की सोंधी महक पैदा की। यहां दर्शकों ने योगासनों वाली भरतनाट्यम की मुद्राएं देखीं और मलखम का बेहतरीन प्रयोग भी देखा। इस पूरे प्रदर्शन के दौरान, रेखा मेहरा का प्रदर्शन महिला सशक्तिकरण को सलाम था, उनकी ताकत और बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित करता दिखा। मंच पर महिलाओं ने अपनी ताकत और पराक्रम पर जोर देते हुए तलवार नृत्य किया। गंगा आरती एक और रमणीय प्रदर्शन था जिसने भीड़ को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंतिम प्रदर्शन भारत की भव्यता को एक नमन था। इसमें एक गीत था जिसमें कई भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया था। नर्तकियों ने प्रेम और तीव्रता के साथ धुनों पर प्रस्तुति देकर विश्वगुरु का सम्मान किया।
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